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पालव
११२२ पालवा-संज्ञा, पु० दे० (सं० पल्लव) पत्ता, (टाँग) अड़ाना-- व्यर्थ मिलना : कोमल पत्ता, पल्लव ।
व्यर्थ बोलना, या दखल देन । पांव पाला-संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रालेय ) पृथ्वी के उखड़ जाना-ठहरने का वल या ठंढे होने से उसपर जभी हवा की भान, साहस न रहना युद्ध से भागना । पाँव न तुषार, हिम, वर्फ । मुहा०--पाला मार उठना--चलने में असमर्थ होना । पाँध जाना-हिम या शीत से नष्ट हो जाना उठाना (न उठाना)-कदम बढ़ाना, पाला पड़ना--अति शीत से वायु की शीघ्रता से चलना, प्रयाण करना। पाँच भाफ का जम कर तुषार हो जाना। संज्ञा, घिसना---पैर थक जाना । पाँव जमना पु० दे० (हि० पल्ला) वास्ता, व्यवहार, (जमाना)--दृढ़ रहना (होना) अपने बल पर संयोग । " परे प्राजु रावन के पाले ...- खड़े होना । पाँव तले की जमीन या मिट्टी रामा० । संज्ञा, पु० (दे०) खेल में पक्षों की निकल जाना--होश उड़ जाना, भयादिसे सीमा । मुहा०-किसी से पाला पड़ना बड़े ज़ोर से भागना । "जाती है उनके पाँव -वास्ता या काम पड़ना, संयोग या सम्बन्ध | तले की ज़मीं निकल”—सौदा० । पाँव होना । किसी के पाले पड़ना-वश में ताड़ना-पैर थकाना, बड़ी दौड़-धूप करना, श्राना, पकड़या काबू में आना। संज्ञा, पु. हैरान होना, अति प्रयत्न करना । पाँव दे० (सं० पट्ट, हि० पाड़ा ) मुख्य या प्रधान ताड़ कर बैटना- अचल या स्थिर स्थान, सदर मुकाम, सीमा सूचक मिट्टी की हो जाना. चलना त्याग देना, हार बैठना । मेंड. धुस, अखाड़ा, अन्न रखने का कच्ची मिट्टी किसी के पाँव धरना ( पकड़ना) का बड़ा बरतन । पालागन--संज्ञा, दे० -पैर छूकर प्रणाम करना, दीनता से यौ० (हि० पाय लागन ) नमस्कार, प्रणाम, विनय करना, हा हा खाना । बुरे पथ पर पैर छूना।
पाँच धरना ( रखना)-बुरे बुरे काम पालि-संज्ञा, स्त्री. (सं०) कान की लौ, । करने लगना । पांव पकड़ना-बिनती कर पंक्ति, पाँति, कोना, सीमा, मेंड, भीटा, बाँध के जाने से रोकना, पैर छूना, अति दीनता कगार, गोद, किनारा, चिन्ह, परिधि । से प्रार्थना करना । पाँव पखारना-पैर पालिका-संज्ञा, स्त्री० (सं०) पालने वाली। धोना। 'पाँव पखारि बैठि तरु छाहीं".--- पालित-वि० (सं०) रक्षित, पाला हुआ। रामा० । पाँव पड़ना--पैरों गिरना, दीनता पालिनी-वि० स्त्री० (सं०) पालने वाली। । से विनय करना, प्रवेश करना, जाना। पाली-वि० (सं० पालिन्) रक्षित, रक्षा करने | पाँव पर गिरना (सिर रखना या वाला, पालन-पोषने वाला। स्त्री० पात्तिनो।। देना)-पाँव पड़ना पाँव (टाँग ) पसासंज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पालि = पंक्ति) रना (कैलाना)-पैर फैलाना, पाराम से ब्रह्मादि देशों में संस्कृत सी पठित-पाठित सोना, आडंबर बढ़ाना, ठाट-बाट करना, मर एक प्राचीन बिहारी भाषा जिसमें बुद्धमत के जाना। पाँव पाँव (पैरों) चलना-पैदल ग्रंथ लिखे हैं । स्त्री० पली हुई, रक्षित ।। या पैरों से चलना। पाँव पूजना-अति पालू-वि० दे० ( हि० पालना ) पालतु ।। आदर-सत्कार करना, पैर पूजना (व्याह में वरपाल्य-वि० (सं०) पालने योग्य, पालनीय। कन्या के) । फक फैक कर पाँव रखनापाव संज्ञा, पु० दे० (सं० पाद ) पैर. सतर्कता से बहुत बचा कर कार्य करना, पाय, चलने का अंग । मुहा०- बहुतही सावधानी या होशियारी से चलना। (किसी काम या बात में ) पाव । पाँव फलाना-ज्यादा पाने को हाथ
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