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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३९८ ] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [तकारादि VVVVVVVvvvvvvvNrvNrvNAA.ULLXXXVVVVVVVVVVV VvvvvvWA योज्यास्तिस्रो हरीतक्यस्तथा षट् च विभीतकाः। लिह्यान्मधुघृताभ्याश्च पलार्द्ध प्रत्यहं पुमान् । द्वादशामलकानीति त्रिफलेयं प्रकीर्तिता ॥ जीणे दुग्धौदनाहारो गुणानेतानवाप्नुयात् ॥ प्रसन्नदृष्टिरव्याधि वेद्वर्षशतानि षट् । पातहरीतकी खादेन्मध्याह्ने द्वौ विभीतकौ । नीलालिकुलसंकाशकेशराशिर्महाबलः ।। रात्रौ शयनकाले तु चत्वार्यामलकानि च ॥ मेधावी स्मृतिमान्धीरः स्निग्धश्यामवपुर्युवा । रूपेण कामःप्रभया शशाङ्को सुभगश्च सुरूपश्च स्त्रीशतानन्दवर्धनः ।। दृष्ट्या गरुत्मानिनदेन सिंहः । बलेन नागःपवनो जवेन त्रिफलां निष्कुलां कृत्वा वारिणा तां स्थितां निशि। गिरि गुरुत्वेन भवेन्नरोऽसौ ॥ प्रातः प्रातः पिबेद्धीमान्विषमज्वरशान्तये ॥ ___ हर्र, बहेड़ा और आमला । इन तीनोंके योग वर्ष खादेत्पाणदा प्रातरेका को त्रिफला कहते हैं । वरा, उत्तमा, श्रेष्ठा, और मश्ननन्नात्पूर्वमक्षद्वयश्च ।। फलत्रय भी इसके ही नाम हैं। साज्यक्षौद्रं भोजनान्ते चतुष्कं त्रिफला रसायन, नेत्ररोगनाशक, रोपण, तथा शृङ्गीकानां तद्वयः स्थापनेऽलम् ॥ चर्मरोग क्लेद मेद प्रमेह कफ और रक्तविकार नाशक है। यह पित्त, कुष्ठ, विषमज्वर, राजयक्ष्मा, निकाथ्य त्रिफला पीता नाशयेनितरां मलम् । अर्श, गुल्म, वमन और कण्डू नाशक तथा नाड़ी नेत्रश्वयथुदावाग्निरागकण्डूपरिस्रवान् ॥ | ब्रण (नासूर) शोधक है। दृष्टिको स्वच्छ करता नवान्पथ्याक्षधात्रीणां कृत्वाऽर्धपलिकानपि । और मेधा तथा स्मरणशक्तिको बढ़ाता है। पिबेत्कोष्ठविशुद्धयर्थ पलिकांश्च यथा बलम् ।। केवल एक त्रिफला ही समस्त रोगोंको नष्ट त्रिफला सर्वरोगनी त्रिभागघृतमिश्रिता। कर सकता है । उसे घृत, शहद, गुड़ अथवा तैलमें मिलाकर सेवन करना चाहिए । विसर्प सर्वज शुक्र हन्ति चार्धावभेदकम् ॥ त्रिफलाको वातज रोगोंमें तेलके साथ, पित्तज मधुना त्रिफला चूर्ण प्रयुक्तं नाशयेद्धृवम् । रोगोंमें घीके साथ और कफज रोगोंमें शहदके प्रमेहान्मुखरोगांश्च गलगण्डापची तथा ।। साथ सेवन करना चाहिए। भक्षयंस्त्रिफलाकल्कं मासं निर्यन्त्रणं पुमान् ।। त्रिफला बनानेके लिए ३ हर, ६ बहेड़े वैनतेयोपमा दृष्टिं मासमात्रादवामुयात् ॥ और १२ आमले लेने चाहिये । त्रिफलादलचूर्णस्य कृत्वा पलशतं नवम् । प्रतिदिन प्रातःकाल ? हर्र, दोपहरको २ भृङ्गराजरसेनैव कुर्थात्सप्ताहभावितम् ।। बहेड़े और रातको सोनेके समय चार आमले For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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