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पवित्रता
पश्यतोहर पवित्रता-संज्ञा, स्त्री० (सं०) सनाई, निर्म - पश्चात्-अव्य० (सं० ) पीछे, अनन्तर, लता, निर्दोषता, शुद्धता ।
बाद, फिर । यौ० तत्पश्चात् । पवित्रा-संज्ञा, स्त्री० (सं.) हलदी, पिपरी, पश्चात्ताप-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) अनुशोक, तुलसी, रेशमी माला।
पछतावा, अनुताप । पवित्रात्मा-वि० चौ० (सं० प्रवित्रात्मन् ) | पश्चात्तापरी-संज्ञा, पु. (सं० पश्चात्तापिन् ) शुद्धांतः करण, शुद्धारमा वाला।
अनुशोक या पछितावा करने वाला। पषित्रित-वि० (सं०) शुद्ध, निर्दोष, साफ पश्चाद्वत्ती- वि० (सं० पश्चाद्वत्ति न ) पीछे किया हुआ, पविीकृत।
रहने या चलने वाला। पवित्री-संज्ञा, स्त्री० (सं० पवित्र) अनामिका पश्चाई-वे. (सं०) पीछे का प्राधा, शेषार्द्ध । में पहनने की कुशा की अंगूठी या मुद्रिका पश्चानुताप-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पछतावा। (कर्मकांड) पैती (प्रा.)।
| पश्चिम-- ज्ञा, पु० (सं०) प्रतीची, पच्छिम पविपात-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) वज्रपात, (दे०) स्त्री----पश्चिमा। " उदयति यदि वज्र पड़ना, बिजली गिरना।
भानुः पश्चिमे दिग्विभागे"-स्फु०। पशम-संज्ञा, स्त्री० दे० ( फा० पश्म ) नरम पश्चिम वाहिनी--वि• यौ० (सं०) वह
और मुलाइम बदिया ऊन, उपस्थ, इन्द्री के नदी जो पश्चिम दिशा को बहती हो। समीप के बाल, अत्यन्त तुच्छ वस्तु । " माघे पश्चिम वाहिनी "...स्फु० । पशमी-वि० (दे०) पशम का बना वस्त्र, पश्चिमाचल-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) अस्ताप्रशमीना ।
चल, सूर्यास्त का एक कल्पित पर्वत । मीना--संज्ञा, पु. (फा०) शम का बनाशिमी-वि० (सं०) पश्चिम संबंधी, पच्छिम
या कपडा. पथानी वस्त्र दुशाला आदि। का, पश्चिमीय।। पश- संज्ञा, पु० (सं० ) चौपाया. चार पैर के पश्चिमोत्तर--संज्ञा, पु. यौ० (सं०) वायव्य जीव-जंतु, प्राणी, देवता । “महा महीप भये
या वायुकोण, उत्तर और पश्चिम के बीच पशु पाई"-रामा०।
का कोना। पशुता-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) पशुत्व, पशु
पश्तो संज्ञा, स्त्री० (दे०) अफगानों की एक पना, मूर्खता, जड़ता, औद्धत्य ।
भाषा। पशुतुल्य-वि० (सं० ) पशु के समान मूर्ख,
| पश्म-संज्ञा, स्त्री० (फा०) नरम और बढ़िया अज्ञान, अबोध ।
उन जिसके शाल-दुशाले बनते हैं। उपस्थ पशुत्व-संज्ञा, पु० (सं० ) पशुता, मूर्खता।। पशुधर्म-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) पशुओं इन्द्री के समीप बाल, पशम, पसम (दे०)।
का सा पाचार, पशुओं के से निंद्य कर्म । । पश्मीना-संज्ञा, पु० (फा० ) पशमीना, पशुपतास्त्र-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) शिव जी |
शाल-दुशाले आदि वस्त्र । का त्रिशूल, पाशुपत ।
| पश्यंती-संज्ञा, स्त्री० (सं०) नाद की द्वितीय पशुपति-संज्ञा, पु० (सं०) शिवजी, अग्नि, अवस्था जिसमें मूलाधार से हृदय में आता
ओषधि । पशुपाल, पशुपालक-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पश्यतोहर-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) देखते पशुओं का पालक यारतक, अहीर, गड़रिया, देखते चुराने वाला, सुनार । " देखत ही चरवाह ।
सुवरन हरि परि लेवे को पश्यतोहर मनोहर पशुराज-संज्ञा, पु. (सं० ) सिंह, व्याघ्र ।। ये लोचन तिहारे हैं"-दास ।
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