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बिजार १२७१
बिडर। बिजार-संज्ञा, पु० (दे०) बैल, वृषभ, साँड । बिट-संज्ञा, पु० दे० (सं० विट) वैश्य, धनी, वि० (दे०) बीजवाला । वि० (दे०) बीमार, खल, नीच, नायक का कला-निपुण सखा बेजार (ग्रा०) संज्ञा, स्त्री० (ग्रा०) बिजारी- (काव्य, नाट्य०) । "नट, भट, विट, गायक बेजारी-बीमारी।
नहीं, भूपति हू हैं नहिं । " भ० भा० । बिजारा-संज्ञा, पु० (दे०) बीजवाला, बीज- बिटना--अ० कि० (दे०) बिथरना, छिटकना, युक्त विजार (दे०)।
छिटकजाना । स० रूप-बिटाना प्रे० रूप. बिजुरी, बीजुरी*-संज्ञा, स्त्री० (दे०) (सं० बिटवाना।
विद्युत्) बिजली, दामिनी, विद्युत् । बिटप, विटपी-संज्ञा, पु० दे० (सं० विटप) बिजूका, बिजूखा- संज्ञा, पु० दे० पशु- पेड़, वृक्ष । " लागे बिटप मनोहर नाना"-- पक्षियों को डराने को खेतों में लकड़ी पर रामा० । रखी हुई काली हाँड़ी।
बिटरना-अ० क्रि० दे० (सं० विलोड़न ) बिजे-संज्ञा, स्त्री० (दे०) विजय (सं०) जीत । गंदा होना, घुघोरा जाना । ( स० रूप बिजोग-*-- संज्ञा, पु० (दे०) वियोग बिटारना, ग्रे० रूप-बिटरवाना)।
(सं०) बिछोह : वि. बिजोगी (दे०)। बिटिया, बिटिनियाँ-संज्ञा, स्त्री० दे० बिजोना-स० कि० (दे०) भली भाँति देखना। (हि० बेटी ) बेटी, पुत्री, लड़की, बिटीवा,
"प्रिय ठाढ़े भे मरम लखि, तिय उत रही बिटेनी (ग्रा०)। बिजोय"।
बिटौरा, भिटौरा-संज्ञा, पु० (दे०) उपलों बिजोरा-वि० दे० (सं० वि-ज़ोर फा० = ! या कंडों का ढेर, चींटों का भीटा। वल) निर्बल, अशक्त।
बिट्ठल-संज्ञा, पु० दे० ( सं० विष्णु ) विष्णु, बिजोहा--संज्ञा, पु० (दे०) विमोह, विज्जूहा,
भगवान, पंढरपुर की विष्णु-मूर्ति (बम्बई), एक वर्णिक छंद (पि०)।
वल्लभाचार्य के शिष्य विट्ठलनाथ । बिजौरा- संज्ञा, पु० दे० (सं० बीजपूरक )
बिडंब-संज्ञा, पु० दे० (सं० विडंब) पाडंबर, एक प्रकार का बड़ा तीव्र नींबू ।
ढोंग । “विडंबयंत सित वाससस्तनुम् "बिजु* - संज्ञा, पु० दे० (सं० विद्युत् )
माघ० । बिजली । "बिज्जु कैसी उजियारी"-रत्ना० ।
बिडंबना* -- अ० क्रि० दे० (सं० विडंबन ) बिजुपात* --संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० विद्युत्थात ) वज्रपात, बिजली गिरना ।
स्वरूप बनाना, नकल उतारना । संज्ञा, स्त्री० बिज्जूल*-संज्ञा, पु० दे० (सं० विजुल )
उपहास, निंदा, हँसी । "केशव कोदंड
बिसदंड ऐसे खंडे अब, मेरे भुजदंडन की छाल, खाल, स्वचा, छिलका, चमड़ा । संज्ञा, स्रो० दे० ( सं० विद्युत् ) बिजली।।
बड़ी है विडंबना' । “केहि कर लोभ विज्जू, बीनू-संज्ञा, पु० (दे०) बिल्ली-सा
बिडंबना, कीन्ह न यहि संसार"--रामा । एक जंगली जतु ।
बिड-संज्ञा, पु० दे० (सं० विट् ) वैश्य, बिज्जूहा-संज्ञा, पु० (दे०) बिजोहा, बिमोहा नीच, धनी। एक वर्णिक, छंद (पि०)।
बिड़कन--संज्ञा, पु० (दे०) बटेर, लवा। बिझकना, बिझुकना*-अ० कि० दे० (हि. “बिड़कन घनघूरे, भति के बाज जीव"झोंका) भड़कना, बिचकना, डरना, तनना, | राम। वक्र होना । स० रूप-विभकाना, विझुकाना बिड़र- वि० दे० ( हि० बिडरना ) तितरप्रे रूप-बिझकवाना।
| बितर, अलग अलग, दूर दूर, छितराया
ना
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