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बीच
विहराना
१२८३ * R० कि० दे० (सं० विघटन ) रिदीर्ण बीडा-संज्ञा, पु० दे० (हि. बोंडी+आहोना, फटना, फूटना, टूटना । "नव रसाल- प्रत्य० ) टहनियों या पतली लकड़ियों का बन बिहरनसीला।" "बल बिलोकि बिह- पूला या लंबा नाल जो कुआँ खोदते समय रति नहिं छाती"-रामा० ।
कुएं में भगाड़ न गिरने को लगाया जाता है, बिहराना*-अ० कि० दे० ( सं० विहरण) घास का बट कर बनाई हुई गेंडुरी, बाँस फटना।
आदि का बोझ। बिहाग-संज्ञा, पु० (दे०) एक राग (संगी०)। बींधना*-अ० कि० दे० (सं० विद्ध) बिहान- संज्ञा, पु० दे० (सं० विभात) सवेरा, फँसना । स० कि० (दे०) फँसाना, छेदना, कल, अग्रिम दिन, भोर, प्रातःकाल, भिहान बेधना, विद्ध करना, बिंधना। (ग्रा.)। लो०--" जहाँ न कुक्कुट-सब्द बी- संज्ञा, स्त्रो० दे० (फा० बीबी ) बीबी, का, तहाँ न होत बिहान।"
स्त्री, पत्नी, कुलवधू, (प्रान्ती०) बहिन, बिहाना - स० कि० दे० (सं० वि + हा = लड़की । “पूछा जो उनसे बी कहो परदा त्याग ) त्यागना, छोड़ना । पू० का० रूप
कहाँ गया"-अक०। विहाय, बिहाइ। “भजिय राम सब काम
बीका--वि० दे० (सं० वक्र ) टेदा, बाँका। बिहाई"-रामा० । अ० क्रि० (दे०) बीतना,
संज्ञा, स्त्री० (दे०) बीकाई । “बार न बाँका ध्यतीत होना, गुजरना । “निमिप बिहात
करि सकै"---कबी०। कल्प सम तेही"- रामा०। बिहार-संज्ञा, पु० दे० (सं० विहार ) श्रानंद, ।
बीख/*-- संज्ञा, पु० दे० (सं० बीखा ) डग, सैर, क्रीड़ा, केलि ।
क़दम । ( फ़ा० बीख ) जड़ । बिहारना-अ० कि० दे० (सं० विहरण )
बीगी-संज्ञा, पु० दे० (सं० वृक) भेड़िया, बिहार, केलि या खेल करना, क्रीड़ा करना ।
बिगवा (ग्रा०) । स्त्री० बिगिन । बिहाल-वि० दे० (फा० बेहाल ) बेचैन,
बीगना--स० क्रि० दे० (सं० विकीरण ) व्याकुल, विकल । यौ०-हाल-चिहाल
छितराना, बिखेरना, गिराना, छाँटना, (हाल-बेहाल )। "देखि बिहाल बिवाइन
फेंकना, फैलाना। सों"-नरो।
बीघा-संज्ञा, पु० दे० (सं० विग्रह ) खेत बिहि -- संज्ञा, पु० दे० (सं० विधि ) ब्रह्मा। की २० बिस्वे की नाप का एक परिमाण बिहिश्त-संज्ञा, पु० (फ़ा०) वैकुंठ, स्वर्ग। (३०२५ वर्ग गज़ )। बिही-संज्ञा, स्त्री० (फ़ा०) अमरूद, बीही, बीचो-संज्ञा, पु० दे० (सं० विच =अलग अमरूद से फलों वाला एक वृक्ष । अव्य० करना ) किसी पदार्थ का मध्य भाग, मध्य, (ग्रा० प्रान्तो०) बिही के पेड़ के फलों के भेद, अन्तर, बिलगाव । मुहा०-बीच दाने, गाय के हाँकने का शब्द।। करना-झगड़ा निपटाना या मिटाना, बिहीदाना-संज्ञा, पु० यौ० (फ़ा०) औषधि। लड़ने वालों को अलग अलग करना, झगड़ा बिहीन, बिहीना, बिहन--वि० दे० ( सं० तय करना। यौ०-बीच-बचाव-झगड़े विहीन) बिना, रहित, बगैर । " थल-बिहीन | का निपटारा । बीच खेत-खुले मैदान, तरु कबहुँ कि जामा "-रामा० । सब के संमुख । अवश्यमेव, थोड़े थोड़े अंतर बिहोरना-अ० कि० दे० ( हि० विहरना) पर । बीच बीच में- थोड़ी थोड़ी देर में। अलग होना, बिछुड़ना, लौटाना, फेरना, बीच में पड़ना-झगड़ा तय करने को बहोरना (ग्रा.)।
मध्यस्थ होना या पंच बनना, प्रतिभू होना,
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