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बिधावट
बिपत, विपति, विपद बिधावट-संज्ञा, पु. ( सं० विधाना) छेद, -राम० । मुहा०--बिना आये तरना
साल, रंध्र, विधने का भाव, बिंधाई। समय से प्रथम मर जाना। बिना रोये बिधि-संज्ञा, स्त्री०, पु. दे. (सं० विधि ) लड़का दूध नहीं पाता-बिना प्रयत्न कुछ रीति, कायदा, व्यवस्था, नियम, ब्रह्मा ।
भी नहीं मिलता। मुहा०-विना भय "विधि-निषेधमय कलि-मल हरनी"-रामा।
प्रीति नहीं-पराक्रम दिखाये बिना प्रभाव बिधिना-संज्ञा, पु० दे० (सं० विधिना )। नहीं जमता । लो०--बिना माँगे तो दूध ब्रह्मा, बिधाता, विरंचि ।
बराबर, माँगे दे तो पानी बराबर -माँगना
बुरा है। बिधुर-वि० (सं० विधुर) व्याकुल, भयभीत,
"बिनाई - संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. विनना) बिनअसमर्थ, दुखित, रंडा । नी० बिधुरा।।
वाई, बिनने या चुनने की क्रिया, भाव या बिन, बिनु*--अव्य० दे० (हि. बिना)
मज़दूरी, बुनना क्रिया का भाव या मजदूरी बिना । "राम नाम बिन गिरा न सोहा" बिनाती, बिन्ती -- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० -~रामा०।
विनती ) विनय, नम्रता । बिनई*-संज्ञा, पु० दे० (सं० विनयी)
| विनानी-वि० दे० (सं० विज्ञानी ) अज्ञानी, विनयी, नम्र, नीतिज्ञ । "सा बिनई बिजई विज्ञानी, अनजान, अनारी। संज्ञा, स्त्री० दे० गुन-सागर "-रामा०।
| (सं० विज्ञान ) विशेष ज्ञान या विचार, बिनउ, बिनव* - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० सांसारिक पदार्थों का यथार्थ ज्ञान, गौर । विनय ) विनय ।
बिनावट-संज्ञा, स्त्री० (दे०) बुनाका (हि.)! बिनति, बिनती, बिन्ती- संज्ञा, स्त्री० दे० बिनासना-स० कि० दे० ( स० विनष्ट ) (सं० विनय ) विनय, निवेदन, प्रार्थना।। नाश या बरबाद करना, नष्ट भ्रष्ट या संहार "बिनती बहुत करउँ का स्वामी"- रामा। करना । बिनन-संज्ञा, पु० दे० (हि० बिनना ) कूड़ा- बिनि, बिनु*-अव्य० दे० (हि० बिना)
कर्कट चुनना, बीनने का भाव, बीनन (दे०) बिना, बगैर, सिवाय । बिनना, बीनना-- स० क्रि० दे० (सं० वीक्षण) | बिनूठा-वि० (दे०) शुद्ध, पवित्र, अनोखा,
चुनना, छाँटना, अलग करना, वस्त्रादि बुनना। अनूठा (हि.)। बिनवना-अ० क्रि० दे० (सं० विनय ) विनै*-संज्ञा, स्त्री० (दे०) नम्रता, विनय प्रार्थना या विनय करना, मिन्नत करना। (सं०) बिनय, बिनती। "पुनि बिनवौं पृथुराज समाना"- रामा। बिनौना-स० कि० दे० ( सं० विनय ) विनय बिनवाई--संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. बिनावना) या बिनती करना, अर्चना, पूजना, ध्यान
बिनने का काम. बिनने की मजदूरी, बिनाई। करना, छाँटना। बिनसना*-अ० क्रि० दे० ( सं० विनाश) चिनौला-संज्ञा, पु० (दे०) बिनौर (दे०)। नाश होना, बरबाद या ख़राब होना, नष्ट- कपास का बीज, कुकटी (प्रान्ती०)। भ्रष्ट होना, मिट जाना। स० रूप-विनसाना, बिपच्छ* --संज्ञा, पु० दे० (सं० विपक्ष) प्रे० रूप-बिनसवाना। स० कि. (दे०) नष्ट बैरी, विरोधी, शत्रु। वि०-प्रतिकूल, विरुद्ध, करना । "बिनसत बार न लागई, श्रोछे नर विमुख, नाराज ।। की प्रीति"-० नीतिः।
बिपच्छी* - संज्ञा, पु० दे० (सं० विपक्षिन्) बिना--प्रव्य० दे० सं० विना) रहित, छोड़ विरोधी पत्त का, शत्रु । कर, बगैर । "राम विना संपति, प्रभुताई" बिपत, बिपति, बिपद - संज्ञा, स्त्री० दे०
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