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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। ४६७] vvvvvvvvvvv Arvivvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvv और उसके मुंहको शरावसे ढककर भट्टीपर चढा- विष) १॥ भाग; काली मिर्च ४ भाग; नीमके कर अग्नि दें । जब राख शंखके समान सफेद हो | बीज (निबौली) और धतूरेके बीज १-१ भाग; जाय तो अग्नि देनी बन्द करदें और स्वांगशीतल | शुद्ध गन्धक ३ भाग; जायफल, सुहागा और होने पर हाण्डीमेंसे हरतालको निकाल लें । इसे शुद्ध हरताल १०-१० भाग लेकर, प्रथम पारे अग्निपर डालनेसे यदि धुवां निकले तो पुनः उक्त गन्धककी कजली बना लीजिये और फिर उसमें विधिसे अग्नि देनी चाहिये । अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर गिलोय और यह हरताल भस्म १ भाग, शुद्ध गन्धक १ | धतूरेके स्वरसकी ७-७ भावना दीजिए । हर भाग और ताम्रभस्म २ भाग लेकर एकत्र घोटकर, | बार रसमें घोटकर सुखा लेना चाहिये । अन्तमें आतशी शीशीमें भरकर बालुकायन्त्रमें (४ पहर) गोला बनाकर सुखाकर उसपर धतूरेके पत्ते लपेटपकाइये, और यन्त्रके स्वांगशीतल होनेपर औषध- कर उसके ऊपर (२-३ अङ्गुल मोटा) गोबरका को निकालकर सुरक्षित रखिये । लेप कर दीजिए और सुखाकर कुक्कुट पुटमें फूंक ___ यह 'तालेश्वर रस' समस्त प्रकारके कुष्ट, कर स्वांगशीतल होनेपर निकालकर सुरक्षित रखिये। वातरक्त, भयङ्कर, गलित और स्फुटित कुष्ट, मण्डल, ___ इसके सेवनसे समस्त प्रकारके कुष्ठ नष्ट होते दुष्टव्रण, विसर्प और त्वग्दोषोंका नाश करता है। वातज मण्डल कुष्ठके लिये इससे अच्छी हैं । (मात्रा--२-३ रत्ती । अनुपान बाबची, खैर या नीमकी छालका काथ) अन्य एक भी औषध नहीं है। (२६८३)तालेश्वरो रसः (६) (र. मं. । कु.) (२६८२) तालेश्वरो रसः (५) (र. मं. । कु.) द्वादशं कर्षतालं च कूष्माण्डस्वरसे क्षिपेत् । मूतो द्वौ वल्गुजा त्रीणि कणाविश्वा त्रिकं त्रिकम्। स्वेदयेदोलकायन्त्रे यावत्तीयं न विद्यते ।। साईकं ब्रह्मपुत्रस्य मरिचस्य चतुष्टयम् ॥ | पश्चात्तं मेलयेत्खल्वे मूतं कर्षद्वयं क्षिपेत् । एकैकं निम्बधत्तूरवीजतो गन्धकात् त्रयम् । तन्मी बहुवाराणि नीलामा कज्जली भवेत्॥ जातीटङ्कणतालानां भागा दश दश स्मृताः॥ स्नुहीक्षीरं रविक्षीरं छागीक्षीरं च बाकुची। युक्त्या सर्व विमाथामृतास्वरसभाविता। पातालगरुडाङ्कोलचक्रमर्दकहिज्जलम् ॥ सप्तधा शोषयित्वाथ धत्तुरस्यैव दापयेत् ॥ कुमारीपत्रभल्लातत्रिफला तु पुनर्नवा । सम्मर्य गोलकं सान्द्रं धत्तरैर्वेष्टयेद्दलैः। निम्बत्वचं महौषध्या पुटं देयं त्रयं त्रयम ।। गोमये वेष्टयेत्तच्च कुक्कराख्यपुटे पचेत् ॥ षट्कर्ष चूर्णकलिकां हण्डिकायान्तु धारयेत् । रसः कुष्ठहरः सेव्यः सर्वदा भोजनप्रियैः॥ चतुर्थाशमधः स्थाप्यं मध्ये स्थाप्यं तु तालकम्॥ __शुद्ध पारा २ भाग; बाबची, पीपल और पश्चादुपरि चूर्ण तत्सर्व स्थाप्यं प्रयत्नतः। सोंठ ३-३ भाग; ब्रह्मपुत्र विष (अभावमें बछनाग ! हण्डिकाखण्डपर्यन्तं मज्जानं कन्यकोद्भवम् । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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