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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [४८७] हाता है । बाराही कन्दका समान भाग चूर्ण लेकर कूटकर स्मृतिविक्रमबुद्धिशक्तियुक्तः एकएक कर्ष (१। तोले)की गोलियां बना लीजिए। शारदां जीवति वै शतं समग्रम् । इनमेंसे प्रति दिन प्रातःकाल १ गोली खाने । मुखेन नीलोत्पलचारुगन्धिना से कुष्ठ, दाद और किलासकुष्ठ नष्ट होता है। शिरोरुहैरञ्जनमेचकप्रभैः ।। इन्हें एक वर्ष तक सेवन करनेसे पलित रोग भवेत्तु गृध्रस्य समानलोचननष्ट हो जाता है और मनुष्य १०० वर्ष तक श्चिरं नरो वर्षशतं तु जीवति ।। युवाके समान रहता है। ( व्यवहारिक मात्रा १-२।। माषा) त्रिफला, लोहचूर्ण और मुलैठी समान भाग (२७४१) त्रिफलादिचूणम् लेकर चूर्ण बना लीजिए। (यो. र.; वं. से.। नेत्र.; वृ. यो. त.।त.९५) इसे २१ दिन तक प्रतिदिन सायङ्कालके त्रिफलात्वचमायसं च चूर्ण | समय घी और शहद में मिलाकर चाटनेसे तिमिर, समयष्टीमधुकं त्रिसप्तरात्रम् । नेत्रार्बुद, आंखकी पुतली पर लाल धारियां होना, मधुना सह सर्पिषा दिनान्ते खुजलो, क्षणिक अन्धता, दाह, शूल, तोद, पटल, . पुरुषो निष्परिहारमाददीत ॥ शुक्ल, काच (मोतिया बिन्द) और पिल्ल रोग नष्ट तिमिरार्बुदरक्तराजिकण्डूक्षणदा होता है। न्ध्यामयदाहशूलतोदान् । यह चूर्ण केवल नेत्ररोगों को ही नष्ट नहीं पटलं च सशुक्रकाचपिलं | करता अपितु दन्तरोग, कर्णरोगादि ऊर्ध्वजत्रुगत शमयत्येव निषेवितः प्रयोगः ॥ रोगोंको भी नष्ट करता है। इनके सिवाय अर्श न च केवलमेव लोचनानां (बवासीर), भगन्दर, प्रमेह, आनाह किलासकुष्ट, विहितो रोगनिबर्हणाय योगः। हलोमक और पलितादि रोग भी इसके सेवनसे दशनश्रवणोधजत्रुजानां नष्ट हो जाते हैं। प्रशमे हेतुरयं महामयानाम् ॥ गुदजानि भगन्दरप्रमेहा-- - इसके सेवनसे पुराना अग्निमांद्य नष्ट होकर नाहकुष्ठानि हलीमकं किलासम् । अग्नि अत्यन्त तीक्ष्ण हो जाती है; अधिक स्त्री पलितानि विनाशयेत्तथा प्रसंगके कारण निर्बल हुवे पुरुषोंमें पुनः शक्तिका निं चिरनटं कुरुते रविप्रचण्डम् ।। सञ्चार होता है. स्मृति, बुद्धि, और बलयुक्त होकर प्रमदाभिरयं जराधिरूढः मनुष्य १०० वर्ष तक जीवित रहता है; उसका स्फुटचन्द्राभरणासु यामिनीषु । | मुख कमलपुष्पके समान सुन्दर और सुगन्धित, सुरतानि पदे पदे निषेवेत्पुरुषो तथा बाल सुरमेकी भांति काले और दृष्टि गिद्धके योगमिमं निषेवमाणः ॥ समान तीब्र हो जाती है। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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