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भारतीय पुरालिफ्-िशास्त्र शालिन, अक्षशालिक, अखशालिन, या अखशाल मिलते हैं। इनसे आधुनिक अक्साले97 यानी सुनारों की जाति का अर्थ होता है। ___ अंत में, क्लर्कों और लेखकों के लिए लिखी गई दीपिकाओं का भी उल्लेख होना चाहिए। ऐसी अनेक पुस्तकें अब तक बच रही हैं। इनमें लेखपंचाशिका में व्यक्तिगत पत्रों के साथ-साथ भूदान-लेखों और संधियों के मसौदे बनाने के नियम भी दिये गये हैं । क्षेमेन्द्र-व्यासदास के लोक प्रकाश के एक खंड में विभिन्न प्रकार के बन्ध-पत्रों, हुंडियों आदि के प्रारूपों के नियम लिखे हैं ।598
इस पुस्तक में फलकों के नीचे डा. डबल्यू. कालीरी का नाम है। इन्होंने उन सभी अक्षरों का रेखांकन किया है और टीप लगायी है जो प्रतिरूपों में नहीं मिल पाये हैं। काटकर लिये गये अक्षरों का विन्यास और संस्कार भी आपने ही किया है । फलकVII-IX की तैयारी एक युवक लिथोग्राफर श्री बोम ने की है। डा. कार्टेलीरीने चिह्नों के चुनाव में भी मेरी बड़ी सहायता की है। कुछ चिह्न तो उन्होंने स्वतंत्र रूप में ही बनाये हैं। कुछ में मेरे कहने से सुधार किया है जो मेरे प्रस्तावमें परिवर्तन के कारण आवश्यक हो गये थे। उन्होंने भारतीय लिपि के बारे में मुझे कई बातें भी बतलायीं, जिनसे उनकी प्रतिभा व्यक्त होती है। उन्होंने ही अशोक के आदेश लेखों से ऐसी सूचियाँ बनाईं जिनमें परस्पर भेद थे। इन सबके लिए मैं उनका आभारी हूँ।
मैंने अधिकांश भारतीय लिपियों के चित्र उनकी प्रतिकृतियों से दिये हैं। हाथ से रेखांकन नहीं किया है । इसके लिए मैं अपने मित्र डा. बर्गेस का ऋणी हूँ। इनके पास भारतीय अभिलेखों की प्रतिकृतियों का बड़ा सुंदर संग्रह है । इन अनेक वर्षों में जब मैं इस विषय के अध्ययन में प्रवृत्त था उन्होंने मुझे इनकी प्रतियाँ दी हैं । प्रतिकृतियों या फोटोग्राफों का दान मुझे डा. हुल्श, प्रो. ल्यूमैन, डा. एस. वान ओल्डेनवर्ग, से भी मिला है जिनका उल्लेख मैंने पाद-टिप्पणियों में यथा स्थान कर दिया है ।
596. इं.ऐ. XIII, 123; XVIII, 145; ए. ई. III, 19, 213 और अनुवाद का संशोधन (पृ. 21) जिल्द के अंत में।
597. बेन्स, इंपीरियल सेन्सस रिपोर्ट, II, 38, जहा मद्रास के अक्समालियों का उल्लेख है । इनका उल्लेख पश्चिमी कन्नड़ प्रदेश में भी मिलता है।
598. भंडारकर, रिपोर्ट आन दि सर्च फार संस्कृत मनुस्क्रिप्ट्स, 188283,38; कश्मीर रिपोर्ट, 75, अक्षर लेखकों के बारे में राजेन्द्रलाल मित्र की टिप्पणी ग्राफ के पेपर्स XVI, 133 और वेंडेल ए. सा. इं. पै. 89 भी देखिए ।
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