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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बालमखीरा १२६३ बालूसाही तम, प्रेमी, स्वामी, पति । " बालम बिदेश | बालाखाना-संज्ञा, पु. यौ० (फा०) मकान तुम जात हो तो जाउ किंतु " - पद्मा०।। या कोठे के ऊपर का कमरा या बैठका । बालमखीरा संज्ञा, पु. (हि०) एक तरह बालापन--संज्ञा, पु. ( हि०) बालापन । का बड़ा खीरा । बालावर--संज्ञा, पु० (फ़ा०) एक अँगरखा । बालमीकि-संज्ञा, पु० दे० ( सं० वाल्मीकि) बालाक - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) प्रातःकाल आदि काव्य रामायण के कर्ता एक मुनि। या कन्पाराशि का सूर्य, बालरवि । बालमुकंद-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) शिशु- बालि-संज्ञा, पु. (सं०) सुग्रीव का भाई कृष्ण । " रोवत है अति बालमुकंदा"- और अंगद का पिता, किष्किंधा का राजा । वृज वि० । "नाथ बालि अरु मैं दोउ भाई"-रामा० बाललीला--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) बच्चों बालिका--संज्ञा, स्त्री० (सं०) कन्या, पुत्री, का चरित या खेल। छोटी लड़की। बालवत्स-संज्ञा, पु. (सं०) कबूतर, छोटा बालिग-संज्ञा, पु. (अ.) प्राप्तवयस्क, बछवा, लड़कों पर दयालु । | जवान. युवा । ( विलो०- नाबालिग)। बालविधु-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) शुक पक्ष चालिश-संज्ञा, स्त्री. फा०, तकिया। वि० की द्वितीया को चंद्रमा । " भाले बालविधु (२०) अज्ञान, मूर्ख, अबोध, बालिस (दे०)। र्गलेचगरलं यस्योरमिव्यालराट"..-रामा०। बालिश्त -- संज्ञा, पु० (फा०) बित्ता, बीता। बालसुख-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) लड़कपन बालिस-वि० दे० ( सं० बलिश ) मूर्ख । का सुख, बालकों का आनंद । बाली--संज्ञा, स्रो० दे० (सं० बालिका ) बालसूर्य-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) प्रातःकाल कान का एक गहना, बारी (दे०)। संज्ञा, का सूर्य, बालरवि। स्त्री० दे० ( हि. वाल ) जौ, गेहूँ श्रादि की बाला-संज्ञा, स्त्री० (सं०) युवती, १२ या १३ वर्ष से १६ या १७ वर्ष तक की बाल । यौ०-सुट्टा चाली। संज्ञा, पु० दे० जवान स्त्री, स्त्री, पत्री, औरत, दो वर्ष की (सं० वालि ) बालि नामक वानर । 'बाली रिपुबल सहइ न पारा'-रामा० । कन्या, पुत्री, १० महाविद्याओं में से एक महाविद्या, एक वर्णिक छंद ( पिं० ), हाथ बालुका--- संज्ञा, स्त्री० (सं०) वालू. रेत । का कड़ा, वलय । वि० (फा०) जो ऊपर बालू, बारू-संज्ञा, पु० दे० (सं० वालुका ) हो, ऊँचा । " सुबाला हैं दुशाला हैं पहाड़ों से बह पाकर नदियों के तटों पर विशाला चित्रशाला हैं '--पमा० । मुहा० जमा हुआ पत्थरों का बारीक चूर्ण, रेणुका, बोल बाला रहना-मान-सम्मान सदा बालुका, रेत । 'अम्बर उम्बर साँझ के अधिक होना । संज्ञा, पु. ( हि० बाल ) जो ज्यों बारू की भीत"-वृं० । मुहा०लड़कों के समान हो, सरल, निष्कपट, बालू को भोत शीघ्र नष्ट होने वाला श्रज्ञान । यो०-चाला-भोला-भोला पदार्थ, अस्थायी वस्तु या कार्य। भाला, बहुत ही सीधा सादा । वि० (फा०) बालूदानी-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (हि. ऊपर का, ऊपरी, आय से अतिरिक्त । बूलू + दानी-फा०) झंझरीदार डिबिया जिसमें बालाई-संज्ञा, स्त्री० (फा० वाला--- ई०-प्रत्य०) बालू रखते हैं और स्याही सुखाने का कार्य गर्म दूध का ऊपरी सारांश, सादी, मलाई। लेते हैं। वि० ( फ़ा० ) ऊपरी, ऊपर का, वेतन के बालूसाही-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (हि. अलावा। बालू + शाही-फा० ) एक मिठाई । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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