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मह
मुंडी
१४१४ मंडी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० मूडना-- ई-प्रत्य०) सा) लेकर रह जाना--कुछ कर न सिर के बाल मड़ी स्त्री राँड़, विधवा (गाली)। साना, हताश या लजित होना। मह संज्ञा, स्त्री० (सं०) गोरखमुंडी ‘एक औषधि- याना-मुख में छाले पड़ना और फूल मूल) निरगुडी (दे०), मूंड या सिर। जामा मह उतर जाना --- 'उदार या " जटिलो मंडी लुंचित केशः "-शं०। दुखी होना, लजित होना। मह (चेहरे) मँडेर, मँडेरी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० मँड ) का रंग बदल जाना-लजा, भयादि का दीवाल का सब से ऊपरी भाग जो छत के । मन पर पूरा प्रभाव पड़ना घबरा जाना। उपर रहता है।
सह करना-सामना करना, मिलाना, मुडेरा--संज्ञा, पु० दे० ( हि० मँड़ : सिर !.. समता या बराबरी करना, साथ देना. फोडा एरा-प्रत्य ० ) छत के ऊपर उठा हुश्रा दीवार चीरना या ( फूटना ). श्राक्रमण या धावा का सब से ऊपरी भाग।
करना, टूट पहना, देखना, जाना। मह मँदना-अ० कि० दे० (सं० मुद्रगा ) ढक. खिल जाना प्रसन्नता से चेहरे पर विकास
जाना, लुप्त होना, बंद हो जाना, छिपना, श्रा जाना । मह समाव करना जीभ से बिल या छेद का बंद होना। संज्ञा, पु० । बुरी बातें निकालना । मह ववना ---- (दे०) ढक्कन । प्रे० रूप-मदवाना। बेधड़क बातें करना । मुंह (जीस) चलना मुंदरा--संज्ञा, पु० दे० (हि. मॅटरी) योगियों । (चलाना)--खाया जाना, व्यर्थ बकना या के कान का कंडल, करणाभूषण ।
दुर्बचन कहना । मह चिढ़ाना (चिराना) मुंदरी, मुंदरिया-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० । पूरी पूरी नकल करना । मह बना-नाम मुद्रा ) छल्ला, मुद्रिका, अँगूठी।
के लिये कहना, हृदय से न कह कर ऊपर मंशी--संज्ञा, पु. (अ०) लेख या निबंधादि से ही कहना । मह चलना - खाना, लिखने वाला, लेखक, मुहर्रिर, मुंसी(दे०)। कुरिसत बोलना । मह पर जाना-कहना, स्त्री०-मंशियाइन ।
चर्चा या वर्णन करना । मह-पेट चलना-- मंसरिम-संज्ञा, पु. (अ.) प्रबंधकर्ता, विसूचि का या हैजा होना । मह काड कर दफ्तर का एक प्रधान कर्मचारी जो मिस्लें। कहना-स्पष्ट या निलं जता से कहना । संह ठीक ठिकाने पर रखता है।
पीला (स्थाह) एडना---लज्जा, अयादि से मसिफ़-संज्ञा, पु० (अ०) दीवानी अदालत चेहरे का रंग बदल जाना। मह बाँध कर
का न्यायाधीश, इन्पाफ़ करने वाला। बैठना----चुपचाप रहना । मह बाकर मसिफ़ी-संज्ञा, स्त्री. ( अ० मसिफ़--ई- रह जाना-प्राश्चर्य से चक्ति रह जाना। प्रत्य०) न्याय या इन्साफ करने का कार्य, "चतुरानन बाइ रह्यो मह चारौ"--केश मुंसिफ का पद या कार्य, मुंसिफ की ह भरना--रिशवत या वस देना ! मह कचहरी।
मीठा करना-मिठाई खिलाना, कुछ देकर मह-संज्ञा, पु० दे० (सं० मुख ) मुख का प्रपा करना । मह बनाना ---असंतोष बिल. मुख-बिवर, मुख, किपी प्राणी के रुटतादि से मह का विकृत करना. चिढ़ाना, बोलने और खाने-पीने का ग यो चिड़ाने को मह का द"-मेढ़ा करना | मह मुहा० ---सह दर मुह ....एक दूसरे के मेंबन या लहानगना-चाट या चसका सामने । मुहा० - मुँह अँधेरे ...प्रातः, पड़ना । मह बंद रखना...कुछ न बोलना, सायं काल का समय जब अंधेरे के कारण मौन रहना। मह में जान न होनामुख न दिखलाई देता हो : मुंह ( अपना कहने की शक्ति या सामर्थ्य न होना । (किसी
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