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मुकर्रर १४१८
मुक्ता श्रो खेलै खेल, कहु सखी साजन नहिं सखी मुकुल- संज्ञा, पु० (सं०) कली, श्रात्मा, देह, रेल"।
एक छंद (पि०)। मुकर्रर-वि० (अ.) दोबारा, फिर से। नलित-वि० सं०) कली-युक्त कलियामुकर्रर-वि० (अ.) नियत, नियुक्त, या हुआ, कुछ कुछ फूली या खिली (कली)
तैनात, निश्चित । संज्ञा, स्त्री मुकर्ररी। कुछ बंद कुछ खुले ( नेत्र ) : “ सुरभिस्वयंमुकाता-संज्ञा, पु० (दे०) इजारा, साका। बर मनु कियो, मुफलित शाख रवाल " मुकाबला-संज्ञा, पु० (३०) मुठभेड़, __ -- रामा. श्रामनासामना, समानता, तुलना, विरोध, मका---संज्ञा, पु० दे० (सं० मुष्टिका ) बंधीलड़ाई-झगड़ा, मिलान, विरोध, मुकाबिला। मुट्ठी जो मारी जाय या मारने को उठाई मुकाबिल-क्रि० वि० (प.) सामने, जावे, घुसा ! श्री. अल्पा.---मुझी । सम्मुख । संज्ञा, पु० प्रतिद्वंदी, शत्रु, बैरी, मुकी - संज्ञा, स्त्री० (हि० मुका) हलका सा दुश्मन, विरोधी।
या मुका, किसी को पाराम पहुँचाने के मुकाम-संज्ञा, पु. ( भ. ) टिकने का हेतु उनके शरीर को हल के घूसों से पीटना, स्थान, पड़ाव, स्थान, ठहरने, या रहने की मुक्के मारने का युद्ध । जगह. विराम, घर, अवसर । " किसी ने न सकेमाजी --संज्ञा, स्त्री. ( हि० मुका+बजता सुना खाँ मुशान"--सौद।। बाजी ) बूंसों या मुक्कों का युद्ध या मुहा० ---मुकाम देना--- मृत व्यक्ति के लड़ाई, घमे बाजी। घर में उसके वंश वालों का जा कर दुःख मुक्त - वि० (सं.) बंधन-रहित, छूटा हुआ, प्रगट करना।
स्वतंय, जिसे मुक्ति मिल गयी हो, फेंका मकियाना-स० क्रि० दे० ( हि० मुको+- हया । इयाना --प्रत्य.) यूँ से या नुविभ्याँ लगाना रक्तकंट---वि. यौ० (सं०) चिल्ला कर या मारना। मकहस-वि० (अ०, पवित्र, जैसे- कुरान
। बोलने वाला, जिसे कहने में सोच-विचार
न हो, पूर्ण सर । . मुकद्दस । मुकम्मल-वि० (१०) पूर्ण, पूरा पूरा, मुक्तक -- संज्ञा, पु. (सं०) मोती, एक अस्त्र सब का सब।
जो फेंक कर मार जाता था, स्फुट कविता, म _ना प विण भगवान उद्भट । यौ० मुक्ताक काव्य -- वह काव्य कृष्ण, मुकुन्दा (दे०)।
जिसमें कोई कथा या प्रबंध न चले मुकुत, मुकता- सज्ञा, यु० दे० (सं० मुक्ता) (विलो० प्रवन्धकाव्य)। मोती, मुगुताहल।
मुक्तता--- संज्ञा, स्रो० (सं०) मुक्ति, मोक्ष । मुकुताहला-संज्ञा, पु. द. ( सं० मुक्ता+ मुहल्यापार-संज्ञः, पु० यौ० (सं०) विरागी, हल) मोती। " चुनहिं रतन मुकुताहल कर्मत्यागी, व्यापार से विरक्त । हीरा"---पद्मा।
मत्ता हस्त- - वि० पौ. (सं०) वह दानी जो मुकुर-संज्ञा, पु. (सं०) आईना, शीशा, खुले हाथों दान करे, खुले हाथ। संज्ञा, स्त्री० दर्पण, कली, मौलसिरी राव सुभाय मुकुर मुक्तहसाला। कर लीन्हा''-रामा।
मुक्का--संज्ञा, स्त्री. (सं०) मोती, मुकता मुकुट-संज्ञा, पु. (९०) गजात्रों का एक (दे०)। " बिच विच मुक्ता दाम लगाये" प्रसिद्ध शिरोभूषण, मकुट, मुकट (दे०)। -रामा० ।
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