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ओ३म्
জ্বলজ ছাত্র জুঞ্জি
अंक अ-संस्कृत और हिन्दी की वर्णमाला का अऊन*--( तद्-सं०-अपुत्र, प्रा०-अउत ) प्रथम अक्षर या स्वर है जिसका उच्चारण कंठ पुत्रहीन, निस्संतान, वारा, मूर्ख, निपूता, से होता है और जो कंठ्य वर्ण कहलाता है। स्त्री-अऊती। बिना इसके व्यंजनों का स्वतंत्र रूप से | अऊलना* --क्रि० प्र० (सं०-उल्-जलना ) उच्चारण नहीं हो सकता, क, च, त आदि जलना. गरम होना, प्रौटना, (कि० अ०) समस्त व्यंजन इस स्वर से युक्त बोले और | (सं०-प्रशूलन ) छिदना, छिलना । लिखे जाते हैं । ( अव्य० ) शब्द के पूर्व अएरना* -- क्रि० स० (सं०-अंगकरण,
आकर यह विपरीत या निषेधादि का अर्थ | प्रा०-अंगिअरण, हिं०-अंगेरना) अंगीकार सूचित करता है, अकारण, अयोग्य । नगार्थ- करना, स्वीकार करना, धारण या ग्रहण या नकारार्थ में इसका रूप 'अन्' हो जाता |
करना। है, तब यह स्वर से प्रारम्भ होने वाले अं-पानुस्वार, अ, स्वर इसका लघु रूप शब्दों के पूर्व जोड़ा जाता है-अनधिकार, है-। अनाचार, अनागत । ( उप० ) क्रियायों या अंक-संज्ञा पु. (सं० ) चिह्न, निशान, धातुओं के पूर्व आता है-अकथ. अथक, आँक, लेख, अक्षर, लिखावट, संख्या का अलख, अनदेखी अनजानत (“ छमहु चूक चिह्न-१, २, ३, आंकड़ा, अदद, अनजानत केरी ” तु०, “ ताकौ के सुनी (क्रि०-अंकन ) लिखना, भाग्य, काजल औ असुनी सी उत्तरेस तौलौं-अभिमन्युवध, का टीका जो बच्चों के माथे पर नज़र (सं.)--संज्ञा पु० - विष्णु, की तै, सरस्वती, से बचाने के लिये लगाया जाता हैं। (वि० ) शब्द, उत्पन्न करने वाला, अल्प, दिठौना, दाग़, धब्बा, नौ संख्या-सूचक निषेध, अभाव, अनुकम्पा, सादृश्य ( अब्रा- ( संख्या के अंक ६ ही हैं ) नाटक ह्मण ) भेद ( अपढ़ ) अप्राशस्त्य अकाल) का एक अंश या भाग, अध्याय, रूपक-भेद अल्पता (अनुदार), यह १ संख्यावाची भी ( नाटक के भेदों में से एक भेद ) गोद, है। विराट्, अग्नि, विश्व, ब्रह्मा, इंद्र, क्रोड़, शरीर, अंग, देह, वदन, पाप, ललाट, वायु, कुबेर, अमृत।
दुःख, वार, दफा, स्थान, अपराध, समीप । अइ-(अव्य-सं० अयि) स्त्री० अरी, संबोध- मुहा०-अंक लेना, लगाना, देनानार्थ या विस्मय अर्थ में।
गले लगाना, आलिंगन करना । अंकअउ*-( अव्य० ) और, तथा-सं०-अरु | भरना-हृदय से लगाना, लिपटाना । का प्रा. और अप० में सूचमरूप।
अंक सूझना- तरकीब, साधन, “सूझ न अए-अव्य० पु०, सम्बोधनार्थ में,हे,अरे, रे। एको अंक उपाऊ । तुलसी०--
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