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मँडराना १३४६
मंत्रित्व लेना, मंडल बाँधकर छाजाना, किसी मंडूक-संज्ञा, पु० (सं०) मेठक, एक ऋषि, वस्तु के चारों ओर चक्कर लगाकर उड़ना, दोहा छंद का ५ वाँ प्रकार । यौ०-कपप्रासपास घूमना परिक्रमा करना
मंडक-संकीर्ण बुद्धि वाला। "मैं कहूँ मँडराना-अ. वि. द. (सं० मंडल ) मंडूक कह झिल्ली झनकार " -- हरि० ।। किसी पदार्थ के चारों ओर घूमते हुये उड़ना, मंडूर - सांझा, पु० (सं०) सिंघान । प्रान्ती०) परिक्रमा करना, किसी वस्तु या व्यक्ति के लोहे का कीट. गलाये हुये लोहे का मैल | भासपास ही घूम-फिर कर रहना।
यौ० - संडर रम ( कोटी ) लौह-कीट से मंडल-संज्ञा, पु. (०) परिधि, वृत, गोला, बना एक रस | " नासत है मंडरास, जैसे क्षितिज, सूर्य-चंद्रमा के चारों ओर गोल । तन को सोथ-वि० वै०।। बादल का घेरा, परिवेष । "रविमंडल देवत मंत*-ज्ञा, पु० दे० ( सं० मंत्र ) सलाह । लघु लागा' - रामा० । समूह, ऋग्वेद, यौ० ---तं मंत---प्रयत्न, उद्योग, मंत्र। का खंड, वारह राज्यों का समूह, समाज, मंतव्य - संज्ञा, पु० (सं०) मत. विचार, मानने ब्रहों के घूमने की कना।
योग्य। मंडलाकार-वि० यौ० (सं०) गोल । मंत्र-संज्ञा, पु० (सं०) रहस्यात्मक, गोपनीय मँडलाना--प्र० कि० दे० ( हि० मंडराना) या छिपी बात, सलाह, राय, परामर्श, मँडराना, चारों ओर घूमते हुये उड़ना, वेद की ऋचा, वेदों के गायत्री आदि मँडराना । “नहम्त चपोराप मंडला रही
देवाधिसाधन-वाक्य जिनसे यज्ञादि का है'- हाली।
विधान हो, वेद-मंत्रों का संग्रह भाग संहिता, मंडली--संज्ञा, स्त्री० (सं०) सभा. समाज, ।
वे शब्द या वाक्य जिनके जप से देवता समूह । संज्ञा, पु. ( सं० मंडलिन्। वट का
प्रसन्न हो अभीष्ट फल देते हैं ( तंत्र.), पेड़, बरगद. बिल्ली सूर्य । " खल-मडली मंतर, तर (दे०)। "ताको जोग नाहि बसहु दिन-राती"--समा० ।
जोग-मंतर तिहारे मैं ".--ऊ. श० । यौ० मंडलोक-संज्ञा, पु० दे० ( सं० मांडलीक )
मंत्र-यंत्र या यंत्रमंत्र-जादू-टोना। बारह राजाओं के मंडल का अधिपति मंत्रकार-संज्ञा, पु० (सं०) मंत्र रचने वाला मंडलेश्वर--संज्ञा. पु. यौ० (सं०) मांडलीक, ऋषि । मंडलीक, मंडलेश।
मंत्रणा -- संज्ञा, स्त्री. (सं०) राय, सलाह, मँड़वा--संज्ञा, पु० दे० ( सं० मंडप ) मंडप । परामर्श, मशविरा, मंतव्य, कई व्यक्तियों के मँडारा -- संज्ञा, पु. द. (सं० मंडल ) द्वारा निर्णित मत या विचार। डलिया, झाबा, टोकरा ।
मंत्रविद्या--- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) तंत्र-विद्या, मंडित-- वि० (सं०) सजाया हुश्रा, शोभित, मंत्र-शास्त्र भोज-विद्या, तंत्र । भरा या छाया हुआ, आभूषित, युक्ति से मंत्रसंहिता-संज्ञा. स्त्री० यौ० (सं०) वेदों का प्रतिपादित । "श्री कमला-कुच कुंकुम वह भाग "जेसमें मंत्रों का संग्रह है। मंडित पंडित देव प्रदेव निहारयो, .- मंत्रित-वि० सं०) अभिमंत्रित, मंत्र-द्वारा राम।
संस्कृत। मंडी- संज्ञा, सी० दे० ( सं० मंडप ) बड़ी मंत्रिता-ज्ञा, स्त्री० (सं०) मंत्रित्व, मंत्री का बाज़ार ।
कार्य या पद। मँडुआ-संज्ञा, प. (दे०) एक प्रकार का मंत्रित्व-ज्ञा, पु० (सं०) मंत्रिता, मंत्रीपन, तुच्छ बनान।
मंत्री का पद या कार्य ।
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