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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org -- प्रतीयमान प्रतीयमान- वि० (सं०) प्रतीत या ज्ञात होता हुआ. जान पड़ता हुआ i प्रतीहार - संज्ञा, पु० (सं०) प्रतिहार, ड्योढ़ी । प्रतीहारी - संज्ञा, पु० (सं०) द्वारपाल, नकीब, ड्योदीवान चोबदार, छड़िया. प्रतिहारी । प्रतुद पंज्ञा, पु० (सं०) चोंच से तोड़ कर खाने वाले पक्षी । प्रतोद संज्ञा, पु० (सं०) चातुक, पैना, समगान विशेष । ११७३ प्रतोली - संज्ञा, खो० (सं०) किल्ले या दुर्ग का हार, रास्ता, गली, चौड़ी सड़क राज मार्ग : प्रत - वि० (सं०) प्राचीन, पुरातन प्रततत्व - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पुरातत्व | प्रत्यंचा-संवा, स्त्री० दे० (सं० प्रतचिका ) धनुष की डोरी या ताँत, चिल्ला (प्रान्ती० ) । प्रत्यक्ष - वि० (सं० ) इन्द्रियों और उनके श्रथ से होने वाला, निश्चयात्मक ज्ञान, खों के आगे या सामने, इन्द्रियों से ज्ञात, प्रतच्छ, परत (दे० ) | संज्ञा, पु० चार प्रमाणों में से एक प्रमाण (न्या० ) । संज्ञा, स्रो० प्रत्यक्षता । प्रत्यक्षदर्शी - संज्ञा, पु० यौ० (सं० प्रत्यक्ष दर्शिन् ) प्रत्यक्ष रूप में अपनी आँखों से देखने वाला, साक्षी गवाह | प्रत्यक्षवादी - संज्ञा, पु० यौ० ( सं० प्रत्यक्षवादिन् ) अन्य प्रमाणों दोन मान कर केवल प्रत्यक्ष प्रमाण ही को मानने वाला व्यक्ति | संज्ञा, पु० यौ० प्रत्यक्षवाद । (स्त्री० प्रत्यक्षवादिनी ) । प्रत्यय - वि० (सं०) नूतन नवीन, शुद्ध, भिनव, बोधित । प्रत्यनीक--- संज्ञा, पु० (सं०) बैरी, विरोधी, प्रतिपक्षी, एक र्थालङ्कार जिसमें किसी केन्धी या पत्रवाले के प्रति हित या हित के करने का कथन हो- (अ० पी० )। प्रत्यकार संज्ञा, ५० (सं०) श्रपकार के बदले अपकार । ( विलो० प्रत्युपकार ) । प्रत्यादेश प्रत्यभिज्ञा-संज्ञा स्त्री० (सं०) स्मृति की सहायता से उत्पन्न ज्ञान । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रज्ञा संज्ञा, पु० (सं०) एक दर्शन जिसमें सहेश्वर ही परमेश्वर माने गये हैं, महेश्वराय । प्रत्यभिवान संज्ञा, पु० (सं०) स्मृति- द्वारा शेने वाला ज्ञान | वि० प्रत्यभित । शायभियांत संज्ञा, ५० (सं०) पत्यपराध, अपराध पर अपराध, अपराधी होकर फिर अपराध करना ! प्रत्यभिलाष -- संज्ञा, पु० (सं०) श्रभिलाप पर अभिताप, पुनरभिलाषा ! प्रत्यभिवादन्यभिवादन - संज्ञा, ३० (सं० ) प्रणाम के करने पर दिया गया आशीर्वाद । प्रत्यय संज्ञा, पु० (सं०) निश्चय, विश्वास, विचार, ज्ञान, शपथ, अधीन, हेतु, श्राचार, for, बुद्धि, प्रमाण, व्याख्या, प्रसिद्धि, प्रख्याति, लत्तण, श्रावश्यकता, चिन्ह, निर्णय, सम्मति, छन्दों के भेद और उनकी संख्या जानने की रीतियाँ ( पिं० ), वे वर्ण या व समूह जो किसी धातु या अन्य शब्द के अन्त में उसके अर्थ में कुछ विशेपता लाने को लगाये जाते हैं (व्या० ) । प्रत्यर्थी - संज्ञा, पु० (सं० प्रति + अर्थिन ) वैरी, शत्रु प्रतिवादी । प्रत्यर्पण -- वि० सं०) पुनर्दान, लौटाना । प्रत्यवाय-- संज्ञा, पु० (सं०) पाप, दोष, अपराध, अनिष्ट, विघ्न, व्याघात । प्रत्यह-- अव्य० (सं०) प्रतिदिन । प्रत्याख्यान - संज्ञा, पु० (सं० ) निरसन, निराकरण, खण्डन, अस्वीकार । प्रत्यागत -- वि० (सं०) जाकर लौटा हुथा । प्रत्यागमन संज्ञा, पु० (सं०) थाकर फिर थाना वापर लौट घाना, दोबारा थाना । प्रत्यादेश पंजा, पु० (सं० ) निरसन निराकरण खण्डन, देवता की श्राज्ञा, उपदेश, देववाणी, परामर्श । - For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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