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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [४०४] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [तकारादि vvvvvvvvvvvvvvvvvvvv. रसायनके गुण प्राप्त होते हैं और दूधके साथ कुपीलुजकषायेण पार्थस्य स्वरसेन च । सेवन करनेसे वीर्यकी वृद्धि होती है।। पक्तिकांवटीं कृत्वा युध्यात्ताण्डवशान्तये।। (२५६०) ताण्डवरसः (र. का. धे. । कु.) । देवदारु १ भाग, हींग ४ भाग, कपूर १६ तालगन्धकमाक्षीककुष्ठामृतरसं समम् ।। | भाग, जसत भस्म ६४ भाग और लोहभस्म श्वेतापराजिताद्रावैमर्दयेदिवसत्रयम् ॥ २५६ भाग लेकर सबको १-१ दिन भांगके रस द्विगुझं तद्भवां मूत्रैर्गलत्कुष्ठहरं लिहेत् ।। और कुचलके काथ तथा अर्जुनकी छालके स्ववाकुचीवीजकक्षौ ट्रैरनु स्यात्ताण्डवो रसः॥ रसमें घोट कर छः छः रत्तीकी गोलियां बना असम्भवे तु वाकुच्या वटी चानन्दभैरवी। लीजिये। लेहयेत्कर्षमात्रेण गलत्कुष्ठापनुत्तये ॥ इनके सेवनसे ताण्डवरोग नष्ट होता है। हरताल भस्म, शुद्धगन्धक, सोनामक्खी भस्म, (२५६२) ताप्यादिचूर्णम् कूठ, शुद्ध बछनाग (मीठातेलिया) और शुद्ध पारा (र. चं. । पाण्ड; च. सं. । चि. स्था. पाण्डु.) . समान भाग लेकर प्रथम पारे और गन्धककी ताप्याद्रिजतुरूप्यायोमला पञ्चपलाःपृथक् ।। कजली बना लीजिए और फिर अन्य ओषधियों चित्रकत्रिफलाव्योपविडङ्गैःपालिकैःसह ॥ का महीन चूर्ण मिलाकर ३ दिन तक सफैद शर्फराष्टपलोन्मिश्रा चूर्णिता मधुना प्लुताः। अपराजिता (कोयल) के रसमें घोटकर २-२ अभ्यस्यास्त्वक्षमात्रा हि जीर्णे नियमिताशिना ।। रत्तीकी गोलियां बना लीजिए। कुलत्थकाकमाच्यादिकपोतपरिहारिणा ।।। .... इनमेंसे प्रतिदिन (प्रातःसायं) १-१ गोली स्वर्णमाक्षिक, शिलाजीत, रौ-यमाक्षिक और गोमूत्रके साथ खा कर ऊपरसे १। तो. बाबचीका मण्डूर ५-५ पल (२५-२५ तोले), चीतामूल, चूर्ण शहदमें मिलाकर चाटना चाहिए। यदि हर, बहेडा, आमला, त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल) बाबची न मिल सके तो आनन्द भैरवी वटी और बायबिडङ्गका चूर्ण १-१ पल तथा मिश्री (र. का. धे.) खानी चाहिए। ८ पल लेकर सबको एकत्र मिलाकर रक्खें । इसके सेवनसे गलत्कुष्ठ नष्ट हो जाता है। इसे १। तोलंकी मात्रानुसार शहद में मिला(२५६१) ताण्डवारिलौहम् ___ कर खाना चाहिए । औषधके पच जानेपर निय ( आयु. वे. वि. । उत्त. अ. ५९) मित भोजन करना चाहिए और कुलत्थ, काक्रमाची दारुरामठकपरयशदायो यथोत्तरम् । तथा कपोतादिके मांससे परहेज करना चाहिए। प्रगृह्य चतुरावृत्या विभाव्य विजयाम्बुना। (यह चूर्ण कामला रोगको नष्ट करता है।) १ ताण्डव रोग-यह रोग अत्यधिक हर्ष शोकादिके कारण मनके अतिशय क्षोभ पानेके कारण होता है। इसमें मनुष्य नाचताहुवा सा चलता है, हाथ पैरोंको नचाता है. और मुट्ठीसे किसी भी वस्तुके पकड़ने या मुंहमें देनेमें असमर्थ होता है। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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