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मुँहानाही पर खेलना-चेहरे पर प्रतिविवित या -अधिक चाहना, अधिक लोभ दिखाना। प्रगट होकर उपस्थित रहना। "मुख पर मह बनाना-त्यारी चढ़ाना, अप्रसन्नता, जिसके हैं मंजुता खेलती सी--प्रि० प्र०। अरुचि या घृणा दिखाने को मह को विकृत मुहा०-मुँह देखे का-जो दिल से न करना। हो, जो दिखाने भर को हो । मुंह पर महअखरी*---वि. द. यौ० (सं० मुखजाना-लिहाज या ध्यान करना । मह अक्षर ) शाब्दिक, ज़बानी, जिह्वान । मुलाहजे का--परिचित, जान-पहचान हकाला-पंज्ञा, पु. यौ० (हि०) बदनामी, का। मुह रखना---लिहाज करना, ध्यान अनादर, अप्रतिष्ठा। रखना । योग्यता, साहस, शांत, सामर्थ्य । मुहछुट -वि० (हिं. मुह ।- छूटना ) महफट । मुहा०-मुँह पड़ना- साहस होना, ऊपर मुंहज़ार-वि० (दि. मुह - ज़ोर फा० ) का किनारा या सतह । मुहा०-मुह तक बकवादी, वाचाल, बाचाट, धृष्ट, उदंड । श्राना या भरना-पूर्ण रूप से भर जाना, संज्ञा, स्त्री०-भुहजोरी।। लबालब भर जाना । मुंह का फहर- मुहतोड़-वि० यो हि०) लाजवाब करने कुस्मितभाषी, गाली बकने वाला। मुंह के को ठीक विपरीत उत्तर। कोवे उड़ जाना-उदास, चिचित या मुंहदिखाई- संज्ञा, स्त्री० यो० द० (हि० मुह व्याकुल होना । (किसी काम से ) मुंह दिखाना ) मुंह देखने को रीति, वह धन मोड़ना-इन्कार करना. नट जाना, किसी . जो बहू का मह देखने पर दिया जाता है काम से दूर हटना । मुह चढ़ाना- क्रोध (व्याह)। करना, प्रेम या स्नेह करना, सामने होना। महदेख:----वि० ३० यो हि० मह। देखना) मह चलना-काट खाना, चुगुली करना.. जो मह देखकर बर्ताव करे । स्त्री महादेखी। अनुचित या कुत्सित या व्यर्थ बात बाना महनाल -सज्ञा, स्त्री० ६० यौ० (हि०) धमा या कहना, बहुत व्यर्थ बकना । महचारी- खींचने की हुक्के के नैचे या सटक के छोर लजा, भय से छिपकर, मह छिपाना । मह पर लगी हुई नली। चुराना-मह छिपाना, सामने न पाना मुहट -- वि० यो० द. हि० मह । काटना) मुंह ठठाना--मह पर मारना, लजित या कड़वी बात कहने वाला, महछुट । निरुत्तर करना, मह बंद करना । मुंह मह वात्मा-वि० दे० यौ० (हि. मुह ।डालना-खाना, माँगना. “केपी विषय बालना ) जो सत्यतः न हो, केवल मुख से में भाग लेना । मुंह गिना लेना-- उदास, कहा जावे । असंतुष्ट या हताश होना । मुह तो दल- मुहमराई-संज्ञा, स्त्री. यो. द. (हि. योग्यता या शक्ति देख ! मह शुशाना- मुंह - भरना - आई---प्रत्य०) रिश्वत, स, मह बनाना । मुंह फेरना (फर लेना)-- मुँह भरने की क्रिया। उपेक्षा करना, घृणा करना, त्यागना । मह मुंहमांगा -- क्रि० वि० यो. (हि. मह+ मोडना, मह करना--- अप्रपन्न होना। माँगना) यथेच्छा, याचना-अनुकूल, मनचाहा, मुंह पर गी होना ---सामने जोध करना। कथनानुसार । मुह पर लाना-कहना । : ( चहरे ) मुँहाचाही--संज्ञा, स्त्री० यौ० (हि० मुंह - पर हवाई उड़ना-मुँह की रंगत उड़ चाहना) डींग मारना, बढ़ बढ़ कर बातें जाना, निष्प्रभ होना । मुँह पसारना---- करना । “मैंहाचही सेनापति कीन्ही अधिक माँगना, या चाहना । मुंह फैलाना सकटासुर मन गवं बदायो '-वि०।
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