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भगीरथ
भटकैया भगीरथ-संज्ञा, पु० (सं०) अयोध्या नरेश | संज्ञा, पु. ( हि० भजना ) भगना । “दूर दिलीप के पुत्र, जो घोर तपस्या कर गंगा | __ भजन जाते को".-वि० । जी को पृथ्वी पर लाये थे (पु०) यौ० भजना-स० क्रि० दे० (सं० भजन ) सेवा भगीरथ-प्रयत्न- कठिन प्रयत्न ।
करना. देवादि का नाम रटना, जपना, स्मरण भगोड़ा-वि० दे० ( हि. भगाना---प्रोड़ा- __ करना, पाश्रय लेना । अ० क्रि० दे० (सं० प्रत्य०) भगाने वाला, कायर, भागता हुथा। भजन पा० वजन ) भागना, प्राप्त होना, भगैया (दे०)।
पहुँचना भग जाना । " भजन कह्यो त सों भगोल-संज्ञा, पु. (सं०) खगोल ।
भज्यो"- वि०। भगौती -संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० भगवती) भजनानंद-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) भजन भगवती, देवी।
करने का हर्ष । भगौहाँ-वि० दे० ( हि० भागना+ौहाँ
भजनानंदी-संज्ञा, पु० यौ० सं० भजनानंद + प्रत्य०) भागने को तैयार, कायर वि० दे० |
ई-प्रत्य.) भजन गाकर प्रसन्न रहने वाला। (हि. भगवा ) गेरुआ, भगवा ।
भजनी--संज्ञा, पु. (हि. भजन + ई-प्रत्य०) भागुल*-वि० दे० ( हि० भागना ) युद्ध
भजन गाने वाला। से भागा हुभा, भगोड़ा, भग्गू । “भग्गुल
भजाना-अ० कि० दे० (हि. भजना = श्राइ गये तब ही"-रामा०।।
दौड़ना) भागना, दौड़ना, भजन करने में भग्गू-वि० दे० ( हि० भागना-+ऊ-प्रत्य०)
लगाना। भजावना, प्रे० रूप भजवाना। जो विपत्ति देख भागता हो, भीरु, कायर ।
स० क्रि०-भगाना, दूर करना, दौड़ाना । भग्न-वि० (सं०) टूटा हुआ, पराजित ।।
भजियाउरी-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (हि. भग्नावशेष-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) खंडहर,
भाजी- चाउर ) चावल, दही और भाजी से टूटे-फूटे घर या उजड़ी बस्ती का हिस्सा टूटे
एक साथ बनाया हुआ भोजन, उझिया फूटे पदार्थ के बचे टुकड़े। भचक-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. भचकना )
(प्रान्ती०)। लंगड़ापन ।
भट-संज्ञा, पु० (सं०) योद्धा, सैनिक, भचकना-० क्रि० दे० (हि. भौचक) सिपाही, वीर । वि० दे० शून्य, संज्ञा-रहित । श्राश्चर्ययुक्त, भौचक या चकित होना । भटकटाई, भटकटैया-संज्ञा, स्त्री० दे० अ० कि० (अनु०) लँगड़ाते हुए चलना, टेढ़ा
| ( हि० कटाई ) काँटेदार एक छोटा तुप या पैर पड़ना।
पौधा, कटेरी। भचक्र-संज्ञा, पु. (सं०) राशियों या ग्रहों । भटकना-- अ० कि० दे० (सं० भ्रम ) मार्ग
की गति का मार्ग या चक्र, नक्षत्र-समूह, भूलकर इधर उधर मारे मारे फिरना, भ्रम ग्रह-कक्षा (खगो०)।
में पड़ना. व्यर्थ इधर-उधर घूमना । स० रूपभच्छ*-संज्ञा, पु० दे० (सं० भक्ष्य भचय ।। भटकाना, प्रे० रूप-भटकवाना। भच्छना, भछना*-स० कि० दे० (सं० भटका-क्रि० वि० ( हि. भटकना ) भूला ।
भक्षण ) भखना, खाना (बुरे अर्थ में)। । यो० भूला-भटका। भजन--संज्ञा, पु० (सं०) सेवन, किसी देवता भटकाना--स० कि० (हि. भटकना ) भ्रम या पूज्य का नाम बार बार लेना, स्मरण, __ में डालना, ग़लत रास्ता बताना । जप, देव-स्तुति. या देव गुण गान । " राम- | भटकैया संज्ञा, पु० दे० (हि. भटकना भजन बिनु सुनहु खगेसा"-रामा० ।। --ऐया-प्रत्य०) भटकने या भटकाने वाला।
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