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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org नारक ६६ नालकी नारक - वि० (सं० नरक) नरक सम्बन्धी, वहाँ के जीव । " नारकी - वि० (सं० नारकिन) नरक में जाने या रहने के योग्य, पापी । पाव नारकी हरिपद जैसे " - रामा० । नारद - संज्ञा, पु० (सं०) एक देवर्षि जो ब्रह्मा के पुत्र भगवद् भक्त और कलह - प्रिय थे। वि० झगड़ा कराने वाला पुरुष । वि० नारदी । नारद-पुराण – संज्ञा, पु० यौ० (सं०) तीर्थ व्रत-माहालय-पूर्ण एक पुराण । ( औष० ) । " कुरुराज ने नारायणी तब सेन धातुर है लई " - - मैथ० । नारायणीय - वि० (सं०) नारायण - सम्बन्धी | नारायन, नरायन - संज्ञा, पु० दे० (सं० नारा(a) नारायण । नाराशंस - वि० (सं०) किसी की प्रशंसा की पुस्तक, स्तुति सम्बन्धी, प्रशस्ति, पितरों के सोम-पान देने का चमचा, पितर । नाराशंसी - संज्ञा, त्रो० (सं०) वह पुस्तक जिसमें मनुष्यों की प्रसंशा हो । नारि-संज्ञा, स्त्री० (सं० नारी) औरत, नारी, स्त्री, नाड़ी। B नारदीय - वि० (सं०) नारद - सम्बन्धी । नारना -- स० क्रि० दे० (सं० ज्ञान ) थाह लेना, पता लगाना । "ये मन हीं मन मोकों नारति” – सूबे० । नार-बेवारां– संज्ञा, पु० यौ० ( हि० नार + विवार = फैलाव सं० ) जन्मे हुये बच्चे की नाल, नारा-पेटी । नारसिंह - संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं०) नृसिंह, नरसिंह, नरहरि, एक तंत्र, एक उप पुराण । वि० (सं०) नृसिंह- सम्बन्धी । नारा - संज्ञा, पु० दे० (सं० नाल ) नीवी, इज़ारबन्द कमरबन्द, कुसुंभ-सूत्र, हल के जुयें की रस्सी, नाला । नाराच - संज्ञा, पु० (सं०) वाण, शर, तीर, बुरा दिन, दुर्दिन, जब बादल छाया हो और उपद्रव होते हों, एक वर्ण वृत्त-ज, र, ज, र, ज गुरु वर्ण का महामालिनी, तारका, एक छन्द (पिं० ) । नाराज़ - वि० ( फा० ) ख़फ़ा, नाखुश, अप्र सन्न, रुष्ट | संज्ञा, त्रो० नाराज़गी, नाराजी । नारायण – संज्ञा, पु० (सं०) परमेश्वर, विष्णु, पूषमास, (अ) अक्षर, एक उपनिषद, एक वाण । नर-नारायण की तुम दोऊ 39 66 रामा० । नारायणी - संज्ञा, स्त्री० (सं०) दुर्गा देवी, गंगा जी, लक्ष्मी जी, श्री कृष्ण जी की सेना जो दुर्योधन को दी गयी थी, शतावर Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नारिकेल - संज्ञा, पु० (सं०) नारियल । नारियल - संज्ञा, पु० दे० (सं० नारि केल ) नारियल का पेड़ या फल, उसका हुक्का । नारी - संज्ञा, स्त्री० (सं०) स्त्री, धौरत, एक वृत्त । | संज्ञा, त्रो० (दे०) नाड़ी, नाली, एक पक्षी, जुएँ की रस्सी । नारू -- संज्ञा, पु० (दे०) जुवाँ, जूँ, ढील, नहरुथा रोग । नालंद - संज्ञा, पु० (सं०) बौद्धों का पुराना विश्वविद्यालय या क्षेत्र, जो पटने से ६० मील पर दक्षिण की घोर था । नाल - संज्ञा, खो० (सं० ) कमल, कमलनी यदि फूलों की पोली दंडी, पौधों का डंठल, नली, नल, बन्दूक की नली, सुनारों की फुंकनी, जुलाहों की नली, छूछा | संज्ञा, पु० धवल, नारा, लिंग, हरताल, पानी बहने की जगह | संज्ञा, पु० (०) घोड़े यादि के पावों और जूतों में लगाने की लोहे की नाल, व्यायामार्थं पत्थर का गोल चक्कर, वह रुपया जो जुधारी अड्डा रखने के लिये देते हैं। नालकटाई -संज्ञा, खो० यौ० दे० ( हि० ) तत्काल जन्में बच्चे के नाल काटने का कार्य या मज़दूरी । नालकी - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० नाल = पालकी, शिविका, डोली For Private and Personal Use Only = टंड)
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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