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बढ़ाव
बढ़ाव - संज्ञा, पु० दे० ( हि० बढ़ाना + श्राप्रत्य० ) वृद्धि, बढ़ना क्रिया का भाव । स्त्री० बढ़वारी - बढ़ने की भाव, वृद्धि । बढ़ावा - संज्ञा, पु० दे० ( हि० बढ़ाव ) मन को उमगाना, उत्तेजना, प्रोत्साहन, साहस या हिम्मत उत्पन्न करने वाली बात । मुहा०- बढ़ावा देना - प्रोत्साहन या साहस देना ।
बढ़िया - वि० दे० ( हि० बढ़ना) अच्छा. चोखा, उत्तम, बहुमूल्य | विलो० घटिया । बढ़या) - वि० दे० ( हि० बढ़ाना, बढ़ना + ऐया प्रत्य० ) बढ़ने या बढ़ाने वाला, बढ़वैया (दे०) || संज्ञा, पु० (दे०) बदई । बढ़ोतरी - संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (हि० बाढ़ + उत्तर ) उन्नति, बढ़ती क्रमशः वृद्धि, बढ़वारी ।
बकि - संज्ञा, पु० (सं०) बनिक (दे०), सौदागर, विक्रेता, बनियाँ, व्यापारी, व्यवसायी । " बैठे बणिक वस्तु लै नाना'
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रामा० ।
वणिज - संज्ञा, पु० (सं०) बनिज (दे० ), सौदागरी, व्यापार व्यापारी । " साहिब मेरा बानियाँ, बणिज करे व्यापार" - कवी० । वणियाँ - संज्ञा, पु० दे० (सं० वणिक) बनियाँ | बत- संज्ञा, पु० ( ग्र०) बात, करार, एक जल जीव, बतख, एक कीड़ा ।
बतकहा – संज्ञा, पु० (दे०) बातूनी, गप्पी | बतकही- संज्ञा, स्त्री० यौ० दे० (हि० बात + कहना ) बातचीत, वार्त्तालाप, वाद-विवाद | " करत बतकही अनुज सन - रामा० । बतख - संज्ञा, स्त्री० ( ० बत) हंस की जाति का एक जल-पक्षी |
बतलाना बताना - स० क्रि० दे० ( हि० बात + ना - प्रत्य० ) बतलाघना, बतावना (दे० ), कहना, जताना, समझाना भाव बताबा, ठीक करना, मार-पीट कर ठीक करना, बात करना, बतियाना ( प्रान्ती ० ) | वि० (दे०) बतैया, बतवैया । बतवाना - स० क्रि० (दे०) बात करने में लगाना, कहवाना, उत्तर दिलाना । बताना - स० क्रि० दे० ( हि० बात + ना -- प्रत्य० ) बतलाना, जताना, समझाना, प्रदर्शित या निर्देश करना नाचगान में हाथ आदि से भाव प्रगट करना, दिखाना, ठीक करना ( मार पीट कर - व्यग्य ) । प्रे० रूपबवाना, (दे०) बताघना |
बतचल - वि० दे० यौ० ( हि० बात चलाना) बतास | - संज्ञा, ५० दे० ( सं० वातसह ) बकवादी ।
वायु, पवन, बात रोग, गठिया, बतास । संज्ञा स्त्री० यौ० दे० ( हि० बात + मास ) बातचीत करने की लालसा । "बैहरि बतास है चबाव उमगाने मैं ". -ज० श० ।
बतबढ़ाव - संज्ञा, पु० दे० यौ० (हि० बात + बढ़ाना ) झगड़ा बढ़ाना, बातों बातों में व्यर्थ ही विरसता बढ़ाना । भा० श० को ० – १२४
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बतास
बर्तावना - संज्ञा, पु० (दे० ) हि० बातूनी ( हि० ) |
बतरस - संज्ञा, पु० यौ० ( हि० बात + रस ) बातें करने का श्रानंद, बातचीत का स्वाद या मज्ञा । " बतरस लालच लाल की " — वि० ।
बतरानri - क्रि० प्र० दे० ( हि० बात + आना - प्रत्य० ) बातें या बातचीत करना । "हम जानी अब बात तुम्हारी सूधे नहिं बतरात '' - सुत्रे० । स० क्रि० बतरावना (दे०) बतलाना । " से बतराय देउ ऊधो हमें तुमहूँ तो श्रति निपट सयाने " - भ्र० गी० । बतरौहाँ - वि० दे० ( हि० बात ) बातचीत का अभिलाषी या इच्छुक, वार्तालाप में प्रवृत्त । स्रो० बतरौहीं । बतहा - वि० (दे०) बात- रोगी, वायु-दोष
कारक ।
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