________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
लेखन-सामग्री
इसका उल्लेख नहीं कि ये पत्तियाँ किस वृक्ष की थीं, पर इसमें कोई शक नहीं कि ये पत्तियाँ आज की ही भांति मुख्यतया ताड़ या ताल और ताड़ी या ताली की ही थीं। ये वक्ष मलतः तो दक्षिण के हैं पर आज पंजाब में भी पाये जाते हैं। सारे भारत में ताड़पत्र के प्रयोग का सबसे प्राचीन साक्षी युवाङ च्वाङ (सातवीं शती) है।501 किंतु हमारे पास स्पष्ट प्रमाण है कि इससे भी काफी पहले उत्तरीपश्चिमी भारत में इनका प्रयोग होता था। होरयूजि की हस्तलिखित प्रति निश्चय ही छठी शती की है और अभी हाल में प्राप्त गाडफे संग्रह के काशगर के पत्रे जैसा कि पुरालिपिक प्रमाणों से हार्नली ने सिद्ध किया है कम-से-कम चौथी शती के हैं । ये बावर की प्रति से प्राचीन हैं । 50 बावर की हस्तलिखित प्रति के भूर्जपत्र ताड़पत्रों के आकार के ही काटे गये हैं । यही बात तक्षशिला ताम्रपट्ट (दे. ऊपर पृ. 48) के बारे में भी सत्य है। यह पट्ट निश्चय ही पहली शती के बाद का नहीं है। । इसके कारीगर ने ताड़पत्र को अपना आदर्श चुना। इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि पंजाब में भी लेखन-सामग्री के रूप में ताड़पत्रों का प्रयोग सामान्य था। युवाङ च्वाड की जीवनी:08 में सुरक्षित एक परंपरा के अनुसार बुद्ध की मृत्यु के तत्काल बाद हुई प्रथम संगीति में आगम ताड़पत्र पर ही लिपिबद्ध किये गये थे । संघभद्र की विनय की विंदु कित हस्तलिखित पोथी' की कहानी तककुसु ने ज. रा. ए. सो. 1896, पृष्ठ 436 और आगे प्रकाशित की है । इससे ज्ञात होता है कि यह परंपरा इससे करीब दो सौ वर्ष प्राचीन है। इससे यही अनुमान होता है कि 400 ई. के आसपास में बौद्धों का विश्वास था कि ताड़पत्रों का प्रयोग चिरंतन काल से चला आ रहा है ।
राजेन्द्रलाल मित्र का मत है कि 501 लिखने के लिए काम में आने वाले ताड़पत्रों को पहले सुखा लेते थे। फिर इन्हें उबालते या पानी में भिगो देते थे। तब इन्हें दुबारा सुखाते थे। सूखे पत्तों को चिकने पत्थर या शंख से घोंट कर चिकना करते थे। और फिर एक निश्चित आकार में पत्तियों को काट लेते थे। नेपाल और पश्चिमी भारत से ताड़पत्र की जो पुस्तकें मिली हैं उन पर अक्सर ऐसे चिह्न मिलते हैं जिनके परीक्षण से पता चलता है कि इनके पत्रे इसी ढंग के बनाये गये हैं । इससे
501. सियुकि II, 225 (बील). 502. ज. ए. सो. बं. LXVI, 225 तथा आगे । 503. लाइफ आफ युवाइ च्वाङ, 117 (बील). 504. देखि. गाफ के पेपर्स में पृ. 17 पर राजेन्द्रलाल मित्र के विचार
193
For Private and Personal Use Only