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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नैतिक १०३६ नोका-झोंकी सम्बन्धी। नै जाना--प्र० कि० दे० (सं० नम्र) | नैऋति--संज्ञा, स्त्री० (सं०) पश्चिम और झुक या लच जाना। दक्षिण के बीच की दिशा । नैतिक-वि० (सं०) नीति-सम्बन्धी। नर्मल्य-संज्ञा, पु. (सं०) निर्मलता, नैन-नैना -- संज्ञा, पु० दे० (सं० नयन ) स्वच्छता, विमलता। नयन, नेत्र, आँख । 'नैना देत बताय सब | नैवेद्य-संज्ञा, पु० (सं०) देवभोग, देववलि । हिय को हेत अहेत"-वृ । संज्ञा, पु० दे० | नैषध-वि० (सं.) निषद-देश का, निषध(सं० नवनीत) नेनू (दे०) मक्खन। । देश-सम्बन्धी । संज्ञा, पु. (सं०) राजा नल, नैनसुख-संज्ञा, पु. यो. (हि.) एक सफेद श्री हर्ष रचित एक महा-काव्य । और चिकना सूती कपड़ा। लो०--प्राख के | नैष्टिक-वि० सं०) श्रद्धा-भक्ति युक्त । स्त्री० अंधे नाम नैन सुख । नैष्ठिकी। “वासुदेव कन्यायां ते यज्जाता नैनू-संज्ञा, पु. (हि.) एक बूटीदार महीन नैष्ठिकी रतिः''--भग । कपड़ा। । संज्ञा, पु. ० (सं० नवनीत ) नैसर्गिक-वि० (सं०) प्राकृतिक, स्वाभाविक, मक्खन, नन्। संज्ञा, स्त्री० (सं०) निसर्ग । संज्ञा, स्त्री० (सं०) नेपाल-वि० (सं०) नेपाल-निवासी, नेपाल- नैसर्गिकता । वि. नैसर्गिकी। सम्बन्धी। संज्ञा, पु. द० (नीपाल) एक नसा-वि० दे० (सं० अनिष्ट) खराब, बुरा, हिमालय का प्रदेश । | अनैसा (ग्रा.)। नेपाली-वि० (हि. नैपाल) नेपाल देश का नहर-संज्ञा, पु० दे० (सं० ज्ञाति = पिता+ निवासी या वहाँ उत्पन्न । संज्ञा, स्त्री० नेपाल हि. घर) मायका, पीहर, स्त्री के पिता का की भाषा। घर। नैपुण्य - संज्ञा, पु० (सं०) निपुणता, चतुराई, नोश्रा-नोवा- संज्ञा, पु० (दे०) रस्सी का वह दक्षता, निपुनाई (दे०)। टुकड़ा जिस से दूध दुहते समय गाय के नैमित्तिक-वि० (सं.) किसी कारण या पीछे के पैर बाँध देते हैं। संज्ञा, स्त्री० (दे०) प्रयोजन से होने वाला कार्य । नोइ, नाई। नैमिष-- संज्ञा, पु० (सं०) एक तीर्थ ।। नोक-संज्ञा, स्त्री. (फ़ा०) किसी चीज़ का नैमिषारण्य - संज्ञा, पु० यौ० (सं.) नैमिष निकला हुश्रा कोना या अग्र भाग। वि० तीर्थ के पास का एक वन ।। नोकदार, नोकीला । स्त्री. नोकीली। नैया-at-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० नो) नोकचोक-संज्ञा, स्त्री. (दे०) संकेत या निइय्या (ग्रा०) नाव, नौका । "नैया मेरी इशारे से बातें करना, लाग-डाँट । तनक सी, बोझी पाथर-भार"-गिर। | नोक-झोंक- संज्ञा, स्त्री० यौ० ( फा० नोक-+ नैयायिक - वि० (सं०) न्याय-वेत्ता, न्याय का | हि. झोंक ) सजावट, ठाट-बाट, आतङ्क, दर्प, पढ़ने या जानने वाला। "कर्तेति नैया- । व्यंग, ताना, छेड़ छाड़, विवाद।। व्यंग, ताना, यिकाः"-ह. ना। नोकना-स० क्रि० (दे०) ललचाना, धाकृष्ट नेर —संज्ञा, पु० दे० (सं० नगर) नगर, शहर।। होना । नैराश्य-संज्ञा, पु. (50) निराशता, ना- नोकदार-वि० (फा०) जिसमें नोक हो, उम्मेदी। "नैराश्यं परमं सुखं"- स्फु०। दिल में चुभने वाला, शानदार । नैऋत- वि० (सं०) नैर्ऋति सम्बन्धी । नोका-झोंकी-- संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. नोकसंज्ञा, पु. एक राक्षस, दक्षिण-पश्चिम के झोंक ) छेड़-छाड़, व्यंग, बनाव शृंगार, ठाटकोण का स्वामी। बाट, घमंड, श्रातङ्क, विवाद । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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