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भारतीय पुरालिपि-शास्त्र 8=ह. जिसमें ह के अखीर में र की एक बेतरतीब लकीर जुड़ी है (IV, A, B; VI; A), ह (VI, B), हा (VII, A; X), ह्रा (XI, XVII, XVIII) या पूर्वी अभिलेखों में पु (VIII, B; XV, A; XVI) जो संभवतः ह का ही घसीट रूप है, और पांच घसीट चिह्न जिनका उच्चारणगत कोई मूल्य नहीं है (V, A; VIII, A; IX, A, B; XV, B), जिनमें दूसरे और पाँचवें चिह्न पु से और पहला, ह, से, तीसरा हा से और चौथा चिह्न हा से निकला है।
___9=ओ; अक्षर रूप स्त. V (मिला. फल. IV, 6, IX), स्त. VI, (मिला. औ, फल. VII, 7, X), स्त. IX (मिला. फल. VI, 13, I) स्तं. XI, XII (मिला. फल. V, 47, IX), स्त. XIV(मिला. फल. V, 9, XV), स्त. XVII (मिला. फल. VI, 13, V तथा आगे) में हैं। ये रूप स्त. VII, XIII वाले सबसे प्राचीन रूपों से (III, IV) भिन्न हैं । स्त. X, XVI के रूप घसीट रूप हैं।
10४:91 (III, 10000 में; IV, A, B; V, A; VI, A), इसी से ठ के वृत्त को खोल देने से एक घसीट रूप निकला (V, B; VI, B; VII, A; VIII, 1X) जो आगे चलकर व्यंजनस्थ अ (X, XI, A, B) या र्य (XVI, A) या जैसा हस्तलिखित ग्रंथों में होता है, ळ (XIII,A, B; XVII, A) या ख और चे (XV, A, B) निकले ।
20ठ (III, 20000 में; XV) या जैसा हस्तलिखित ग्रंथों में होता है थ, था के तत्कालीन रूप मिलते हैं। ___30= ल, जैसा हस्तलिखित ग्रंथों में होता है। कभी-कभी यत्किचित परिवर्तित रूप में भी। __40=प्त, जैसा हस्तलिखित ग्रंथों में होता है, जिसके लिए प्रायः एक घसीट क्रास (V, A) या त के स्थान परिवर्तन से स (V, B; XI, B; XV) मिलता है।
___50 अनुनासिक (? भगवान लाल) जैसा हस्तलिखित ग्रंथों में होता है, यह दायें या बायें मुंह होता है और प्राय: यत्किचित परिवर्तित रूप में भी मिलता है।
60=पु (IX), और चार विभिन्न घसीट रूप जिनका उच्चारण-गत कोई मूल्य नहीं।
391. बेली संदिग्ध रूप में; IV, B की ऊ की मात्रा के लिए तुलनीय न. फळ. III, 25-6.
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