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भारतीय पुरालिपि-शास्त्र पर लिखे वे सभी ग्रंथ जो आज उपलब्ध हैं, संभवत: इसी प्रकार के कलम से लिखे गये थे 1552 दक्षिण भारत में प्रयुक्त स्टाइलस का संस्कृत नाम शलाका है मराठी में इसे सळई कहते हैं।
रूलर का आज काफी प्रयोग होता है। लकड़ी या गत्ते के टुकड़े लेकर उसमें बराबर की दूरियों पर सूत बांध देते हैं। इसके पूर्व रूप के लिए देखि. Anecdota Oxoniensia Aryan Series I. 3. 66. 317 Anzeiger d. W. Akr demie 1897 सं. VIII जहाँ इसके नमूनों के दो फोटोग्राफ दिये गये हैं। श्री सी. क्लेम के एक पत्र (ता. 21 अप्रैल 1897) के अनुसार बलिन के एथ्नालाजिकल म्युजियम में भी दो नमूने हैं। इनमें एक कलकत्ते का है जिस पर निवेदनपत्र अभिलेख है और दूसरा मद्रास का है जिसे किड़ गु कहा जाता है । 38. हस्तलिखत पुस्तकों, ताम्रपट्टों की संरक्षा और पत्रों का उपचार
अ. हस्तलिखित ग्रंथ और पुस्तकालय ताड़पत्रों और भूर्ज-पत्रों पर लिखे ग्रंथों को इन पत्रों के आकार के लकड़ी के टुकड़ों के बीच रखकर उन्हें सूत से बांध देते थे । कागज की हस्तलिखित पुस्तकों के लिए यह प्रथा अभी तक चालू है ।553 दक्षिण भारत में आवरणों में में छेद कर देते हैं और एक मजबूत लंबा डोरा ले लेते हैं। इसे पहले छेदों में डालते हैं और आवरण के चारों ओर कई बार घुमाते हैं और तब कसकर गाँठ से बाँध देते हैं। प्राचीन काल में भी यही प्रक्रिया थी।4 पश्चिम और उत्तर भारत में हस्तलिखित पुस्तकें इसी प्रकार रखते थे। किंतु नेपाल में पुस्तकों के आवरण-विशेषकर बहुमूल्य पुस्तकों के धातु के बनाते हैं। कभी-कभी इन पर बेल-बूटे भी बनाते हैं । ऐसी पुस्तकों की बेठने भी बनाते हैं जो रंगीन या जरी के कपड़ों की होती है। जैन-ग्रंथागारों में ताड़पत्र की पुस्तकें कभी-कभी सफेद कपड़े की खोलों में रखते हैं । फिर इन्हें टिन के बक्सों में बंद कर देते हैं । संग्रहों के प्रायः सूची-पत्र भी बनाते हैं । मठों, विहारों और राज-दरबारों में पुस्तकें रखने के लिए कभी-कभी पुस्तकालय भी होते हैं । इन्हें प्रायः लकड़ी या
552. Anecdota Oxoniensia, Ar. Series 1, 3, 66. 553. वेरूनी, इंडिया, I, 171 (सचाऊ) ।
554. मिला. हर्षचरित, 95 जिसमें एक हस्तलिखित ग्रंथ के सूत्रवेष्टनम् का उल्लेख है।
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