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अपामार्ग
११३
अपुनीत अपामार्ग---संज्ञा, पु. ( सं० ) चिचड़ा, लंगड़ा, असमर्थ, अशक्त, श्रालसी, सुस्त, अजाझारा, लटजीरा, चिचड़ी।
काम करने के योग्य जो न हो। " गुड़ीच्यपामार्ग, बिडंग, शंखिनी "- अपि—अव्य० (सं० ) भी, ही, निश्चय, वै० जी० ।
ठीक। अपाय-संज्ञा, पु० (सं० ) विश्लेष, अल- | अपिच-अव्य० (सं० ) और, अरु, अडर । गाव, अपगमन, पीछे हटना, नाश, क्षय, (दे०) श्री, संयोजक शब्द । हानि, अपचय, पलायन ।
अपिंडी--वि० ( सं० ) अशरीरी, देह8 ( दे० ) अन्यथाचार, अनरीति, उत्पात रहित । वि० (सं० अ+पाय --हि-पैर.) बिना अपितु-अव्य. ( सं० ) किन्तु, परन्तु, पैर का, लँगड़ा, अपाहिज, निरुपाय, बल्कि । असमर्थ ।
अपिधान--संज्ञा, पु० (सं० ) आच्छादन, अपायो-वि० (सं० ) पलायित, मृत, यावरण, ढक्कन । चलित, निरूपाय ।
अपीच ----वि० (सं० अपीच्य ) सुन्दर, अपार-वि० (सं०) सीमा रहित, अनंत, । अच्छा, छविमान, शोभायुक्त। असीम, बेहद, असंख्य, अतिशय, अत्यधिक । | अपीन—वि० ( सं० ) हलका, क्षीण, कृश । अपारकः-संज्ञा, पु. ( सं० ) अक्षम, पीनस----संज्ञा, पु० (दे० ) एक प्रकार क्षमता रहित।
का नासिका-रोग, पीनस । अपार्थ—संज्ञा, पु. ( सं० ) वाक्यार्थ के
अपील-संज्ञा, स्त्री० ( अं० ) निवेदन, स्पष्ट न होने का एक दोष विशेष
विचारार्थ प्रार्थना, मातहत अदालत के ( काव्यशास्त्र )।
फैसले के विरुद्ध ऊँची अदालत में फिर से अपार्थक्य-संज्ञा, पु. ( सं० अ-+-पृथक् ) विचार करने के लिये मामला या मुकदमा जो पृथक् न हो, अभिन्नता, अभेद, एकत्व, |
उपस्थित करना। पृथकता-रहित, विलगाव-विहीन ।
अपीलान्ट--संज्ञा, पु० (सं० ) अपील अपाव*---संज्ञा, पु० दे० ( सं० अपाय
करने वाला, प्रार्थी. निवेदक, मुद्दई ।। नाश ) अन्यथाचार, अन्याय, उपद्रव,
अपुत्र--वि (सं०) निस्सन्तान, पुत्र-हीन, अनरीति ।
निपूता, (दे० ब्र०)। अपावन–वि. पु. ( सं० ) अपवित्र,
निपुत्री (दे० ) सन्तान-रहित । अशुद्ध, मलिन, अपुनीत, अशुचि ।
अपुन-सर्व० दे० ( हि० अपना ) अपने स्त्री० अपावनी।
श्राप । संज्ञा, स्त्री० अपावनता।
"अपुन भरोसे लरिहौं”- सूर० । अपाश्रय-वि० पु० (सं० ) अनाथ, दीन, | अपना-अपनपौ--संज्ञा, पु० दे० ( हि० निराश्रय, असहाय. अरक्षक ।
अपना---पन–प्रत्य० ) अपनापन, 'अपनअपाश्रित-वि० (सं० ) त्यागी, एकान्तः । पौ'। (दे० ) अात्म भाव, अपनाइत ।
सेवी, एकान्तवासी, उदासी, विरक्त । (दे० ) अपौती (दे० प्रान्ती० )। स्त्री० अपाश्रिता।
अपुनीत–वि० ( सं० ) अपवित्र, अशुद्ध, अपाहिज-अपाहज-वि० दे० ( सं० । अशुचि, दूषित, अपावन, दोषयुक्त । अपभंज, प्रा० अपहंज ) अंगभंग, खंज, लूला- | संज्ञा, स्त्री० भा० (सं० ) अपुनीतता । भा० श० को०-१५
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