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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पातला १९६० पासना पु. पोतने का कपड़ा. पोता । स० कि०. वर्ती भाग, पीठ, रीद। "तऊ पोर-पोर पोताना, प्रे० रूप-पोतवाना। पोलाहै"-पद्मा० । पोतला- संज्ञा, पु० दे० (हि० पोतना) पोल-संज्ञा, पु० दे० (हि. पोला) खाली जगह, पराठा, घी में सेंकी रोटी। शून्य स्थान, खोखलापन, निस्सारता । संज्ञा, पोता-संज्ञा, पु० दे० ( सं० पौत्र ) पुत्र का स्त्री० पोलाई। "लो०-ढोल के भीतर पत्र बेटे का बेटा, पोत्र । ( स्त्री० पाती)। पोल"। मुहा-पोल खुलना (खोलना)संज्ञा, पु० दे० ( फ़ा० फोता ) पोत भूमिकर, भंडा फूटना, (फोड़ना), गुप्त दोष या बुराई जमीन का लगाना, अंडकोष । संज्ञा, पु० प्रगट होजाना ( करना )। सज्ञा, पु० दे० (दे०) पोटा संज्ञा, पु० दे० (हि० पोतना ) : (सं० प्रतोली) सहन, द्वार, फाटक, आँगन । पोतने का कपड़ा पोतने की घुली मिट्टी वि० (दे०) पोला-खोखला। आदि, पात्ता ( ग्रा० )। पोला-वि० दे० (सं० पोल = फुलका ) पोती-संज्ञा, स्वी० दे० सं० पोत्री ) पुत्र की खोखला, सार या तस्व हीन, जो ठोस न हो, पुत्री संज्ञा, स्त्री० (हि० ) पोत, पोतने पुलपुला, खुकख । न्त्री० पाली । संज्ञा, पु. की मिट्टी। पोलापन, स्त्री० पीलाई। "पोर पोर मै पोथा-संज्ञा, पु० दे० (सं० पुस्तक ) बड़ी पोलाई परी'-रसाल । पुस्तक, ग्रन्थ, कागजों की गड्डी: ( स्त्री० पोलिया-संज्ञा, पु० (दे०) पोरिया, दरबान । अल्पा० पोथी)। 'पोथा पढ़ि-पढ़ि जग पोशाक संज्ञा, स्त्री० (फ़ा०, पहनने के वस्त्र, मुभा"-कवी। पहनावा, वस्त्र, परिधान । पोदना-संज्ञा, पु० अनु० फुदकना ) एक पोशीदा-वि० ( फा०) छिपा हुआ, गुप्त । बहुत छोटा पक्षी, नाटा मनुष्य । पोष---संज्ञा, पु. ( सं० ) पोषण, उन्नति, पोना- स० कि० द० (हि० 'पूर्वा - ना- वृद्धि, पुष्टि, तुष्टि, धना संतोष । प्रत्य० ) गीले पाटे की लोई को हाथ से पोषक-वि० (सं०) वर्द्धक पालक सहायक, बढ़ाकर रोटी बनाना, रोटी पकाना। स० संरक्षक, बढ़ाने वाला। कि०-पोषना, प्रे० रूप--पाचाना । स० क्रि०ाषण-संज्ञा, प. (सं०) वर्द्धन. पालन. दे० (सं० प्रोत) पिरोना, गंधना या गॅथना। सहायता, पुष्टि, । ( वि० पोषित, पोष्य पोपनी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) एक बाजा। पुष्ट, पापणीय)। पोपला---वि० दे० ( हि० पुलपुला ) सिकुड़ा पोषना-स. क्रि० दे० (सं० पोषण ) और तुचका हुश्रा, दाँत-रहित मुख, जिसके पोसना पालना (ग्रा०)। स० कि० (पोषाना, दाँत न हों । स्वी० पापली। प्रे० रूप-पोषवाना)। पोपलाना--अ० कि० दे० ( हि० पोपला) पोष्य-वि० सं०) पालने या पोषने के योग्य। पोपला होना । 'बिना दाँत के मुँह पोप- पोष्यपुत्र-संज्ञा, पु० (सं०) दतक या पालक लान"--.प्र. ना० । पुत्र, पुत्र सा पाला लड़का । पोमचा--- संज्ञा, पु. ( दे०) रेंगा वस्त्र । पोस-संज्ञा, पु० दे० ( सं० पोषगण ) पोषक पाया-संज्ञा, पु० दे० (सं० पोत ) पेड़ का के प्रति प्रेम या हेल मेल । कोमल छोटा पौधा, बचा, सर्प का बच्चा। पांसन- संज्ञा, पु० दे० ( सं० पोषणा)पोपन पार-संज्ञा, पु० दे० (सं० पर्व ) उँगुली का (दे०) रक्षा, पालन, वृद्धि । वह भाग जो दो गाठों के मध्य में है। पीसना-क्रि० स० दे० (सं० पोषण) पालना बाँस या ईख श्रादि की दो गाँठों का मध्य- या रक्षा करना, अपनी शरण या देख रेख For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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