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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बटना १२२२ बटोरना बटने क्रिया का भाव या काम। संज्ञा, पु. “राजिवलोचन राम चले तजि बाप को (अं०) कपड़े की धुंडी, बोताम। राज बटाऊ की नाई'- कवि० । मुहा०बटना-स. क्रि० दे० (सं० वट = घटना ) बटाऊ होना-चल देना। वितरित होना, टना, कई तागों या तारों बटाका* --वि० दे० (हि. बड़ा+क) को मिलाकर ऐंठना जिससे सब मिलकर बड़ा, ऊँचा, उत्तुंग। एक हो जावें। द्वि० रूप-घटाना. प्रे० रूप- बटाना-स० क्रि० दे० (हि० बटना) पिसाना, बटवाना । अ० क्रि० (दे०) सिल पर लोदा बँटवाना (हि० बाँटना) । अ० क्रि० दे० (पू. से पीसना। संज्ञा, पु० दे० (सं० उद्वतन हि० पटाना ) बंद होना, जारी न रहना । प्रा. उव्वटन ) चिरौंजी या सरसों आदि का बटिया-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० बटा = गोला) देह पर लगाने का उबटन या लेप, बाँटने छोटा गोला या बट्टा, लोदिया। संज्ञा, स्त्री० या पीसने का लोढ़ा। दे० (हि. वाट = मार्ग ) छोटा मार्ग या बटपरा, बटपा *-संज्ञा, पु० दे० (हि. पंथ, पगदंडी । “वाके संग न लागिये, घाले बटमार ) बटमार, रास्ते में मार कर सामान बटिया काँच"-कबी। छीन लेने वाला। बटी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० वटी) गोली, बटमार-संज्ञा, पु० दे० (हि० बट+मार ) एक पकान, बड़ी। *-संज्ञा, स्त्री० दे० डाकू, ठग, लुटेरा। (सं० वाटी ) बाटिका, उपवन । वि० (हि. बटमारी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० बटमार ) बढ़ना ) ऐंठी हुई। डकैता, धूर्तता, ठगी। बटुआ, बटुवा-संज्ञा, पु. (दे०) ( सं० बटला-चटुआ-बटुवा- सज्ञा, पु० दे० ( स० वर्तल ), बड़ी बटलोई, कई खानेदार गोल वर्तुल ) देगचा, देग, हंडा, दाल-चावल थैला । स्त्री. अल्पा०-बटुई, बटुइया (दे०)। पकाने का चौड़े मुंह वाला बरतन । स्त्री० संज्ञा, पु० दे० (हि० वटना ) पीसा हुआ। बटली, बटलाई, बटलोही, बटुई (ग्रा.)। बटुरना-प० कि० दे० (सं० वत्तल+नाबटवार-संज्ञा, पु० दे० (हि० बाटवाला) प्रत्य० । सिमटना, सिकुड़ना, एकत्रित या पहरे वाला, राह का कर लेने वाला। इकट्ठा होना, झाड से साफ़ होना, बटुरिबटवारा-संज्ञा, पु० दे० ( हि० बाटना) याना (ग्रा०) । स० रूप-चटुराना, प्रे० रूपभाग, हिस्सा, विभाजन। बटुरवाना। बटा*-संज्ञा, पु० दे० ( सं० घटक ) गोला, बटेर-- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० वर्तक ) लवा गेंद, ढेला, रोड़ा, ढोंका, पथिक, बटोही, पही। "किसी को बटेंरें लड़ाने की लत है" यात्री । स्त्री. अल्पा० बटिया। वि० (हि. -हाली । घटना) ऐंठा या पिसा हुआ । संज्ञा, पु० (हि०) बटरबाज-संज्ञा, पु० (हि. बटेर--- बाज़ भिन्न का हर, जैसे-तीन बटा चार (३)। फा०) बटेर लड़ाने या पालने वाला । संज्ञा, बटाई.-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि घटना, बांटना ।। स्त्री० बटेरबाजी। बटने या बाँटने का कार्य या मज़दूरी बटोर-संज्ञा, पु० दे० ( हि० बटोरना ) जम(दे०), श्राधा साझा (कृषि या बछवा, घट, जमाव, भीड़, वस्तुओं का समूह । आदि चराने में)। "करम करोर पंचतत्वनि बटोर"-पद्मा। बटाऊ--संज्ञा, पु० दे० (हि० वाट+ पाऊ) बटोरना- स० क्रि० दे० (हि० षटुरना ) पथिक, बटोही, मुसाफिर । वि० (ग्रा.) बिखरी चीज़ों को समेटना, चुन कर इकट्ठा हिस्सा बँटाने वाला (हि. बँटाना ) । करना, मिलाना, जुटाना, एकत्र करना, For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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