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भजाना
ब्राह्मसमाज
१३०८ ब्राह्मसमाज-संज्ञा, पु० (सं०) केवल ब्रह्म के । - स्मरण-शक्ति-वर्धक एक बूटी, शिव की प्रष्ट मानने वाले लोगों का संप्रदाय, ब्रह्मोपासक | मातृकाओं में से एक, ब्रह्मा-संबंधी। पंथ ।
ब्रीड़ना*-- अ. क्रि० दे० (सं० वीडन) ब्राह्मी-संज्ञा, स्रो० (सं०) दुर्गा, भारत की
लजाना, लज्जित होना।
| ब्रीड-बीड़ा-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० व्रीडा ) पुरानी लिपि जिससे नागरी, बँगला आदि
लज्जा, शरम । “समुझत चरित होति श्रआधुनिक लिपियाँ विकसित हुई हैं, बुद्धि और मोहिं ब्रीड़ा"-रामा० ।
भ-संस्कृत और हिंदी की वर्णमाला के खोदा गया गढ़ा। संज्ञा, पु० दे० (हि. पवर्ग का चौथा वर्ण।
भांग ) कूड़ा-करकट, घास-फूस । संज्ञा, पु. (सं०) राशि, ग्रह, नक्षत्र, भंगिमा-संज्ञा, स्त्री० (०) वक्रता, झुकाव ।
भ्रांति, भ्रम, शुक्राचार्य, पहाड़, भ्रमर। (दे०)| "भ्रूभंगिमा पंडिता'"-प्रि० प्र० । भगण (पिं०)।
भंगी- संज्ञा, पु. (सं० भंगिन् ) भंगशील, भंकार*--संज्ञा, पु. (अनु०) विकट या | नष्ट होने वाला, भंग करने या तोड़ने वाला, घोर शब्द ।
भंगकारी। स्त्रो०-भंगिनी । संज्ञा, पु. भंग-संज्ञा, पु. (सं०) भेद, लहर, हार, (सं० भकि ) एक अस्पृश्य नीच जाति, टुकड़ा, खंड, वसा, टेढ़ाई, डर, भय, विध्वंस, दुमार, डाम । स्त्री० भंगिन । वि० (हि. नाश, अड़चन, बाधा, झुकने या टूटने का भांग ) भाँग पीनेवाला, भँगेड़ी। भाव । संज्ञा, स्त्री० भंगता । संज्ञा, पु० दे० भंगुर-वि० (सं०) टूटने या भंग होने वाला, (सं० भंगा) भाँग । “गंग-भंग दोउ नाशवान, नश्वर, टेढ़ा, वक्र । संज्ञा, स्त्री
बहिनि हैं, बसती शिव के अंग"-देव०। भंगुरता । यौ०-क्षण-भंगुर ।। भंगड़-भंगड़ी-वि० दे० (हि. भांग+ | भँगेड़ी- वि० दे० (हि. भंगड़ ) भाँग पीने. अड़-प्रत्य०) बहुत भाँग खाने वाला । वाला-भंगड़। भगोड़ी (ग्रा०)।
| भंजक-वि० (सं०) तोड़नेवाला। स्त्री. भंगना-प्र. क्रि० दे० (हि. भंग ) दबना, भंजिका। टूटना, हार मानना, तोड़ना, दबाना । भंजन-संज्ञा, पु. (सं०) तोड़ना, विध्वंस, स० कि० (दे०) झुकाना, तोड़ना।
विनाश | वि०-तोड़नेवाला, भंजक • वि. भंगरा-संज्ञा, पु० दे० (हि. भांग+रा= | भंजनीय।
का ) भाँग के रेशों से बना वस्त्र । संज्ञा, भंजना, भँजना-अ० क्रि० दे० (सं० भंजन) पु० दे० ( सं० शृंगराज ) भंगराज, भंगेरी, | टूटना, तोड़ना, भुनाना, बड़े सिक्के का छोटे भँगरैया (ग्रा०)।
सिक्कों में बदलना, भुनाना, भुजाना भंगराज-संज्ञा, पु० दे० (सं० भृगराज ) | (ग्रा०) । अ० कि० दे० ( हि० भांजना ) वटा एक काला पक्षी, भंगरा।
या ऐंठा जाना, काग़ज़ के तख्तों का मोड़ा भँगरैया -संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० शृंगराज) जाना, भाँजा जाना । “बिनु भंजे भव भंगरा, पौधा (औष०)।
धनुष विशाला"-रामा० । भंगार-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० भंग ) भँजाना -स० क्रि० दे० (सं० भजन) तोड़ना। बरसाती पानी का गड्ढा, कुआँ खोदते समय "भंजेउ राम शंभु धनु भारी"-रामा ।
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