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कुषान-अभिलेखों की लिपि और बाद के अभिलेखों में उत्तरी क्षत्रप शैली के आद्य रूप मिलते हैं। फिर भी इस लिपि की अपनी ऐसी विशेषताएं हैं और जिसने भी कुषान काल के बौने और चौड़े अक्षर देखे हैं वह इन्हें दूसरे काल का बताने की भूल कभी न करेगा।। __ इसकी निम्नलिखित नवीनताओं का उल्लेख विशेष रूप से किया जा सकता है।15:
1. अ के अपेक्षाकृत पुराने रूपों के अतिरिक्त स्त. IV का एक रूप ऐसा भी है जो आधुनिक पश्चिम भारतीय नागरी के समीप है। मिला. फल. IV, I, IX, XI तथा आग भी। ____ 2. आ की लंबाई बताने वाला डंडा काफी नीचे जुड़ा है (2, III, IV) मिला. फल. IV, 2, VII तथा आगे।
3. इ में तीन बिंदुओं के स्थान पर तीन छोटी लकीरें बनी हैं जिनमें एक खड़ी है (3, III) । ___4. उ की आड़ी लकीर में कभी-कभी बाईं ओर को एक भंग मिलता है (4, IV)।
5. त्रिभुजाकार ए (5, IV, V) का आधार प्रायः ऊपर रहता है; मिला. फल. IV, 5, X तथा आगे ।
6. ख (8, III-IV) में प्रायः नीचे त्रिभुज बनता है और इसका हुक छोटा होता है।
7. ण में पहले दो आड़ी लकीरें बनती थीं। अब इनम एक भंग का रूप ले लेती है जो मध्य में खांचे से जुड़ती है। कभी-कभी तो दोनों आड़ी लकीरें इसी तरह की हो जाती हैं, जैसे 20, III, IV में । कभी-कभी खड़ी लकीर को दो भागों में तोड़ देते हैं। ये टुकड़े बाएँ की आड़ी रेखा में जुड़ते हैं। प्रत्येक टुकड़े में भंग वाले सिर के डंडे का एक हिस्सा जुड़ा होता है (20, V)।
8. त में कभी-कभी, पर बिरले ही, एक फंदा मिलता है, जैसे स्ति (43, IV) में।
9. द (23, III--V) के नीचे का आधा हिस्सा और दायें खिंच जाता है। दायें का फुलाव भी बढ़ जाता है। ___10. ध (24, III, IV) और पतला हो जाता है और इसके किनारे और नोकदार हो जाते हैं ।
11. न की आड़ी लकीर में भंग (25, III) या फंदा (25, IV) बन जाता है। इसीसे 25, V का अपेक्षाकृत आधुनिक रूप बनता है।
175. मिला. ए. ई. I, 371; II, 197 पर मेरे विचारों से ।
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