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निशंभ-मर्दिनी
निपेधित निशंभ-मर्दिनी-संज्ञा, स्त्री. यौ० (सं.) निश्शंक-वि० (सं.) निर्भय, निडर, संदेह दुर्गा जी, देवी जी।
या शङ्का से रहित । निश्चय - संज्ञा, पु० (सं०) विश्वास, संशय, निश्शब्द-वि० (सं०) सन्नाटा, शब्द-हीन । संदेह और भ्रम से रहित ज्ञान, दृढ़ या पक्का संज्ञा, स्त्री० (सं०) निश्शन्दता। संकल्प या विचार, निहचै (ग्रा. ७.)। निश्शेष-वि० (सं०) शेष-रहित, सब, संपूर्ण। एक अर्थालंकार ( का.)।
निषंग-संज्ञा, पु. (सं०) तरकश, भाषा, निश्वयात्मक-वि० यौ० (सं० ) ठीक ठीक, तूण, तूणीर । वि.निषंगी।" कटि निषंग संदेह-रहित, निश्चित ।
कर बाण शरासन"-रामा० । निश्चल-वि० (सं०) घटल, अचल, स्थिर। निषंण- वि० (सं.) उपविष्ट, बैठा हुआ। निश्चलता-संज्ञा, स्त्री. (सं.) दृढ़ता, निषध-संज्ञा, पु० (सं०) एक देश, पर्वत, स्थिरता, अचलता।
निषध देश का राजा, निषाध स्वर (सं० गी०।। निश्चला--वि० स्त्री० (सं०) स्थिरा, अचला, निषाद-संज्ञा, पु. (सं०) एक अनार्य भूमि, पृथ्वी।
जाति, केवट । “कहत निषाद सुनौ रघुराई"। निश्चिंत-वि० (सं० ) बेफिक्र, बेखटके, निषादी- संज्ञा, पु० (सं० निषादिन् ) महाचिंता-रहित, चिंताहीनता।
वत, हाथीवाल, हाथीवान । निश्चितईछ। -- संज्ञा, स्त्री० द० (सं०निधितता)।
निषिद्ध--वि० (सं०) जिसके हेतु रोक या निश्चिन्तता, बे फिक्री।
मनाही हो, दूषित, बुरा। निश्चितता-संज्ञा, स्त्री. (सं.) बेफिक्री. निषिद्धाचरण---वि० यौ० (सं.) अधर्म या बे खटकी, चिंताहीनता।
कुकर्म करना, शास्त्र-विरुद्ध कार्य । निश्चित-वि० (सं.) निश्चय-युक्त, निर्णीत, निषूदन- संज्ञा, पु० (सं०) नाश करने वाला। तै किया हुश्रा, पक्का, दृढ़।
" बल-निघूदनमर्थपतिञ्च तम् "-रघु० । निश्चेष्ट- वि० (सं० ) चेष्टा रहित, अचेत,
वि०-निषदनीय, निषदित ।
'निषेक-संज्ञा, पु. (सं०) एक संस्कार का निश्चल, स्थिर। निश्चै --संज्ञा, पु० दे० (सं० निश्चय )
· नाम, गर्भाधान संस्कार। यक़ीन, निश्चय, विश्वास, प्रतीति ।
निषेचन--संज्ञा, पु. (सं०) सींचना । वि. निश्छल-वि० ( सं०) कपट या छल रहित,
| निषेवनीय, निषेचित । सीधा । संज्ञा, स्त्री.निश्छलता। निषेध-संज्ञा, पु. (सं०) रुकावट, मनाही, निश्छिद्र-वि० (सं०) छिद्र या दोष-रहित । वाधा, वर्जन, न करने की आज्ञा । "बिधि निश्रेणी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) नसेनी (दे०) निषेधमय कलिमल हरणी"-रामा० । सीढ़ी, मुक्ति ।
निषेधक-संज्ञा, पु. (सं०) रोकने या मना निश्रेयस- संज्ञा, पु. (सं० निः श्रेयस) करने वाला। मुक्ति, मोह, दुख का पूर्ण नाश, कल्याण । निषेधाक्षेप--संज्ञा, पु. यौ० (सं०) आक्षेपा"यतोऽभ्युदय-निश्रेयस-सिद्धि स धर्मः "। लङ्कार का एक भेद ( का० )। निश्वास- संज्ञा, पु. (सं०) पेट से बाहर निषेधाभास--संज्ञा, पु० (सं.) एक अलं. नाक या मुख के द्वारा आने वाली वायु। कार, श्राक्षेप का एक भेद । " निश्वास नैसर्गिक सुरभि यौं फैल उनकी निषेधित-वि. (सं०) निषिद्ध, रोका या यी रही"- मै० श. गु०।
। मना किया गया, बुरा, दूषित । भा० श. को०-१२६
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