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बिसरात
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बिसाहनी बिसरातां*-संज्ञा, पु० दे० ( सं० वेशरः) बिसाती-संज्ञा, पु. (१०) तरकी, चूडी, खच्चर।
सुई, तागा, खिलौने धादि का बेचने वाला। बिसराना-स० क्रि० दे० (सं० विस्मरण) बिसाना-अ० कि० दे० ( सं० वश) वश भूलना, भुलाना, विसरावना।
__ या बल चलना, काबू चलना, बसाना बिसराम* ---संज्ञा, पु० दे० ( सं० विश्राम ) (दे०)। "तासों कहा बसाय ।" 1-अ० कि० विश्राम, पाराम | "निपट निकाम बिन राम | दे० (हि. विष+ना-प्रत्य०) विष का विसराम कहाँ'-पमा ।
प्रभाव करना, विसताना (ग्रा०)। बिसरावना * - स० कि० (दे०) बिसराना बिसारद--संज्ञा, पु० दे० (सं० विशारद ) (हि०) भुलाना, भूलना।
। पूर्ण ज्ञाता, विद्वान, दक्ष, कुशल । बिसवास -संज्ञा, पु० दे० (२० विश्वास)बिसारना-स० कि० दे० (सं० विस्मरण ) प्रतीति, भरोसा । " स्वास बस डोलत सो ।
ध्यान न रखना, भुलाना, बिसराना, याको बिसवास कहा"-पद्मा।
बिसरावना (दे०)। 'सुधि रावरी बिसारे बिसवासी-वि० दे० (सं० विश्वासिन् ) |
देत"-रत्ना० । जिसका विश्वास हो, विश्वास करने वाला
विसारा*-वि० दे० (सं० विषालु ) विषैला, स्त्री० बिसवासिनी। वि० (दे०) ( विलो०- | विष-भरा, विषाक्त । स्त्री० बिसारी । सा. अबिसवासी)। अविश्वासी,विश्वासघाती ।
भू०, स० क्रि० दे० (हि. बिसारना) भुलाया, बिसबिसाना-अ.क्रि० (दे०) सड़ना, बज
भुला दिया । “पुनि प्रभु मोहिं बिसारेऊ '' बजाना।
--रामा० । बिससना* -- स० कि० दे० (सं० विश्वसन)
बिसास-संज्ञा, पु० दे० (सं० विश्वास ) एतबार, प्रतीति या विश्वास करना । स०
विश्वास, प्रतोति, भरोला, एतबार । “ताहि क्रि० दे० (सं० विशसन) घात करना, काटना,
बिलासे होत दुख, बरनत गिरधर दाल ।" मारना, वध करना।
बिसासिन, विसासिनि-संज्ञा, स्त्री० दे० बिसहना, बेसहना*-स० कि० (दे०)
(सं० अविश्वासिनी ) जिस स्त्री का भरोसा मोल लेना, बिलाहना, खरीदना, जान-बूझ |
या प्रतीति न हो। कर अपने साथ लगाना। बिसहर* -- संज्ञा, पु० दे० (सं० विषधर )
बिसासी*--वि० दे० (सं० अविश्वासी) साँप, विष वाला। संज्ञा, पु० दे० (सं०
जिस पुरुष का भरोला या विश्वास न हो विपहर ) विष-नाशक ।
सके। स्त्री. विसासिनि, बिसासिनी। बिसाँयँध, बिसाँइध-वि० दे० (सं० वसा
"बोरिगो बिसासी आज लाज ही की = चरबी+गंध ) जिसमें सड़ी मछली की
नैया को "---पमा० । “कबहूँ वा बिसासी सी दुर्गध हो । संज्ञा, स्त्री० (दे०) सड़े माँस
सुजान के आँगन"-घना० । की सी दुर्गधि ।
बिसाहना, बेसाहना-स० क्रि० दे० (हि०) बिसाख, बिसाखा-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० मोल लेना, ख़रीदना, जान-बूझ कर अपने विशाखा) एक नक्षत्र ।
पीछे लगाना । संज्ञा, पु० (दे०) सौदा, मोल बिसात-संज्ञा, स्त्री० (अ.) वित्त, सामर्थ्य, ली हुई वस्तु खरीद, मोल लेने की क्रिया। समाई, औकात, स्थिति, हैसियत, जमा- "आनेउ मोल बिलाहि कि मोही'-रामा। पूंजी, चौपड़ या, शतरंज के खेल का ख़ाने-बिसाहनी-संज्ञा, स्त्री० (हि.) सौदा, माल दार वस्त्र ।
। की वस्तु । भा० श० को०-१६१
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