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१२३३
बनिहार
धबूर, बबूल, बंबूर निहार-संज्ञा, पु० दे० (हि. वनी+ बपतिस्मा- संज्ञा, पु० दे० ( अं० बैप्टिज्म) हार प्रत्य०) कृषि के कार्यार्थ नियुक्त सेवक । । किसी को ईसाई बनाने का संस्कार (ई.)। बनी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० घन ) वन का बपना*1--स. क्रि० दे० (सं० वपन ) बीज एक खंड, वनस्थली, बाग, वाटिका । संज्ञा, श्रादि बोना । संज्ञा, पु० (दे०) वपन, बीज स्रो० ( हि० घना ) दुलहिन, नववधू, स्त्री, बोने का कार्य । नायिका । संज्ञा, पु० दे० ( सं० वणिक् ) | बपु*-संज्ञा, पु० दे० (सं० वपुस् ) देह, रूप, बनिया । संज्ञा, स्त्री० (ग्रा०) कृषि के शरीर, तनु, अवतार । मज़दूरों का मजदूरी में दिया गया अन्न। बपुख-पुष* ---संज्ञा, पु० दे० ( सं० वपुस् ) बनीनी-संज्ञा, स्त्री० ( हि० बनियाँ-ईनी- देह, शरीर।। प्रत्य० ) वैश्य जाति या बनियाँ की स्त्री, | बपुरा, बापुग-वि० दे० (सं० वराक ) बानिनि (ग्रा.)।
दुखिया, बेचारा । व्र० भा० बापुरी। बनीर* -संज्ञा, पु० दे० (सं० वानीर ) बेंत । “कहा सुदामा वापुरो-रही । "हम को बनेठी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० बन+सं. - बपुरा सुनिये मुनिराई"-रामचं० । यष्टि ) पटेबाज़ों की लाठी, जिसके सिरों | बपौती-संज्ञा, पु० दे० ( हि० बाप-+ौती पर लट्ठ लगे रहते हैं।
--प्रत्य०) बाप का धन, पैतृक सम्पत्ति । बनैला-वि० दे० (हि. वन + ऐला-प्रत्य०) “मोरि बपौती बहुबो लैकै कैसे राज करै
वन्य, वन-संबंधी, जंगली। स्त्री०-बनैली। परिमाल"-पाल्हा। बनोबास*-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० बप्पा-संज्ञा, पु० दे० ( हि० बाप ) बापा वनवास ) बनवास ।
(ग्रा.) बाप, पिता, जनक, बापू (दे०)। बनौटिया-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० बनावट) बफारा-संज्ञा, पु० दे० (हि. भाफ+ कपासी रंग, कपास के रंग के समान।।
आरा--प्रत्य० ) औषधि मिले पानी की बनौठी--वि० दे० ( हि० धन + प्रौठी
भाफ से शरीर के किसी रोगी अंग को प्रत्य० ) कपास के फूल जैसे रंग वाला, | सेंकना । "न्यारो न होत बफारो ज्यों धूम कपासी रंग।
सों"-देव०। बनोरी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० वन =पानी
बबकना-क्रि० अ० (अनु०) उत्तेजित +ोला ) छोटा ओला, पत्थर ।
होकर बोलना, उछलना, बमकना (दे०) बनौधा-वि० दे० (हि० बनाना+ौवा
" बबकि उठि फूलि बसुदेव रैया"--सूर० । प्रत्य० ) बनावटी, झूठा, दिखावटी। बन्हि - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० वह्नि) अग्नि,
बबर-संज्ञा, पु. (फा०) बवर देश का आग । " पिपीलिक नृत्यति वह्नि मध्ये ।” |
सिंह, बड़ा शेर, बब्बर (दे०)। अपंश---संज्ञा, पु० दे० ( सं० वप्रांश ) बपौती, |
| बबा–संज्ञा, पु० दे० (हि. पाषा ) बाबा, बाप का धन।
दादा, पिता । "चेरी हैं न काहू हम ब्रह्म के बप*-संज्ञा, पु० दे० (सं० वप्र) पिता, |
बबा की ऊधो"-ज० श० । बाप, बापा, बप्पा (दे०)।
बबुना-चबुवा-संज्ञा, पु० दे० ( हि० बाबू ) बपमार-वि० दे० (हि. बाप+ मारना) जमीदार, रईस, लड़के या दामाद के लिये अपने बाप का मार डालने वाला, सब के प्यार का शब्द । स्त्री० बबुाइन, बबुवानी, साथ धोखा करने वाला । "अंगद क्यों न | बबुई । हनै बपमारै"-रामचं० ।
| बबूर,बबूल,बंबूर-संज्ञा, पु० दे० (सं०वब्वूर) भा० श. को०-१५५
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