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बिभु
१२७६
बिरतंत बिभु-संज्ञा, पु. (दे०) स्वामी, परमेश्वर, बियाना-स० कि० दे० (हि० व्याना )
विभु (सं.)। वि० सर्व व्यापक, महान। जनना, बच्चा पैदा करना । बिभौ-संज्ञा, पु० (दे०) ऐश्वर्य, संपत्ति, बियापना*-स० कि० (दे०) व्यापना (हि०) वैभव, विभव (सं.)।
व्याप्त होना। बिमन*-वि० दे० (सं० विमनस् ) उदास, बियाबान-संज्ञा, पु० (फा०) जंगल, उजाड़ सुस्त, दुखी, उन्मन । कि० वि०-बिना मन स्थान, मरुस्थल । के, अनमना होकर । संज्ञा, स्त्री० बिमनता। बियारी, बियाल*-संज्ञा, स्त्री० (दे०) बिमाता-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० विमाता)! व्यालू (हि.), रात का भोजन, विश्रारी सौतेली माँ।
(ग्रा०)। बिमान-संज्ञा, पु० दे० (सं० विमान) श्राका- बियाल-संज्ञा, पु० (दे०) साँप, शेर, विशाल । शीय सवारी, वायु-यान, रथ आदि सवारी, बियाह*-संज्ञा, पु० (दे०) विवाह (सं०), अनादर, मान या अभिमान रहित । बिधाह, व्याह । वि०-बियाहा, स्त्री० बिमानी-वि० दे० (सं० विमानिन् )
२) बियाही। आदर या सत्कार रहित, मान-रहित, निरभि- बियाहता-वि० सी० दे० ( सं० विवाहता) मानी। “बिमानी कृत राजहंस"-राम० जिसके साथ विवाह हुथा हो । बिमोहना-स० क्रि० दे० (सं० विमोहन ) वियोग-संज्ञा, पु. दे० (सं० वियोग ) लुभाना, मोहना, मोहित करना। अ० क्रि०
| बिछोह । वि० बियोगी, स्त्री०-बियोगिनी। (दे०) मोहित होना, लुभाना। " को सोवै ।
"तो प्रभु कठिन बियोग-दुख"- रामा० । को जागै अस हौं गयेउँ बिमोह"-- पद्मा०। विरंग-वि० (हि०) कई रंग का, बेरंग का । विय -वि० दे० (सं० द्वि) दो, युग्म, विरकत-वि० दे० (सं० विरक्त) विरक्त, दूसरा । —संज्ञा, पु० दे० (सं० बीज ) योगी, सन्यासी । “बैरागी बिरकत भला, बीज, बिया (ग्रा.), बीजा।
गेही चित्त उदार"—कबी०। बियत-संज्ञा, पु० दे० (सं० वियत्) आकाश, नभ, व्योम, गगन ।
बिरख, बिरिख-संज्ञा, पु० (दे०) वृष (सं०)। बिया-संज्ञा, पु० दे० (सं० बीज) बीज,
बिरखभ-संज्ञा, पु० (दे०) बैल, वृषभ (सं०)। बीजा (दे०)। "बोवै बिया बबूर का, प्राम
बिरचना-स० क्रि० दे० (सं० विरचन) कहाँ तें होय"-०।
बनाना । अ० क्रि० (दे०) मन उचटना। बियाज-संज्ञा, पु० दे० (सं० व्याज) बहाना, बिरचुन, बेरचुन-संज्ञा, पु० दे० यौ० सं० सूद, मिस, ब्याज।
| वदरचूर्ण ) बेर का चूर्ण ।। बियाधा*-संज्ञा, पु० दे० (सं० व्याधा) | बिरछ, बिरछा-संज्ञा, पु. (दे०) वृत्त
व्याधा, बहेलिया, शिकारी, बियाध। (सं०), पेड़, बिरिछ (ग्रा.)। बियाधि, बियाध, बियाधा--संज्ञा, स्रो० बिरछिकछ- संज्ञा, पु० (दे०) वृश्चिक
दे० (सं०व्याधि) व्याधि, रोग, कष्ट. बियाधी (सं०), बिच्छू, बीछी, बीछू, वृश्चिक राशि । (ग्रा.)। "ज्यों बिन बौखधि बहै बियाधि" बिरझना--अ० क्रि० दे० (सं० विरुद्ध ) –पाल्हा०।
__ झगड़ना। बिरझाना-- मचलना, आग्रह बियाना-संज्ञा, पु० दे० (हि० व्यान) करना, बिरुझाना, बिरुझाना (ग्रा०)। व्यान, व्याना, उत्पन्न करना । “न तरु | बिरतंत -संज्ञा, पु० (दे०) वृत्तांत (सं०)। बाँझ भलि बादि बियानी"-रामा। हाल, वर्णन, बिरतांत ।
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