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भारतीय पुरालिपि - शास्त्र
प्रस्तर अभिलेखों के साथ बहुत-सी मूर्तियाँ भी मिलती हैं । ये भी मङ्गल प्रतीक ही है । भगवानलाल जी के नेपाल अभिलेखों 470 में ऐसे अनेक चिह्न उकेरे हुए हैं। इनमें शंख ( सं. 3), कमल (सं. 5, 10), नंदी (सं. 7, 12), मीन (सं. 9), सूर्य-चक्र और तारक (सं. 10 ) प्रमुख हैं । सं. 15 का अभिलेख रजत-कमल के दान को लिपिबद्ध करता है । इस अभिलेख के साथ एक कमल का चिह्न भी उकेरा गया है । संभवतः यह चिह्न दान वाले कमल का ही प्रतीक है । दान लेखों में बहुधा दान के 'यावच्चन्द्र दिवाकरों' सुरक्षित रहने की कामना का वर्णन आता है । सं. 10 के सूर्य-चक्र और तारक सूर्य और चन्द्र के प्रतीक हो सकते हैं ।
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अभिलेखों में उनकी अंतर्वस्तु, और कामनाओं के प्रतीक रूप में चित्रण के उदाहरण दुर्लभ नहीं हैं । 173 पर ताम्रपट्टों में अनुरूप उत्खचन इससे कम प्रचलित हैं। साथ ही पृथक मुद्रा के स्थान पर कभी-कभी ताम्रपट्टों पर उनके नीचे या कभी-कभी लेख की बगल में राजा का कुल चिह्न ( वंश-लांछन ) मिलता है । प्रस्तर अभिलेखों में भी यही युगत मिलती है । 472 हस्तलिखित ग्रंथों में नेपाल के बौद्ध और गुजरात के जैनों के ग्रंथ खूब अलंकृत और चित्रों से भरे होते हैं 1473 ब्राह्मण ग्रंथों में चित्रण के उदाहरण भी कम नहीं ।
उ. भूल सुधार, छूटें और संक्षिप्तियां 174
अशोक के आदेश लेखों में (उदा. कालसी आदेश लेख XII, पं. 31 ) गलत
470. इं. ऐ. I, 163.
471. दान की अवधि के बारे में कामना सूर्य और चंद्र के प्रतिरूप बनाकर प्रकट करते हैं ।
472. उदाहरणार्थ देखि. ब., आ.स.रि. वे. इं. सं. 10, 'गुफा मंदिर अभिलेख', प्रतिकृति पृ. 101 पर और कीलहार्न की टिप्पणी, ए. ई. III, 307; इं. ऐ. VI, 49, 192, ए. ई. III, 14 की प्रतिकृतियों में लांछन मिलते हैं । 473. उदाहरणार्थ देखि. वेबर, Verzeichn. d. Berlin Sansk. und Prāk. Hdschriften. II, 3 फल. 2; पाँचवीं ओरियंटल कांग्रेस, 11, 2, 189, फल. 2; Pal, Soc. Or. Ser. फल. 18, 31; राजेन्द्रलाल मित्र, नोटिसेज आफ संस्कृत मनुस्क्रिप्ट्स III, फल. I; मिला. ब., ए. पं. 82, 84 से भी ।
सा. इं.
474. मिला. ब., ए. सा. इं. पै. 83, 85.
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