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भारतीय पुरालिपि-शास्त्र के उत्तरकालीन दान-लेखों151, मथुरा के प्राचीनतम अभिलेखों152 (फलक II, स्त० XX) रीवा अभिलेख आदि14 से मिलती-जुलती है। काल ई. पू. दूसरी से पहली शती।
6. कटक (हाथीगुंफा) की गुफाओं की प्राचीनतर कलिंग लिपि (फलक II, स्त० XXI, XXII) ई. पू. लग० 150 ।।
7. नानाघाट के अभिलेख की पश्चिमी डेवकन की पुरागत लिपि (फलक II, स्त० XXIII, XXIV) । नासिक सं. 1, पितलखोरा और अजंटा सं. 1, 2155 में भी यही लिपि है। काल-ई. पू. लग० 150 से प्रथम शती ई. तक।
8, 9. उत्तरकालीन उत्तरी लिपियों की पुरोगामी लिपियों, उत्तरी क्षत्रप शोडास के अभिलेखों और मथुरा के पुरागत चढ़ावे वाले अभिलेखों की लिपि (फलक III, स्त०I, II); काल--ई. पू. प्रथम शती से ईसा की प्रथम शती (?) तक और कनिष्क, हुविष्क और वासुदेव के समय की कुषान लिपि कालईसा की प्रथम और दूसरी (?) शती । ____10-15. उत्तरकालीन दक्षिणी लिपियों की पुरोगामी लिपियाँ--पश्चिमी क्षत्रप रुद्रदामन के समय की काठियावाड़ की लिपि (फलक III, स्त. VI); समय 150 ई.; क्षत्रप नहपान के समय की पश्चिमी डेक्कन की पुराने प्रकार की लिपि, (फलक. III स्त. VII), समय द्वितीय शती ई. का प्रारंभ (?); उसी जिले की अपेक्षाकृत और आधुनिक-सी दीखने वाली (बहुधा दक्षिणी विष्टिताओं का धुंधला-सा आभास ही मिलता है) नहपान (फलक. III, स्त. VIII, IX), आन्ध्रराजा गोतमीपुत सातकणि (स्त. X), आंध्र राजा पुलुमावि (स्त. XI), आंध्रराजा गोतमीपुत सिरियन सातकणि (स्त. XII),
151. फल. त्सा. डे. मी. गे. XL, 58 तथा आगे ; ए. ई. II, 366 (स्तूप I सं. 288, 377, 378 की प्रतिकृतियाँ)
152. मिला. सिक्स्थ ओरियंटल कांग्रेस, 3, 2, 142 का फलक 153. इ. ऐ. IX, 121
154. मिला. क., क्वा. ऐ. इं. फल. 4, सं. 8-15; फल.5; फल. 8 सं. 2 तथा आगे; फल. 9 सं. 1-5; क., म ग. फल. 10, सं. 4; ब., आ. स. रि. वे. ई. IV फल. 44, भाजा सं. 1-6, कोंडाणे ।
155. ब , आ स. रि. वे. ई. IV, फल 44, पितलखोरा, सं 1-7; फल 51, नासिक सं 1
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