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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir विज्ञप्तिः - भारत-भैषज्य-रत्नाकरका प्रथम भाग प्रकाशित होते ही विद्वानोंने उसका जिस प्रेम और उत्साहसे स्वागत किया, उसकी हमें कदापि आशा न थी; हमारी तुच्छ कृति विद्वानोंमें इतना आदर पा सकेगी इसका हमें ध्यान भी न था; अब भी हम तो इसे केवल उन महानुभावोंकी उदारता ही मानते हैं; नहीं तो हमारे जैसे अल्पमति व्यक्तियोंकी कृति को इतना आदर प्राप्त होना सम्भव ही नहीं था। चाहे हमें प्रतीत हों या न हों पर निस्सन्देह इसमें दोषोंकी भरमार होगी, जिन्हें हंसमति विद्वानोंने दृष्टिच्युत् करके अपनी उदारबुद्धि का परिचय दिया है, जिसके लिए हम उनके अत्यन्त आभारी हैं । विद्वानोंके उत्साहवर्द्धनसे ही आज हम अत्यधिक आर्थिक हानि उठाते हुवे भी इसके द्वितीय भागको पाठकोंकी सेवामें समर्पित करनेमें समर्थ हो सके हैं। प्रथम भागकी भूमिकामें हमने विशेष रूपसे निवेदन किया था कि “यदि विद्वान वैद्य हमें इसकी त्रुटियोंसे अवगत करनेकी कृपा करेंगे तो हम उनके अत्यन्त कृतज्ञ होंगे।" इस प्रार्थनाके अनुसार कई महानुभावोंने हमें अमूल्य परामर्श देकर कृतार्थ किया है । उनमें से श्रीयुक्त वैद्यराज शंकरलालजी, सम्पादक वैद्य, मुरादाबाद; श्रीयुक्त पं. रविशङ्कर जटाशङ्कर वैद्यराज, सम्पादक वैद्यकल्पतरु और श्रीयुक्त पं. बलवन्त शर्माजी वैद्यराज, महलई विशेष धन्यवादके पात्र हैं। हमें आशा है कि इस भागके विषयमें भी विद्वन्मण्डल हमें अवश्य ही समुचित परामर्श प्रदान करेगा कि जिससे अगले भाग अधिकसे अधिक उत्तम बनाए जा सकें। प्रथम भागकी अपेक्षा इसमें कई विशेषताएं हैं जिनमेंसे मुख्य यह हैं(१) प्रत्येक प्रयोग जितने ग्रन्थोंमें मिलता है, लगभग उन सभीके नाम लिखे गए हैं। (२) शास्त्रीय मानके साथ ही साथ ओषधियोंकी वर्तमान तोल भी लिखी गई है। (३) प्रायः प्रयोगोंकी वर्तमान् कालोचित मात्रा और अनुपान लिखा गया है। आशा है यह सुधार पाठकोंको विशेष रुचिकर होगा। पहिले भागकी अपेक्षा इसमें कागज़ भी कहीं अधिक उत्तम लगाया गया है और उसको अपेक्षा पृष्ठ संख्या ड्योढी होनेपर भी मूल्यमें थोड़ी ही वृद्धि की गई है। ___ हमने यह कार्य किसी आर्थिक लाभकी आशासे नहीं अपितु आयुर्वेदकी सेवाके विचारसे ही हाथमें लिया है. इस लिए हम आशा करते हैं कि वैद्यसमाज इसके प्रचारमें हमें पूर्ण सहायता देगा। विनीतःनगीनदास छगनलाल शाह. गोपीनाथ. For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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