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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मुरपरैना १४२५ मुरारे मुरपरैना ! - संज्ञा, ५० दे० यौ० ( हि० मूड़ | मुरहा - संज्ञा पु० (सं०) मुर राक्षस के मारने = सिर + पारना = रखना) फेरी लगाकर माल बेचने वालों का नुकचा | मुरब्बा - संज्ञा, पु० दे० ( ० मुख्बः ) फलों या मेवों का अचार जो मिश्री या चीनी भादि की चाशनी में रखा जाता है । मुरब्बी - संज्ञा, पु० (०) मालिक, स्वामी, पालन करने वाला | वाले श्रीकृष्ण जी । -- वि० दे० ( सं० मूल नक्षत्र + हा प्रत्य० ) मूल नक्षत्र में उत्पन्न लड़का, उपवी, नटखट, बदमाश, अनाथ । to रही। मुरहार संज्ञा, पु० (दे०) स्त्रियों के सिर का सुरमुराना - प्र० क्रि० दे० (अनु० मुरमुर से ) चूर चूर या चुरसुर होना, मुरमुर शब्द कर चबाना | मुररिपु- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) मुरारि. श्री. कृष्ण । चक्र लिये मुररिपुको लखिकै भीषम प्रति हर्षाये " - वि० क० । 16 | मुररिया | संज्ञा, स्त्री० ६० (हि० मरोड़ना) ऐंठन, बल, बढी हुई बसी । मुरला, मुरला--संज्ञा, उ० (दे० ) पोपला, मोर पक्षी, मयूर पुकार (ग्रा० ) । मुरलिका - संज्ञा, स्त्री० (सं०) बाँसुरी, बंशी, मुरली । मुरलिया -- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० मुरली ) बाँसुरी । मुरली - संज्ञा, स्त्री० (सं०) वंशी, बाँसुरी । मुरलीधर - संज्ञा, पु० (सं०) श्रीकृष्ण जी । " गिरधर मुरलीधर हैं, कछु दुख मानत नाहि " - रही० । मुरलीमनोहर- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) श्रीकृष्ण जी, वंशीधर । मुरा, मोरवा संज्ञा, ५० (दे०) पाँव की ऐसी के ऊपर का चारों ओर का भाग । + - संज्ञा, ५० दे० ( सं० मयूर, हि० मोर ) मोर, मयूर ! मुरखी* - संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० मौर्वी ) प्रत्यंचा, धनुष की ताँत या डोरी, चिल्ला । मुरशिद - संज्ञा, पु० ( ० ) गुरु पथ-प्रदर्शक, पूज्य, माननीय, उस्ताद, कामिल । मुरसुत - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) बलासुर एक दै (पुरा० ) | मा० श० को ० - १७६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गहना । मुरहारि, मुरहारी - संज्ञा, पु० (सं०) श्रीकृष्ण जी, सुगारि । मुरा- संज्ञा, खो० (सं०) मुरामाँसी, एकांगी, एक गंध द्रव्य, राजा चन्द्रगुप्त की माता एक नाइन, इसी से मौर्य वंश चला ( कथा० ) । मुराई -संज्ञा, खी० (दे०) एक जाति विशेष, काछी । सुराड़ा संज्ञा पु० (दे०) जलती लकड़ी । 'हम घर जारा थापना, लिये मुराड़ा हाथ" —कबी० । 6 मुराद - संज्ञा, स्त्री० ( ० ) कामना, श्रभि - लापा, घाशा, मनोरथ । मुहा०- मुराद पाना (पूरी होना) - मनोरथ पूर्ण होना । मुराद माँगना ( चाहना ) – मनोरथ पूर्ण होने की प्रार्थना करना, आशय, अभिप्राय, मतलब | मुराचार - वि० (दे०) कुंठित, गोठिल । मुराना - स०क्रि० ( अनु० मुर मुर से ) बाना, दाँतों से पीसकर बारीक करना, चुभलाना, चत्राना । * * -- क्रि० वि० (दे० ) मोड़ना, मुड़ाना | मुरार-संज्ञा, पु० दे० (सं० मृणाल ) कमलनाल, कमल दंडी । * संज्ञा, पु० दे० (सं० मुरारि ) मुरारि, श्रीकृष्ण जी । भुरारि, मुरारी (दे० ) - संज्ञा, पु० यौ० (सं० मुरारि ) श्रीकृष्ण जी, डगण का तीसरा भेद ( 151 ) ( पिं० ) । मुगरे - संज्ञा, पु० (सं०) हे मुरारि, हे कृष्ण (संबोधन) । " हे कृष्ण हे यादव हे मुरारे" स्फुट० । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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