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लेखन-सामग्री
१९५ स्कूलों में इनका इस्तेमाल होता है।10 ऐडम्स के मत से311 टोलों के विद्यार्थी केलों और साल के वृक्षों पर चिराग की कालिख से लिखते हैं।
उ. जानवरों के चमड़े आदि डी' आलविस12 की राय है कि बौद्ध ग्रंथों में लेखन-सामग्री के रूप में चमड़े का वर्णन है। पर इन्होंने वे स्थल नहीं बतलाये हैं जहाँ ऐसे उल्लेख हैं । वासवदत्ता के एक प्रकरण का उल्लेख ऊपर (34, आ) आया है जिससे अनुमान किया जा सकता है कि सुबंधु के समय में चमड़े पर भी लिखते थे। किन्तु चमड़ा धार्मिक दृष्टि से अपवित्र माना जाता है । इसलिए यह अनुमान खतरनाक होगा । अभी तक चमड़े पर लिखी कोई पुस्तक भी भारत में नहीं मिली है। कहते हैं कि काशगर से मिले चमड़े के कुछ टुकड़े पीटर्सवर्ग के संग्रहों में हैं जिन पर भारतीय लिपि में लेख हैं। जेसलमेर में 'वृहज्ज्ञान कोष' नामक जैन-पुस्तक-भंडार से हस्तलिखित पुस्तकों के साथ एक कोरा चर्म-पत्र मिला है। ___ पतले हाथी दाँत के चौकोर टुकड़ों पर लिखे ग्रंथ बर्मा में मिलते हैं । ब्रिटिश संग्रहालय में इसके दो नमूने हैं ।513
ऊ. धातु जातकों में कभी-कभी धनी व्यापारियों के घरों में कुटुम्ब-संबंधी आवश्यक प्रलेखों, श्लोकों और सदाचार-सूत्रों को सोने के पत्रों पर खुदवाये जाने का उल्लेख मिलता है ।514 बर्नेल615 का कथन है कि राजकीय पत्रों और भूदान-लेखों के लिए सोने के पत्रों का प्रयोग होता था। तक्षशिला के खंडहरों के पास गंगू में सोने का एक पत्र मिला था जिस पर खरोष्ठी में एक लेख है। 516 इसी प्रकार छोटी पुस्तकें और सरकारी प्रलेख चाँदी पर भी खुदवाये जाते थे17 । ऐसा एक लेख भट्टिप्रोल
510. ब. ए. सा. इं. पै. 89, 93, राजेन्द्रलाल मित्र वही 17. 511. रिपोर्ट स आन वर्नाक्युलर एजुकेशन, 20, 98 ( सं. लांग) 512. इन्ट्रोडक्शन टु कच्चायन, XVII. 513. जन. पालि. टेक्स्ट सोसा. 1883-135. 514. बु. इ. स्ट- III, 2, 10. 515. ब., ए. सा. इ. पै. 90, 93. 516. क; आ. स. रि. II, 129, फल. 59. * 517. ब. ए. सा. इ. पै. 87; री. आ. सं. इं. न्यू. इम्पीरियल सिरीज सं. 15, पृ. 13, और फल. 6. सं. 22; ज. पालि टेक्स्ट सोसा. 883, पृ. 134.
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