________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
लेखन-सामग्री
१२७
दुहरा-तिहरा कर सकते हैं । इनका वजन भी कुछ औंस ही होगा । अन्य काफी भारी भरकम है; वजन भी आठ-नौ पौंड या इससे भी अधिक होगा 1522 इनका आकार कुछ तो इस बात पर निर्भर था कि जहाँ से ये जारी किये गये थे वहाँ कौन-सी लेखन-सामग्नी इस्तेमाल में आती थी और कुछ इस बात पर भी कि लेख कितना बड़ा है और लिपिक किस आकार के अक्षर लिखता है, आदिआदि । कारीगर हमेशा दिये हुए नमूनों के आधार पर ही पट्ट बनाते थे। यदि नमूना ताड़पत्र का होता तो पट्ट पतले और लंबे होते । यदि नमूना भोजपत्र का होता तो पट्र काफी बड़े और प्रायः वर्गाकार होते। दक्षिण भारत के सभी ताम्रपट्ट पहले प्रकार के हैं । इसके अपवाद विजयनगर के यादवों के ताम्रपट्ट हैं जो पत्थर की पटिया के आकार के होते थे।528 इसके उत्तर के शासन, तक्षशिला के को छोड़ कर दूसरे वर्ग के हैं। जैसा कि ऊपर कहा गया है तक्षशिला-पट्ट ताड़पत्र के आकार का है । वलभी के बहुसंख्य ताम्रपट्टों के तुलनात्मक अध्ययन से विदित होगा कि प्रशस्ति के आकार के साथ कैसे ताम्रपट्टों का आकार भी बढ़ता जाता है। ___ एक ही प्रलेख के लिए बहुधा अनेक पट्टों की आवश्यकता होती थी। ऐसे पट्टों को तांबे के छल्ले या छल्लों से जोड़ देते थे। ये छल्ले उन छेदों में होकर गुजरते थे जो ताम्रपट्टों में बनाये जाते थे। दक्षिण भारत के ताम्रपट्टों में एक ही छल्ला मिलता है । यदि दो छल्लों का इस्तेमाल होता तो पहला छल्ला पहले पट्ट के नीचे और दूसरे के ऊपरी भाग के छेद से होकर गुजरता था और दूसरा भी इसी प्रकार रहता था। ये छल्ले पुस्तकों के सूत के स्थान पर लगते थे जो उन्हें एक साथ बांधे रखते थे । इस प्रकार अनेक ताम्रशासन एक साथ बंधे रहते थे ।।24 इन्हें आसानी से खोल कर पढ़ा जा सकता था। विजयनगर के अपवाद को छोड़कर ताम्र-पट्टों पर रेखाएं समानांतर होती थीं। ये सबसे चौड़े बल खींची जाती
522. तक्षशिला पट्ट का वजन 3. 75 औंस था, यह मुड़कर दुहरा हो गया था : बलभी के छठे शिलादित्य के अलीना पट्टों का वजन 17 पौंड 3.75
औंस था, देखि. फ्ली. गु. इं. (का. ई. ई. III), 172, इससे भी भारी पट्ट हैं, ब. ए. सा. इं. पै. 92, किन्तु इसमें ऐतिहासिक टिप्पणी में सुधार की आवश्यकता है।
523. ब., ए. सा. इं. पै. 92, मिला. प्रतिकृति ए. ई. IHI, 26, 38 आदि.
524. कशाकुडि दानपत्र (8वीं शती) में 11 पट्ट हैं, और हिरहडगल्लि दानपत्र (चतुर्थ शती) ए. ई. I, 1, में आठ ।
197
For Private and Personal Use Only