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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [४३३ ] पारा और हरताल समान भाग लेकर दोनों इसमेंसे १ माषा दवा शहदमें मिलाकर चाटको १-१ दिन काकमाची (मको) और गिलोयके | कर ऊपरसे १ कर्ष (१। तोला ) कठूमरके पक्के रसमें घोटिये और उसका गोला बनाकर सुखाकर फलोंका चूर्ण शहद में मिलाकर चाटनेसे प्रमेह नष्ट उसे लोहेके बारीक पत्रमें लपेटकर वज्रमूषामें बन्द होता है। करके और उसके जोडको अच्छी तरह बन्द करके खूब तेज़ आगमें धमाइये । इस प्रकार धमानेसे (२६१३) तारकेश्वरो रसः (२) (भै.र.।मूत्रकृ.) उसका खोटबद्ध बन जायगा, उसे फिर कूटकर | शुद्धसूतं समं गन्धं लौहं वङ्गं मृताभ्रकम् । मकोय और गिलोयके रसमें घोटकर, लोहपत्रमें दुरालभां यवक्षारं बीजं गोक्षुरजं शिवाम् ।। लपेटकर उपरोक्त विधिसे मूषामें बन्द करके धमा- समांशं भावयेत्सर्वं कूष्माण्डफलवारिणा। इये । इसी प्रकार तीनबार करनेसे गुटिका तैयार पञ्चतृणभवकाथे रसे गोक्षुरजे तथा ॥ हो जायगी। सम्पिष्य वटिका कार्या द्विगुञ्जाफलमानतः। नित्य प्रति इसे मुंहमें रखकर १ कर्ष | मधुना मद्य विलिहेन्मूत्रकृच्छ्रविनाशनम् ॥ (१। तोला) बाबचीका चूर्ण गोदुग्धके साथ सेवन उदुम्बरफलं पकं चूर्णितं कर्षमात्रकम् । करनेसे १ वर्षमें समस्त प्रकारके कुष्ठ नष्ट होकर लेहयेन्मधुना सार्धमनुपानं सुखावहम् ॥ देह सुन्दर हो जाती है। अजाक्षीरं भवेत्पथ्यं शर्करेक्षुरसो हितः॥ . (२६१२) तारकेश्वरो रसः (१) शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, लोहभस्म, बङ्गभस्म, (र. का. धे. । प्रमेह.) अभ्रकभस्म, धमासा, यवक्षार, गोखरु और हरै । मृतमूताभ्रवङ्गानि मर्दयेन्मधुना दिनम् । सब चीजें समान भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी सर्वतुल्यं महानिम्बवीजं तत्र विनिक्षिपेत् ॥ कजली बना लीजिये और फिर उसमें अन्य ओषमाक्षिकेण चतुर्यामं मापैकं तेन भक्षयेत् । धियोंका चूर्ण मिलाकर सबको (एक एक दिन) अस्यानुपानं मलयूफलं पकं विचूर्णयेत् ॥ कुहड़े (पेठे) के फलके रस और तृणपञ्चमूल तथा कदुम्बरफलं पकं चूर्णितं कर्षमात्रकम् ।। गोखरुके काथमें घोटकर २-२ रत्तीकी गोलियां संलिहेन्मधुना सार्धमनुपानं सुखावहम् ॥ बना लीजिये। ___ पारदभस्म ( अभावमें रससिन्दूर ), अभ्रक इनमेंसे १-१ गोली शहदमें मिलाकर चाटभस्म और वङ्गभस्म १-१ भाग लेकर सबको कर ऊपरसे गूलरके पक्के फलोंका १ कर्ष (१। तोला) एकदिन शहदके साथ घोटें फिर उसमें बकायन | चूर्ण शहदमें मिलाकर चाटनेसे मूत्रकृच्छू रोग नष्ट के बीजोंकी गिरी सबके बराबर मिलाकर चार पहर होता है । इसपर बकरीका दूध, मिश्री और ईखका तक शहदमें घोटें। रस पथ्य है। भा० ५५ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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