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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ९४ भारतीय पुरालिपि- शास्त्र # उ की मात्रा के आखीर में बाईं ओर को खुलने वाले एक भंग का विकसित होना; और ऋ की मात्रा के लिए दाईं ओर को खुलने वाले एक भंग का इस्तेमाल । फलक IV, V, VI में दी हुई सभी लिपियों में समान रूप में उपर्युक्त विशेषताएं या इनके अगले चरण मिलते हैं, पर अन्य विशिष्टताओं के आधार पर इन्हें सात विशाल उपवर्गों में विभाजित किया जा सकता है । के भी कई विभेद हो सकते हैं । सातों वर्ग निम्नलिखित हैं : इन वर्गों 1. ईसा की चौथी - पांचवीं शती के अभिलेखों की लिपि, जिसे सामान्यतया गुप्तलिपि कहते हैं । हार्नली की गवेषणाओं 194 के अनुसार इसके दो विभेद हैं; एक पूर्वी और दूसरा पश्चिमी । पश्चिमी की भी दो शाखाएं हैं । इसकी पश्चिमी शाखा के साथ बावर की हस्तलिखित प्रति और काशगर के कुछ प्रलेखों का निकट का संबंध है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2. न्यूनकोणों वाली या सिद्धमातृका (?) लिपि, जिसमें अक्षरों की खड़ी रेखाओं के सिरों पर पच्चियाँ हैं । यह सबसे पहले होरियूजी के ताड़पत्रों पर मिलती है और ईसा की छठी शती के अंतिम भाग में गया के महानामन अभिलेख और लक्खामंडल प्रशस्ति में मिलती है । 3. नागरी, जिसके अक्षर लंबे और दुमदार होते हैं । इनके सिरों पर लंबी लकीरें होती हैं । सबसे पहले सातवीं शती में इसका पता मिलता है । 4. शारदा लिपि, जो पश्चिमी गुप्त शैली का उत्तरी विभेद है । यह सबसे पहले आठवीं शती में मिलती है । 5. पूर्वी आदि बंगला लिपि, जिसके अक्षर काफी गोले और घसीट होते हैं । इनकी खड़ी लकीरों के सिर पर हुक या खोखले त्रिभुज होते हैं । सबसे पहले ग्यारहवीं शती में इसका पता मिलता है । 6. हुकों वाली नेपाली लिपि जिसका आदि बंगला से घनिष्ठ संबंध है । ग्यारहवीं शती से हस्तलिखित ग्रंथों में यह मिलने लगती है । चौथी पांचवीं शती में नर्मदा से पूर्व के क्षेत्र में इन लिपियों का प्रभुत्व एकदम निर्विवाद नहीं है । पश्चिमी क्षेत्र में उत्तर में विजयगढ़ (भरतपुर- राजस्थान ) तक दक्षिणी शैली में या दक्षिणी अक्षरों की मिलावट के साथ अभिलेख मिलते हैं (दे. आगे 27 ) । छठीं सातवीं शती में यह मिलावट समाप्त हो जाती है । केवल तथाकथित शर- शीर्ष शैली (दे. आगे 26 ई ) जो फलक IV-VI का सातवाँ तथा आगे; इ. ऐ. XXI, पृ. 29 194. ज. ए. सो. बं. LX, पृ. 80 तथा आगे । 94 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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