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থামন্ধ ] द्वितीयो भागः।
[४७] (१३४६) ग्रहणीविजयावलेहः(यो.स.।ममु.४) अब्धेःशोषमजाजियुग्मरजनीधात्रीकणाकेसरम् ।
सिन्धून्थकृष्णाधनधातकीनां जातीकोषफले सदीप्यनलदं शुण्ठीकुबेराक्षकम् ।। सम्यग्रजोभिर्विपचेद्धितावत् । तुल्यं शर्करया तदर्द्धविजया प्रस्थार्धकं गोघृतम् । लेहत्वमुपगच्छति यावदेव युक्तया वैद्यवरेण निर्मितमिदं प्रौढाङ्गनादर्पनुत । सुशीतलः क्षौद्रयुतोऽतिसारं ॥ वीर्यस्तम्भकरं च पुष्टिजनकं वाजीकर कामिनाम् । लेहो हरेदाममथो विपकम् भुक्तोगोक्षुरपाक एप हरिणीनेत्राविलासात्पदम्।। मवेदनं वा वहुवर्णमयं
__ गोग्वरुके १ प्रस्थ (१ सेर) महीन चूर्णको प्रवाहिका च ग्रहणी चिरोत्थाम् ॥ १ आढक ( ४ प्रस्थ ) दूधमें पकाकर खोया बना अशाशि सम्यग्विलयं प्रयान्ति लोजिए. फिर उसे आधा प्रस्थ गोधृतमें भून पापानि विष्णोरिव चिन्तनेन् ।। लीजिए। इसके पश्चात समस्त ओषधियोंके समान
मंधानमक. पीपल्ट, नागरमोथा. और धायके मिश्रीकी चाशनी बनाकर उसमें उक्त खोवा और फूल समान भाग लेकर चूर्ण करके चार गुने खैग्मार (कथा), लौंग, लोहभस्म, स्याह मिर्च, कपूर, पानीमें पकाइये । जब चतुर्थांश शेष रह जाय तो सफेद आककी जड़की छाल, समुद्रसोख, सफेद उतारकर छान लीजिए और फिर पुनः पकाकर जीग, स्याह जीरा, हल्दी, आमला, पीपल, नागलेहके समान गाढ़ाकर लीजिए एवं शीतल होने | केसर, जावित्री, जायफल, अजवायन खस, सोंठ पर यथोचित मात्रानुसार शहदमें मिलाकर सेवन | और करञफलका चूर्ण समान भाग तथा भांग कीजिए।
। सबसे आधी महीन चूर्ण करके मिला दीजिए । इसके सेवनसे आमातिसार, पक्वातिसार, वेदना- यह पाक वीर्यस्तम्भक, पौष्टिक, वाजीकर, युक्त और अनेक रंगका रक्तातिसार. प्रवाहिका ! और अत्यन्त कामशक्तिवर्द्धक है । (पेचिश) पुरानी संग्रहणी और अर्श रोग इस प्रकार
(१३४८) गोक्षुरपाकः (वृ. यो. त.। १४७) नष्ट हो जाते हैं जैसे विष्णुक चिन्तनमे पाप ) । (मात्रा ६ माशेसे १ तोले तक ।।
प्रस्थं गोक्षुरमूक्ष्मचूर्णमुदितं दुग्धाढके पाचितम् ।
जातीपत्रलवङ्गलोहमरिचं कर्परमाकल्लकम् ॥ इति गकारादिलेहप्रकरणम् ।
अब्वे शोषमनाजियुग्ममुसलीधात्रीकणाकेशरम्
जातीकोशकले मदीप्यनलदं शुण्ठीकुबेराक्षजम् ।। अथ गकारादिपाकप्रकरणम्
विपत्रं करिकेसरं गजकणारात्रिबलाबीजकम्। (१३४७) गोक्षुरकादिपाकः यो. न.।त.८०) चीनीकन्दयवानिकुङ्कमतुगाकर्षद्वयं योजयेत् ॥ पस्थं गोक्षुरमूक्ष्मचूर्णमुदितं दुग्धाढ के पाचितम् । तुल्यं शर्करया तदर्धविजयां प्रस्थाकं गोघृतम् । गायत्रीसलवङ्गलोहमरिचं कपूरमन्दारकम् ॥ युक्त्या वैद्यवरेण निर्मितमिदं प्रौढाङ्गनादर्पनुत् ।।
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