SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir घृतपकरणम् ] द्वितीयो भागः। [५१] इस " गुग्गुलुपञ्चतिक्तघृत' को सेवन | ( १६ सेर ) पानीमें २ सेर जल अवशेष रहने करनेसे कुष्ट, रक्तपित्त, विसर्प, और गलित्कुष्ट तक पकाकर छान लीजिए । रोग नष्ट होता है। कल्क----पाठा, बायबिडंग, देवदारु, गजइसे पान, अभ्यञ्जन (मर्दन ) और नस्य पीपल, यवक्षार, सन्जीखार, सोंठ, हल्दी, सौंफ, द्वारा प्रयुक्त करना चाहिए। चव, कुठ, तेजोवती ( मालकंगनी ), काली मिर्च, ___ (मात्रा-१ तोला। अनुपान गर्म दूध ।) इन्द्रयव, अजवायन, चीता, कुटकी, शुद्ध भिलावा, (१३५५) गुग्गुलुपश्चतिक्तकं घृतम् बच, पीपलामूल, मजीठ, अतीस, त्रिफला और (ग. नि. । घृता., र. र. । कुष्ठा., वृ. यो. त. । अजमोद समभाग मिश्रित पारसेर, शुद्ध गूगल ५ पल ( २० तोले ) त. १२०, बूं. मा. । कु.) विधिः--काथ, कल्क और १ प्रस्थ (८० निम्बामृतादृषपटोलनिदिग्धिकानां तोले) घृतको एकत्र मन्दाग्नि पर पकाइये और ___ भागानिमान्दशपलान्विपचेद्घटेऽपाम् ।। पकते समय गूगलको कपड़े की पोटलीमें बांधकर अष्टांशशेषितशृतेन पुनश्च तेन दोलायन्त्र विधिसे उसीमें लटका दीजिए । पाक __प्रस्थं घृतस्य विपचेद् घृतभागकल्कैः ।। सिद्ध होनेपर घृतको छानकर पुनः गूगलके साथ पाठाविडासुरदारुगजोपकुल्या पकाइये और जब गूगल उसमें भलीभांति मिल द्विक्षारनागरनिशामिशिचव्यकुष्ठः। जाय तो उतारकर सुरक्षित रखिए । तेजोवतीमरिचवत्सकदीप्यकाग्नि ___ इसके सेवनसे सन्धि, अस्थि और मजागत __रोहिण्यरुष्करवचाकणमूलयुक्तैः ॥ प्रबल वात तथा कुष्ठ एवं नाडीव्रण ( नासूर ) मञ्जिष्ठयाऽतिविषया वरया यवान्या । अर्बुद ( रसौली ), भगन्दर, गण्डमाला, उर्ध्वजत्रु ___ संशुद्धगुग्गुलुःपलैरपि पश्चसंख्यैः। ( गलेसे ऊपर ) गत समस्त रोग, गुल्म, अर्श, तत्सेवितं विधुवति प्रबलं समीरं । प्रमेह, राजयक्ष्मा, अरुचि, श्वास, पीनस, कास ___सन्ध्यस्थिमज्जगतमप्यथ कुष्ठमीहक् ।। ( खांसी ), शोथ, हृद्रोग, पाण्डु (पीलिया), मद, नाडीव्रणाचुदभगन्दरगण्डमाला विद्रधि और वातरक्तका नाश होता है। ___ जसवंगदगुल्मगुदोत्यमेहान् । ( मात्रा ? तोला । अनुपान गर्मदूध या यक्ष्मारुचिश्वसनपीनसशोफकास । गिलोयका काथ । ) हृत्पाण्डुरोगमदविद्रधिवातरक्तान् ॥ (१३५६) गुडघृतम् ( वृं. मा. । वा. . ) काथ--नीम, गिलोय, बासा, पटोलपत्र कफरक्तप्रशमनं, कच्छूवीसर्पनाशनम्।। और कटेली १०-१० पल लेकर कूटकर १ द्रोण वातरक्तपशमनं हृद्यं गुडघृतं स्मृतम् ।। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy