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मरियल
मरोड़ना मरियल- वि० दे० ( हि० मरना ) मरगुल मरुतात्मज-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) मारुति, (ग्रा०) दुबला, कमज़ोर ।
हनुमान जी। मरी -संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० मारी) एक ममथल-संज्ञा, पु० दे० (सं० मरुस्थल )
संक्रामक रोग, महामारी, प्लेग (अं०)। रेगिस्तान, मदेश । मरीचि-संज्ञा, पु० (सं०) ब्रह्मा के मानसिक मद्धोप-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सजल, इरापुत्र ऋषि जो एक प्रजापति और सप्तर्षियों भरा और उपजाऊ स्थान जो मरुस्थल में में हैं (पुरा०) एक मारुत्, भृगु के पुत्र और हो, शादुलभूमि, आसिस ( अं० )। कश्यप के पिता । संज्ञा, स्त्री० सं०) किरण. मरुधर-संज्ञा, पु. (म०) मारवाड़ देश, कांति. मिर्च, मृगतृष्णा ।
बलुवा प्रदेश । मरीचिका-संज्ञा, स्त्री० (सं०) मृग-तृष्णा, ममभूमि-- संज्ञा, स्त्री. यो. (सं०) रेतीला सिरोह (प्रान्ती०) किरण, मिर्च । और निर्जल देश, रेगिस्तान, बलुवा देश । मरीचिमाली-- संज्ञा,पु० (सं० मरीचिमालिन्) मारना - ग्र० कि. दे० ( हि० मरोड़ना ) सूर्य, चंद्रमा।
ऐंठना. मरोड़ा जाना। मरीची-संज्ञा, पु. ( सं० मरी चेन ) सूर्य, मरुस्थत - संज्ञा, पु. यौ० (सं०) निर्जल चंद्रमा, किरण, कांति ।
प्रदेश, रेगिस्तान, रेतीला देश । मरीज़ -- वि० (अ०) बीमार, रोगी। मरू* ---वि० दे० ( हि० मरना ) कठिन, मरीना, मलीना-संज्ञा. पु० दे० ( स्पनी. दुरूह, मुश्किल । “ चले मरूकै अति गरू,
मेरिनो ) एक पतला नरम ऊनी वस्त्र । रंच हरू करि देहु".-रमाल । मुहा०मरु-संज्ञा, पु० (सं०) रेगिस्तान, रेतीला मा करिक या मस्करि --बहुत कठिनता मैदान, निर्जल स्थान, मारवाड़ के समीप से, ज्यों त्यों कर के, बड़ी कठिनाई या का देश । यौ० मरुस्थल, मर-भूमि। कष्ट से। मम्मा , मरुवा--संज्ञा, पु० दे० (सं० मख) मारा-मारोरा-संज्ञा, पु० दे० (हि० रोड) बबरी (ग्रा०) वन-तुलसी की जाति का मरोड़, दर्द । वि. मोड़ा हुआ। एक पौधा । संज्ञा, पु. ( सं० मेरु ) बढेर, मरोड---संज्ञा, पु० . हि० मरोडना ) मरोर बल्ली, हिंडोला लटकाने की बल्ली या (दे०) मरोड़ने का भाव या किया। संज्ञा, स्रो० लकड़ी।
(दे०) पेट में ऐठन यो पीडा । मुहा० - मरुत्-मरुद - संज्ञा, पु० (सं०)वायु, उनचास भरोड़ खाना-चक्कर खाना ! मन में मरुत् हैं । हवा, प्राण, रुद्र और वृश्नि के मरोड़ करना-कपट या छल करना। पुत्र ( वेद० ) कश्यप और दिति के पुत्र मरोड़ की बात - पंचीदा या धुमाव (पुरा० ) एक देव-गण ।
फिराव की बात । घुनाव, बल, एंठन क्षोभ, मरुत्वान*-संज्ञा, पु० दे० (सं० महत्त्वान) व्यथा, दुख । मुहा० --मरोड़ खाना--- इन्द्र, मघवा।
उलझन में पड़ना. पेट में ऐंठन और पीड़ा मरुत्सखा-संज्ञा, पु० यौ० (सं.) मरुन्मित्र,
होना। घमंड क्रोध । मुहा०-सरोड़ अग्नि, तेज । "मरुप्रयुक्ताश्च महसखाभम्" गहना---क्रोध करना। -रघु०।
मरोड़ना-स० क्रि० दे० (हि० मोड़ना) मरुत्वान-संज्ञा, पु. ( सं० महत्त्वत् ) इन्द्र, ऐंठना, घुमाना, बल डालना, उमेठना, धर्म के पुत्र एक देवगण, हनुमान । " बभौ मरोरना (दे०) । मुहा०-अंगमरोडना मरुत्त्वान विकृतः समुद्रः "-भट्टी। -अंगड़ाई लेना । भौंह या आँख आदि
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