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१३०३
बोल्लाह
बौरायन व्यवहारिक शब्द-समुदाय या भाषा । मुहा० । बोली ठठोली. कटाक्ष, अधिक देते जाना, --बोलो छाडना, (बोलना या मारना) वर्षा की बूंदों सा किसी वस्तु का अधिक
-व्यंग या उपहास के शब्द कहना। संख्या या मात्रा में श्रा पड़ना। बोल्लाह-संज्ञा, पु० (दे०) घोड़ों की एक | बौड़हा, बौरहा-वि० दे० (हि. चावला) जाति।
बावला. पागल, सिड़ी, बौराह (ग्रा०)। बोधना-स० क्रि० दे० (हि. बोना) बोना, "बर बौराह बरद असवारा"---रामा । छीटना प्रे० रूप-बोवाना।
बौद्ध-वि० (सं०) वह मत जिसे बुद्ध ने बोह-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० बोर ) गोता, चलाया है । संज्ञा, पु० बुद्ध का अनुयायी।
दुबकी, डुब्यो, बड्डी (ग्रा.)। बौद्धधर्म-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) गौतम बुद्ध बोहनी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० बोधन = का चलाया धर्म या मत, इम मत की दो जगाना ) प्रथम या पहली बिक्री। बड़ी शाखायें हैं, (१) हनीयान (२) बोहित-संज्ञा, पु० दे० ( सं० वोहित्य ) महायान। जहाज, बड़ी नाव । ' सभु-चाप बड़ बोहित चौना- सज्ञा. पु० दे० (सं० वामन ) अति पाई "-रामा।
नाटे या छोटे कद या डील-डौल का मनुष्य । बौंड़, बौंडा- संज्ञा, स्त्री०, पु० दे० (सं० स्त्री० बौनो । “अति ऊँचे पर लाग फल,
वोराट = टहनी ) पेड़ की टहनी, लता। बौना चाहै लेन "-कुं० वि० ला। बौड़ना - अ० क्रि० ( हि० बौड़ ) लता की बौरी-ज्ञा, पु० दे० ( सं० मुकुन ) प्राम
भाँति बदना, टहनी फेंकना, छैलना। की मंजरी, श्राम के फूलों का गुच्छा मौर । बौंडर-सज्ञा, पु० दे० (हि. बवंडर) |
बोरना-अ० कि० (हि. बौर+ना-प्रत्य०) चक्करदार हवा, बवंडर।
श्राम के वृक्ष में बौर निकलना, मौरना, बौंडियाना-अ० कि० (दे०) चक्कर खाना,
बौराना (दे०)।
बौरहा - वि० दे० (बावला हि०) बौराह, बौंडी-संज्ञा, स्त्री० (हि. बौड़ ) कच्चे फल, पागल, सिड़ी। ढंदी. ढोंड़, फली, छेमी, छदाम, दमड़ी, !
बौरा-बउरा--वि० दे० (सं० बातुल) पागल, ढोंढी बौंडी (दे०)। पं०-बोंडा। लिड़ी, बावला । "तेहि बिधि कस बौरा वर बोधाना-अ० कि० दे० (हि. बाउ- दीन्हा"- रामा०। माना-प्रत्य०) स्वप्न की दशा का प्रलाप, बौराई*-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. बौरा+ईसंनिपाती या पागल की भाँति अंड बंड प्रत्य० ) पागलपन । अ० कि० (दे०) पागल बकना, बर्राना।
हो जाता है । '' जस थोरे धन खल बौराई" बौखल-वि० दे० (हि. बाउ) पागल, रामा०। सिड़ी।
बौराना---० कि० दे० (हि. बौरा+ बौखलाना-प्र० क्रि० दे० (हि० बाउ+ ना-प्रत्य० ) पागल वा सिड़ी हो जाना,
स्खलन-सं० ) पगलाना, सनक जाना। सनक जाना, बावला होना, विवेक से रहित बोहाड, बौछार सज्ञा, स्त्री० दे० (सं० हो जाना। स० कि० (दे०) किसी को ऐसा वायु + क्षरण ) पानी की नन्हीं नन्हीं बूंदे कर देना कि उसे भले बुरे का ज्ञान न रहे, जो वायु वेग से कहीं गिरती हैं, झास श्राम में बौर भाना, बोरना। (प्रान्ती०) झड़ी, बाता का तार, ताना, बोरायन-सज्ञा, पु. ( हि०) पागलपन ।
घूमना।
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