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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अपरबल अपरबल - वि० दे० (सं० अपार + बल, पर + बल) बलवान, उद्धत, प्रचंड, दूसरे का बल, पराये बल पर आश्रित, जिसे दूसरे का बल या सहारा प्राप्त हो । 66 दसो दिसा ते क्रोध की, उठी अपरबल आागि " ' - कबीर । अपरस - वि० (सं० अ + स्पर्श) जिसे किसी ने छुआ न हो, न छूने योग्य, अलग, अस्पृश्य, बुरा रस । संज्ञा, पु० हथेली और तलवे का एक चर्म रोग | (6 अपरस रहत सनेह तगा तें, नाहिन मन अनुरागी - सूर० । (सं० यौ० ) परलोक संज्ञा, पु० परलोक, स्वर्ग, दूसरा लोक । अपरा -- संज्ञा, स्त्री० (सं० ) अध्यात्म या ब्रह्म विद्या के अतिरिक्त अन्य प्रकार की विद्या, लौकिक विद्या, पदार्थ - विद्या, पश्चिम दिशा, एकादशी विशेष का नाम । वि० स्त्री० – दूसरी, जो दूसरी न हो, ( अ + परा ) अपनी । " १०८ अपरांत संज्ञा, पु० (सं० ) पश्चिम का देश, दूसरा अंत या छोर । अपराजय - संज्ञा, पु० (सं० ) अपराभव, श्रजीत, जीत, पराभव - हीनता, विजय । वि० [अपराजयी- अजीत | अपराजित - वि० (सं० ) जो जीता न जाय, अजेय, नर्जित, श्रनिर्जीत । संज्ञा, पु० ऋषि विशेष, शिव । अपराजिता - संज्ञा स्त्री० (सं० ) विष्णुकान्ता लता, कौवाटोटी, कोयल, दुर्गा, अयोध्या का नाम, चौदह अक्षरों का एक af वृत्त, जयन्ती वृत्त, प्रशनपर्णी, स्वल्पफला, शोफाली, शमी-भेद, शंखिनी, स्वनामख्यात लता विशेष । वि० [स्त्री० श्रजेया, अजीता, अनिर्जिता । अपरिणामी अपराध - संज्ञा, पु० (सं० ) दोष, पाप, क़सूर, जुर्म, भूल, चूक, ग़लती, अन्याय, अनीति | अपराधी - वि० पु० (सं० ) दोषी, पापी, मुलाज़िम । स्त्री० - अपराधिनी - दोष युक्ता । अपराधीन - वि० सं० ) स्वाधीन, जो परतंत्र न हो, स्वतंत्र | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपराह्न - संज्ञा, पु० (सं० ) दोपहर के पीछे का समय, दिन का शेष भाग, तीमरा पहर, दोपहर के पश्चात का काल । अपरिगृहीता- संज्ञा, स्त्री० (सं० ) कुलस्त्री, विवाहिता स्त्री, जो परिगृहीता न हो । अपरिग्रह संज्ञा, पु० (सं० ) दान का न लेना, दान त्याग, यावश्यक धन से अधिक धन का त्याग, विराग, पाँचवाँ यम ( योगशास्त्र ) संग-त्याग, प्रतिग्रह, अस्वीकार । परिचय संज्ञा पु० ( सं० ) परिचय का अभाव, अज्ञात, अज्ञानता, पहिचान का न होना । अपरिचित - वि० (सं० ) जिसे परिचय न हो, जो जानता न हो, अनजान, जो जाना-बूझा न हो, अज्ञात, बिना जानपहिचान का । स्त्री० परिचिता । अपरिच्छद वि० (सं० ) हीन वस्त्र, मलिन वस्त्र, अनुपयुक्त वेश, मलीन वसन । अपरिचिन्न - वि० (सं० ) जिसका विभाग न हो सके, अभेद्य मिला हुआ, असीम, सीमा-रहित, खुला, जो ढका हुआ न हो । स्त्री० अपरिच्छिन्ना । अपरिणत - वि० (सं० ) अपरिपक्क, कच्चा, ज्यों का त्यों, अपरिवर्तित परिवर्तन -रहित । अपरिणामी वि० ( सं० परिणामिन् ) परिणाम-रहित, विकार - शून्य, जिसकी दशा या रूप में परिवर्तन न हो, निष्फल, व्यर्थ. स्त्री० [परिणामिनी । संज्ञा, पु० परिणाम । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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