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बुकुची
१२८७
बुत्ता बुकुची-संज्ञा, स्त्री. (हि. बकुचा + ई०- बुझना का प्रे० रूप ) संतोष देना, समझाना। प्रत्य० ) छोटी गठरी या मुटरी, सुई-तागा स० रूप-बुझावना, प्रे० रूप-बुझवाना। रखने की दज़ियों की थैली।
बुझौवल-सज्ञा, स्त्री० दे० (हि. बुझाना) बुकनी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. बूझना + पहेली, दृष्टकूट ।
ई०-प्रत्य० ) बारीक चूर्ण, बुकुनू (प्रा.)। बुट* -- संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० बूटी ) बूटी। बुकुना-संज्ञा, पु० दे० (हि० बूकना) बुकनी, बुटना*1-अ० कि० (दे०) भागना। चूर्ण, बुकुनू (ग्रा.)।
बुड़ना-अ. क्रि० दे० (हि. बूडना) बुक्का-सज्ञा, पु० दे० (हि. बूकना = पीसना) डूबना, बूड़ना । स० रूप-बुड़ाना, प्रे० रूपअभ्रक का चूर्ण ।
बुड़वाना। बुक्की-संज्ञा, (द०) कंधे पर डालने का कपड़ा। बुड़बुड़ाना-ग्र० कि० (अनु०) मन ही मन बुख़ार-संज्ञा, पु. (अ.) भाफ, ज्वर, ताप, कुढ़ना, बड़बड़ाना ।। शोक, क्रोध, दुःखादि का आवेग, छाते के ! बुडभस-संज्ञा, पु० (ग्रा०) बुदाई की मुर्खता। ऊपर का कपड़ा।
बुड्ढा -वि० दे० ( सं० वृद्ध ) वृद्ध, बूढ़ा। बुजदिल-वि० ( फा० ) डरपोक, कायर, स्त्री० बुड्ढी। भीरु । संज्ञा, स्त्री-बुजदिली।
बुढ़वा -वि० दे० (सं० वृद्ध ) वृद्ध, बुड्ढा । बुजना-सज्ञा, पु० (दे०) स्त्रियों की प्रशुद्धता बुढ़ाई- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० वृद्धता) बुढ़ापा। के समय का एक कपड़ा।
बुढ़ाना-अ० कि० दे० (हि० बूढ़ा+ना-प्रत्य०) बुजहरा, उभारा-संज्ञा, पु० (दे०) पानी बूढ़ा या वृद्ध होना, वृद्धावस्था को प्राप्त होना । गर्म करने का एक बरतन ।
बुढ़ापा-संज्ञा, पु० ( हि० बूढ़ा-+ पा-प्रत्य०) बुजर्ग- वि० (फा०) बड़ा, बृदा। संज्ञा, पु. वृद्धावस्था, बुढ़ाई. वृद्धता।
बाप-दादा, पुरुषा, पूर्वज, बुजुरुग (दे०)। । बुढ़ौती- सज्ञा, स्त्री० दे० (हि. बुड़ापा) बुझना-अ० कि० (दे०) प्राग की लपट बुढ़ापा, वृद्धता, वृद्धत्व । शान्ति होना. पानी से गर्म पदार्थ का ठंढा बुत -- संज्ञा, पु० (फ़ा० मि० सं० बुद्ध) पुतला, होना, गर्म चीज़ पर पानी का छौंका जाना, प्रतिमा, मूर्ति, प्रियतम । वि.-मूर्ति के उत्साहादि मन के वेग का धीमा होना। समान निर्दय और मौन । अव्य० (प्रा.) स. रूप-बुझाना, प्रे० रूप-बुझवाना। | अच्छा, भला । बुझाई-रज्ञा, स्त्री० ( हि० बुझाना ) बुझाने | बुतना-अ० कि० दे० (हि० बुझना) बुझना। की क्रिया का भाव । “रावरे दुहाई तो स० रूप-बुताना, प्रे० रूप-बुतवाना। बुझाई ना बुझेगी फेरि, नेह भरी नाय का की बुतपरस्त-संज्ञा, पु० यौ० फा०; मूत्तिपूजक । देह दिया-बाती सी"--पद०। __ "हिन्दू हैं बुतपरस्त मुसल्माँ खुदापरस्त" बुझाना-स० क्रि० (हि०) अग्नि या जलती - स्फु० । वस्तु को शान्त या ठंढा करना, तपी हुई बुताना-अ० क्रि० (दे०) बुझना। स० क्रि० वस्तु को पानी से ठंढा करना, आवेग बुझाना । “जो जरा सो बरा और बरा सो रोकना । मुहा० ---जहर से वुझाना--किमी बुताना"-तु। हथियार की नोक या धार को गरम करके बुत्ता-संज्ञा, पु० (दे०) छल धोखा, झाँसाविष जल से बुझाना ताकि उसमें भी विष पट्टी, बहाना, हीला । यौ०-बाला-युत्ता। छा जावे, उत्साहादि मनोवेग को शान्त मुहा०--बुत्ता बताना ( देना)-धोखा करना, पानी से छौंकना। स० कि० ( हि• ! देना । वि०-बुत्तेबाज़ ।
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