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बाबी
१२५६
बार बाबी*-संज्ञा, स्त्री० (हि. बाबा ) संन्या- (अ० वयाना ) अगाऊ, बयाना । " थाजु सिनी, साधु स्त्री, छोटी बच्ची, दादी। भले घर बायन दोन्हा"-रामा० । बाबुल-संज्ञा, पु० दे० ( हि० वाबू ) बाबू। मुहा०-चायन देना-छेड़छाड़ करना । बाबू-संज्ञा, पु० दे० ( हि० बाबा ) राज- वायत्र-- संज्ञा, पु० दे० (सं० वायव्य) वायव्य वंशीय या रईस क्षत्रियों का प्रतिष्ठा-सूचक कोण । क्रि० वि० (दे०) अलग, दूर, अन्य, शब्द । यौ० राजा-बान-श्रादर सूचक शब्द, दूपरा । स० कि० (दे०) बनियाना। भला मानुप, पिता का संबोधन शब्द, चायबिडंग --संज्ञा, पु० दे० (सं० विडंग) दप्तर का क्लर्क ( मुन्शी) या हाकिम, एक पेड़ जिसके काली मिर्च से कुछ छोटे बवुया (दे०) । स्त्री. बबुआइन ।
फल औषधि के काम आते हैं। " धूम बाबूना-संज्ञा, पु. ( फा०) एक छोटा पौधा बायबिडंग को करि वायु-शूल मिटाइये"जिसके फूलों से तेल बनता है।
वै० भुष. बाभन-संज्ञा, पु० दे० (सं० ब्राह्मण ) ब्रह्मण बायबी-वि० दे० ( सं० वायवीय ) बाहरी,
भूमिहार, बाँभन, बाम्हन (दे०)। अपरिचित, अजनबी, नवागंतुक । वि० (दे०) वाम-वि. द. ( सं० वाम ) दाहिने के वायव्यीय, वायव्य कोण का। विरुद्ध, विरुद्ध, प्रतिकूल । संज्ञा, स्त्री० बायव्य -- संज्ञा. पु० (सं०) वायु-कोण, पश्चिम बामता : संज्ञा, पु० (फा०) कोठा, अटारी। और उत्तर के मध्य का कोण । वि० (सं०) संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० बामा ) स्त्री। "भयो वायु सम्बन्धी बाम बिधि, फिरेउ सुभाऊ'' - रामा। बायाँ बाँवा-वि० दे० ( सं० वाम ) दाहिने " स्थामा बाम सुतर पर देखी " | " बाम का विरोधी, वाम किसी प्राणी की देह का ह ह्र बामता करै है, तौ अनोखी कहा, वह पार्श्व जो पूर्व भिमुख होने पर उत्तर नाम निज बाम चरितारय दिखावै है" की ओर हो । ( लो० बाई । मुहा०-रसाल ।
बायाँ देना-- बचा कर निकल जाना, बाय-बाव-वि० दे० (सं० वाम ) बायाँ, जानबूझ कर छोड़ देना। उलटा, विरुद्ध, बाम, चूका हुआ, लघर या दाँव पर न प्रतिकूल । यो दाहिना-बायाँ । संज्ञा, पु. बैठा हुा । मुहा०—याय देना-छोड़ दे० (सं० वामीय ) बायें हाथ से बजने देना, बचा जाना, कुछ ध्यान न देना, तरह, वाला तबला।।
देना, फेरा लगाना, चक्कर देना। बायें-क्रि० वि० दे० (हि० बायाँ ) वाम बाय*-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० वायु) वायु, थोर, विपरीत, विरुद्ध, प्रतिकूल । यौ० बाई, बात रोग । " नाग, जलौका, बाय" दाहिने-वायें। जे बिन काज दाहिने-बाँयें" -~-वैद्यक० । संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० वापी) -रामा० । मुहा०-बायें (वाम) बावली, वापिका, बेहर (प्रान्ती०)। होना-प्रतिकृल या विरुद्ध होना, अप्रसन्न बायक-संज्ञा, पु० दे० ( सं० वाचक) दूत, होना। धावन, कहने, पढ़ने या बाँचने वाला, बायो-स० क्रि० (दे०) फैलाया, पसारा । बताने वाला।
बारंवार-कि० वि० दे० ( सं० वारंवार ) बायन-बायना*----संज्ञा, पु० दे० ( सं० पुनः पुनः, बार-बार, लगातार, निरंतर । वायन ) उत्सवादि पर बंधुवों या मित्रों के बारंबार सुता उर लाई''-- रामा० । यहाँ भेजी गई मिठाई आदि, भेंट, उपहार, बार-संज्ञा, पु० दे० ( सं० वार ) ठिकाना, बइना, बैना (ग्रा० )। संज्ञा, पु० दे० श्राश्रय, द्वार, दरवाज़ा, दरबार । संज्ञा, स्त्री०
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