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viii सी० शिवराममूत्ति का Indian Palaeography and South Indian Scripts, (2) डॉ० चन्द्रिका सिंह उपासक का History and Palaeography of Mauryan Script, और (3) डॉ० अहमद हसन दानी का Indian Palaeography. इनमें प्रथम ग्रंथ तो ब्यूलर की ही परंपरा में उसका एक अलग कदम है, दूसरे और तीसरे ग्रंथों में नए रास्ते खोजने का दावा किया गया है। किंतु ब्यूलर के उपरांत भारतीय और विदेशी शोध-पत्रिकाओं में जितने अभिलेखों का अब तक प्रकाशन हुआ है, उसमें ब्यूलर की ही प्रणाली का अनुसरण है। इस प्रकार भारतीय पुरालिपि-शास्त्र के क्षेत्र में ब्यूलर के ग्रंथ की प्रामाणिकता अभी तक बनी हुई है।
__ ओझा जी की भारतीय लिपि-माला तो हिंदी में लिखी ही गयी है । ब्यूलर के इस ग्रंथ के हिंदी में अनूदित हो जाने पर हिंदी के माध्यम से इस विषय का अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को यदि कुछ भी सहायता मिली, तो अनुवादक अपना परिश्रम सफल समझेगा। राम नवमी
मंगल नाथ सिंह 1966
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