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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir गुटिकामकरणम्] द्वितीयो भागः। । ३५] wnाम प (पूर्ण मात्रा--१ तोला तक) (१३११) गुडादि मोदकः (१३०८) गुडपिप्पलीमोदकः (र. र. । प्ली.) (यो. र. । अ. पि., ग. नि.) . पलैकं गुडमादाय पिप्पलीश्च तथैव च । गुडपिपलीपथ्याभिस्तुल्याभिर्मोदकः कृतः। हिंगुत्रिकटुकादीनां सैन्धवानां द्विमाषिकम् ।। पित्तश्लेष्महरःमोक्तो मन्दाग्नित्वं च नाशयेत् ॥ चित्रकश्च विडठचैव द्वौक्षारौ शिखरी तथा। समान भाग गुड़, पीपल और हैइसे निर्मित तालपुष्प कोकिलाक्ष चिश्चाक्षार सफनकम्॥ मोदक पित्त, कफ . और अग्निमांद्यका नाश स्नुहीक्षारसमायुक्त प्लीहज्वरविनाशनम् ॥ करते हैं। __गुड़ १पल, पीपल १पलं, हींग, सोंठ, मिर्च, (मात्रा--६ माशेसे १ तोले तक । उष्ण जलके साथ; प्रातःसायं सेवन कीजिए.) सज्जीखार, अपामार्ग (चिरचिटे) का क्षार, ताल-: (१३१२) गुडादि मोदकः (बं. से. । विरे.) पुष्ष, तालमखाना, इमलीका खार, समुद्रफेन, और गुडस्याष्टंपलं पथ्या विंशतिः स्युः पलानि च । थोहरका क्षार प्रत्येक २-२ मासे लेकर यथा दन्तीचित्रकयोः कर्षों पिप्पलीत्रिवृतोर्दश । विधि मोदक बना लीजिए। . इनके सेवनसे निल्ली रोग और वर नष्ट । कृत्वैतान्मोदकानेकं दशमे दशमेऽहि । होता है। स खादेदुष्णसेवी चाहारे नियन्त्रणास्त्वमी ।। " (मात्रा---- १ तोले तक । अनुपान उष्णजन्न ।) | दोषना ग्रहणीपाण्डुरोगार्श कुष्ठनाशनाः॥ (१३०९) गुडादि गुटिका (शा. सं.। गुटि.अ.) गुड़ ८ पल (८ छटांक), हैड(पोली)२० पल, गुडशुण्ठीशिवामुस्तैर्गुटिका धारयेन्मुखे। | दन्तीमल, चौता, २॥ २॥तोले, पीपल और निसोत : श्वासकासेषु सर्वेषु केवलं वा विभीतकम ॥ १०.१० कर्ष(१२।। तोले)लेकर चूर्ण करके मोदक गुड, सोंठ, हर्र और मोथा समान भाग | बनाएं । हर दसवें दिन एक मोदक उष्ण जलके लेकर (पानीसे पीसकर) गोलियां बना लीजिए। साथ सेवन करने से ग्रहगी, पाण्डु, अर्श, और कुष्ठ इन्हें अथवा केवल (घीमें भुने हुवे) बहेडेको रोग नष्ट होता है । इसके सेवन कालमें उष्ण पदार्थ मुखमें रखकर (रस चूसनेसे ) सर्व प्रकारके स्वास सेवन करने चाहिए अन्य किसी प्रकारके परहेज़की कास रोग नष्ट होते हैं। आवश्यक्ता नहीं है। (१३१०) गुडादि मण्डूरम (र. का.धे.। पाण्डु) . (व्यवहारिक मात्रा १ तोला) गुडनागरमण्डूरतिलशान्मानतः समान् । (१३१३) गुडूचीमोदका*( भा. प्र. । च.) पिप्पली द्विगुणा दत्वा गुटिका पाण्डुरोगिणाम अमृतायाः शतं चूर्ण वाससा परिशोधितम् । गुड, सोंठ, मण्डर, और तिल १.... भाग | पृथक्षोडशभागाः स्युर्मुडमाक्षिकसर्पिषा ॥ तथा पीपल दो भाग लेकर यथा विधि गुटिका यथाग्निभक्षयेदेतन्नरो हितमिताशनः । बनाकर सेवन करनेसे पाण्डुरोग नष्ट होता है। नास्यकश्चिद्भवेयाधिन जरा पलितं न च ।। यह प्रयोग अकारादि गुटिका प्रकरणमें सम्मिलित होनेसे. टूट गया है । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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